Friday, June 26, 2009

चलते-चलते

चलते-चलते रुका दरख़्त बन गया है आदमी,
हँसते-हँसते बड़ा कमबख़्त बन गया है आदमी।


इसे मत रोको, मत टोको, मुसाफ़िर है,
सूनी पगडंडियों पर चलता बड़ा सख्त बन गया है आदमी।


कई ज़माने गुज़रे, कई अफ़साने गुज़रे, इसे कोई फ़िक्र नहीं,
अपने आकारों में सिमटा कोई वक़्त बन गया है आदमी।

Tuesday, June 23, 2009

हमें याद करना

अफसानों के गिरेबाँ में झाँकना
तो हमें याद करना
दीवानों के कारवाँ में झाँकना
तो हमें याद करना


जब मिल ना पाए
ग़म में कोई हँसने वाला
जीने की तमन्ना में
बसने वाला
तो नज़र उठा के
आसमाँ में झाँकना
औ' याद करना।

परदों से खिड़कियों को
जो न ढक पाया
आँखों से आँसुओं में
ना बरस पाया
हो सके तो
उसके गुनाहों को
कभी माफ़ करना।

Monday, June 22, 2009

धूप की परछाई में
सुनहरी आँखें लिए
मन की छोटी अंगुली थामे
धूल के धुएँ में घिरी
मिचमिचाती साँसें लिए
कभी सोचती हूँ
मुफ़्त की ये ज़िन्दगी
कितनी महंगी पड़ती है हमें
कभी-कभी।

गुलाबी पंखों से उड़ती
नीली- हरी रोशनी में
काले, गहरे अक्षरों की किताब पढ़ती
कभी-कभी कितना अन्धा कर देती है हमें
कि आसपास का अन्धेरा
हमें दिखता भी नहीं ।
सफेद मिट्टी के नारंगी रंग में भीगे हम
पहचान ही नहीं पाते
कि, सूखी हवा की सुगन्ध में
हम धीरे-धीरे सूखते जा रहे हैं ,
कितनी बड़ी ग़लतफ़हमी देती है हमें
गीली बाल्टी से टप-टप टपकती ये ज़िन्दगी
कि,
नारंगी रंग की ये खुश्बू
हमेशा फैलती रहेगी,
मटमैले रंग का ये जीवन
हमेशा खुशनुमा रहेगा।