Saturday, November 12, 2011

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Monday, November 7, 2011

तुम हो ना....

पेड़ों की इन टहनियों ने
पूछा मुझसे, यूँ झुककर
मेरे साथ-साथ फिरती सी
तुम हो क्या?

हाँ, हूँ ना!

आसमाँ पे इन बदलियों ने
पूछा मुझसे, यूँ रुककर
मेरे साथ-साथ उड़ती सी
तुम हो क्या?

हाँ, हूँ ना!

जब भी चली हवा
मौसम बदला
पत्ते हिले कहीं
सबने ही
चलते हुए मुझे
रोक कर कहा
ऐ राही
सुनो ज़रा
अकेले चले कहाँ
हाथों में हाथ नहीं, कोई तेरे साथ नहीं
मैंने तब दिल में कहा,
हाँ मेरे साथ नहीं
पर दिल के किसी कोने में
तुम हो ना?

हाँ, हूँ ना!


अपनी दुनिया की राहों में
मनचली हवा की बाँहों में
जब भी मैं ख़ुद को पाता हूँ
तेरी यादों में खो जाता हूँ।
आँखों की इस भाषा में
होठों की इस बोली में
तेरी ही बातें पाता हूँ
तेरे ही किस्से कहता हूँ
तुम बोलो, इस दिल में बैठी,
चुप-चुप सी ये, तुम हो क्या?

हाँ हूँ ना!


हरी-भरी सी वो आँखें
खुली-खुली सी वो पलकें
मैं क्या करूँ उनका, के अब
वो मेरी आँखों से झलकें
ये तारों की झिलमिल रातें
ये बारिश की रिमझिम बातें
मेरे पास-पास जब आती हैं
हौले से छूकर मुझको
तेरी याद दिला सी जाती हैं
तब धड़कन कहती है मेरी
इनकी हरएक शरारत में
तुम हो ना?

हाँ, हूँ ना!