Monday, November 7, 2011

तुम हो ना....

पेड़ों की इन टहनियों ने
पूछा मुझसे, यूँ झुककर
मेरे साथ-साथ फिरती सी
तुम हो क्या?

हाँ, हूँ ना!

आसमाँ पे इन बदलियों ने
पूछा मुझसे, यूँ रुककर
मेरे साथ-साथ उड़ती सी
तुम हो क्या?

हाँ, हूँ ना!

जब भी चली हवा
मौसम बदला
पत्ते हिले कहीं
सबने ही
चलते हुए मुझे
रोक कर कहा
ऐ राही
सुनो ज़रा
अकेले चले कहाँ
हाथों में हाथ नहीं, कोई तेरे साथ नहीं
मैंने तब दिल में कहा,
हाँ मेरे साथ नहीं
पर दिल के किसी कोने में
तुम हो ना?

हाँ, हूँ ना!


अपनी दुनिया की राहों में
मनचली हवा की बाँहों में
जब भी मैं ख़ुद को पाता हूँ
तेरी यादों में खो जाता हूँ।
आँखों की इस भाषा में
होठों की इस बोली में
तेरी ही बातें पाता हूँ
तेरे ही किस्से कहता हूँ
तुम बोलो, इस दिल में बैठी,
चुप-चुप सी ये, तुम हो क्या?

हाँ हूँ ना!


हरी-भरी सी वो आँखें
खुली-खुली सी वो पलकें
मैं क्या करूँ उनका, के अब
वो मेरी आँखों से झलकें
ये तारों की झिलमिल रातें
ये बारिश की रिमझिम बातें
मेरे पास-पास जब आती हैं
हौले से छूकर मुझको
तेरी याद दिला सी जाती हैं
तब धड़कन कहती है मेरी
इनकी हरएक शरारत में
तुम हो ना?

हाँ, हूँ ना!

30 comments:

  1. बहुत मासूम से भाव लिए हुए सुन्दर रचना

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  2. जितने खूबसूरत शब्द हैं उनते ही उन्नत भावों से सजाया है. शब्द नहीं हैं मेरे पास बयान करने के लिए..... बहुत लाजवाब

    संजय भास्कर
    आदत....मुस्कुराने की
    पर आपका स्वागत है
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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  3. ये बारिश की रिमझिम बातें
    मेरे पास-पास जब आती हैं
    हौले से छूकर मुझको
    तेरी याद दिला सी जाती हैं
    तब धड़कन कहती है मेरी
    इनकी हरएक शरारत में
    तुम हो ना?
    Behad achhoote,komal bhaav!

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  4. बहुत अच्छी रचना...बधाई स्वीकारें

    नीरज

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  5. हाथों में हाथ नहीं, कोई तेरे साथ नहीं
    मैंने तब दिल में कहा,
    हाँ मेरे साथ नहीं
    पर दिल के किसी कोने में
    तुम हो ना?

    यादों के साये तो हमेशा साथ ही चलते हैं !

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  6. इस होने का विश्वास कितना बड़ा है...

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  7. गहरे मनोभाव।
    शब्‍द संयोजन बेहतरीन।

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  8. सुन्दर रचना
    सादर बधाई....

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  9. bahut pyaari komal sa ehsaas liye dil ke kareeb kavita.

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  10. बहुत ही खूबसूरत कविता।

    सादर

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  11. वाह क्या बात है जी ...बहुत खूब ....सुन्दर शब्द रचना ....मन को छू गई है आपकी ये रचना

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  12. ओह! बहुत सुन्दर,प्रज्ञा जी.
    आपकी प्रस्तुति पढकर मन मग्न हो गया हैं जी.

    बहुत बहुत आभार.

    मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
    'नाम जप' पर अपने अमूल्य विचार व अनुभव
    प्रस्तुत कर अनुग्रहित कीजियेगा,प्लीज.

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  13. भावपूर्ण भावान्वेषण !

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  14. आप सभी का बहुत-बहुत शुक़्रिया...

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  15. waah ..ahsas se bhari kavita...har jarre jarre me tum ho na

    haan main hun

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  16. Bahut hi dilkask .... Man mien kisi ke hone ka ehsaas liye .... Lajawab rachna ..

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  17. बहुत कोमल अहसास...सुन्दर भावाभिव्यक्ति...

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  18. वो मेरी आँखों से झलकें
    ये तारों की झिलमिल रातें
    ये बारिश की रिमझिम बातें
    मेरे पास-पास जब आती हैं
    हौले से छूकर मुझको
    तेरी याद दिला सी जाती हैं
    तब धड़कन कहती है मेरी
    इनकी हरएक शरारत में
    तुम हो ना?

    बहुत सुंदर कविता. बधाई सुंदर प्रस्तुति के लिये.

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  19. बहुत-बहुत धन्यवाद आप सभी का....

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  20. बहुत सुंदर पोस्ट बधाई..
    मेरी पोस्ट -वजूद- में आपका स्वागत है

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  21. मेरे मुख्य ब्लॉग काव्यांजली में स्वागत है ,..

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  22. बहुत सुन्दर प्रस्तुति, बधाई.

    कृपया मेरे ब्लॉग प् भी पधारने का कष्ट करें.

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  23. बेहतरीन रचना. आभार.

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  24. Pragya ji,
    mere blog 'saajha-sansaar' par aapki bahumulya pratikriya ke liye dil se shukriya. aapka mail id nahin hai atah yahin par dhanyawaad de rahi hun.
    aapki kavita padhi, bahut komal aur madhur rachna hai...
    आँखों की इस भाषा में
    होठों की इस बोली में
    तेरी ही बातें पाता हूँ
    तेरे ही किस्से कहता हूँ
    तुम बोलो, इस दिल में बैठी,
    चुप-चुप सी ये, तुम हो क्या?

    हाँ हूँ ना!

    badhai sweekaaren.

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  25. हाँ हूँ ना...अस्तित्व की सी झलक मिलती है.

    हाँ हूँ

    शीघ्र अपने देश लौटने वाला हूँ....
    व्यस्तता के कारण इतने दिनों ब्लॉग से दूर रहा.
    नयी रचना समर्पित करता हूँ. उम्मीद है पुनः स्नेह से पूरित करेंगे.
    राजेश नचिकेता.
    http://swarnakshar.blogspot.ca/

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