Thursday, July 2, 2009

तुम डरती हो

तुम डरती हो
देर तक मेरे दूर कहीं बाहर रहने से।
डरती हो
मेरे धूप में निकलने से,
मेरे कम खाने से,
मेरे अधिक पढ़ने से,
मेरे कमज़ोर पड़ने से,
बीमार पड़ने से,
मगर
मुझे जन्म देने वाली
मेरी माँ
तुम्हें बता दूँ
कि ज़िन्दा कोई नहीं रहता
यहाँ देर तक, दूर तक
सभी मरते हैं
एक दिन
मैं भी मरूँगी।
तुम्हारे
इस डर से
बहुत आगे
मैं
धूल बनकर
इसी धूप में कहीं पड़ी रहूँगी।
आज जो
तुम्हारे डरने का कारण हूँ
तुम्हारी चिंता का हिस्सा हूँ
परेशान होने की आदत हूँ
कल,
बस एक अतीत, एक किस्सा बनकर रह जाऊँगी,
लाख पकड़ने पर भी
तुम्हारे हाथ नहीं आऊँगी
तुम्हारे पास नहीं आऊँगी।
और उस दिन
तुम
बेहद ज़िद्दी, बेवकूफ, मतलबी,
अपने मामले में
हद दर्ज़े तक स्वार्थी अपनी इस बेटी
और
अपने जीवन के
इस एक पागल-से हिस्से के लिए
परेशान मत होना,
रोना मत,
इसके लिए डरना मत।

1 comment:

  1. pragya di...
    kya kahun....rachna to nisandeh achhi hai....|
    parantu.....
    unka chintit hona v wajib hai....kuch aisa hee prem hota hai maa ka, hamesha apne watsalya kee chaawn me rakhna chahtee hai bachhon ko.

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