Wednesday, August 24, 2011

अम्मा की कहानियाँ और मेरा बचपन - तोता और दाल की कहानी (आगे - दृश्य 14)

Scene 14


चिंटू, काका और बिल्ली तीनों वापस उसी गोदाम में खड़े हैं जहाँ वे चूहे से मिले थे।
चिंटू (चूहे को पुकारता है): “हाँ जी भइया, चूहे भाई!”
चूहा हाथ मलते और खींसे निपोरते हुए बोरियों के पीछे से बाहर आता है। लेकिन बाहर आकर बिल्ली को देखते ही उसके होश उड़ जाते हैं। वह वहीं जड़ हो जाता है। बिल्ली उसकी ओर एक कदम आगे बढ़ती है। चूहे को होश आता है। तुरंत चिंटू से पूछता है।
चूहा (चिंटू से): “अरे भइया, जाल कहाँ है?”
चिंटू: “जाल भी ले आएँगे, पहले ज़रा दाँतों को तो तेज़ करवा लो”
चूहा (हकलाते हुए): “दाँत? हाँ-हाँ, वो-वो दाँत तो मैंने खुद ही तेज़ करवा लिया। चलो, जाल के पास चलो....चलो” – कहकर चूहा बाहर की ओर भागना चाहता है लेकिन बिल्ली रास्ता रोक लेती है।
बिल्ली: “अरे मियाँ! कहाँ भागे चले जा रहे हो? ज़रा हमसे भी तो मिलते जाओ!”
चूहा: “अह: ह: मौसी अभी मैं ज़रा जल्दी में हूँ। लौट के आता हूँ तो बात होगी, ठीक है?” – कहकर चूहा आगे बढ़ता है लेकिन बिल्ली अपना एक पंजा उसकी पूँछ पर रख देती है।
बिल्ली: “इतनी जल्दी भी क्या है? इतने दिनों बाद मिले हो...जाने कैसे दे सकती हूँ!”
चूहा (हाथ जोड़कर चिंटू से): “अरे भइया, मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था?”
चिंटू: “तो तैयार हो जाल काटने को?”
चूहा: “अरे जनम भर!”
चिंटू: “तो ठीक है...मौसी छोड़ दो इसे”
बिल्ली (चौंकते हुए): “क्या? क्या कह रहे हो? हाथ आए शिकार को छोड़ दूँ, वो भी चूहे को?”
चिंटू: “लेकिन अब तो ये जाल काटने को राज़ी हो गया है न!”
बिल्ली: “कौन सा जाल? कहाँ का जाल? मैं कोई जाल-वाल नहीं जानती। क्या मैं इतनी दूर इसे छोड़ देने को आई थी? नहीं, अब ये मेरे हाथों नहीं बच सकता। वरना मैं वापस अपनी सोसाइटी में जाकर क्या मुँह दिखाऊँगी?”
चिंटू (काका को धीरे से): “अरे बापी.....ये तो गड़बड़ हो गई!!”
काका: “हाँ सो तो हो गई, पर अब क्या करें?”
चिंटू: “तुम चूहे को पकड़कर उड़ सकते हो?”
काका सोचता है – “अ~~~~~”
चिंटू: “पापा, अभी सोचने का टाइम नहीं है। बना हुआ काम बिगड़ रहा है”
काका: “हाँ, उड़ सकता हूँ”
चिंटू: “फिर ठीक है, मैं बिल्ली रानी का ध्यान बँटाता हूँ। आप उसे लेकर उड़ जाइएगा”
चिंटू बिल्ली के सामने आता है।
चिंटू: “अरे मौसी, ओ मौसी”
बिल्ली चिंटू की ओर देखती है।
चिंटू: “तुम मेरी मौसी हो न?”
बिल्ली: “हाँ हूँ, सभी की हूँ”
चिंटू: “सबकी छोड़ो। मेरी हो या नहीं ये बताओ”
चूहा (चिंटू से): “अरे तुम्हें अपनी मौसी की पड़ी है, यहाँ मेरी जान जाने वाली है!”
बिल्ली चूहे पर ध्यान नहीं देती और चिंटू से कहती है।
बिल्ली (चिंटू से): “हाँ, तुम्हारी भी हूँ”
चिंटू: “तो तुम्हारी शक्ल मेरी माँ की शक्ल से क्यों नहीं मिलती है? नहीं मिलती न?”
बिल्ली: “नहीं, नहीं मिलती”
चिंटू: “क्यों?”
बिल्ली: “पता नहीं, ये तो मैंने सोचा ही नहीं”
चिंटू: “सोचो मौसी सोचो....मेरी माँ की और तुम्हारी शक्ल क्यों नहीं मिलती”
बिल्ली सोच में पड़ जाती है और उसके पंजे की पकड़ थोड़ी सी ढीली पड़ जाती है। चिंटू काका को इशारा करता है। काका धीरे से चूहे को अपने पंजों से पकड़ता है। चूहा चौंक जाता है। काका उसे इशारे से चुप रहने को कहता है।
बिल्ली अभी भी सोच रही है, उसका ध्यान काका और चूहे पर नहीं जाता। काका चूहे को लेकर धीरे से उड़ने की कोशिश करता है लेकिन चूहे की पूँछ अभी भी बिल्ली के पंजे के नीचे है इसलिए उड़ नहीं पाता।
चूहा धीरे से बिल्ली के पंजे के नीचे से अपनी पूँछ खींचता है। बिल्ली सोच में डूबी हुई है इसलिए उसका इन हरकतों पर ध्यान नहीं जाता। काका चूहे को लेकर बिल्ली के पीछे से उड़ जाता है। चिंटू भी धीरे से वहाँ से खिसक जाता है।
बिल्ली को पता नहीं चल पाता और वह अंत तक सोचती रहती है।


Thursday, August 18, 2011

अम्मा की कहानियाँ और मेरा बचपन - तोता और दाल की कहानी (आगे - दृश्य 12 और 13)

Scene 12


एक किराने की दुकान की गोदाम। कई बोरियाँ रखी हुईं हैं। उसमें एक भद्दा सा गन्दा चूहा छेद कर रहा है। तभी बगल में एक चुहिया आती है जिसने कानों में बालियाँ और पाँवों में पायल पहन रखी है। इन दोनों के कपड़े फटे-पुराने, पैबन्द लगे हैं।
चुहिया (चूहे से): “सुनो”
चूहा नहीं सुनता, काम में लगा रहता है।
चुहिया (ज़ोर से): “अरे सुनते हो? कोई हमसे मिलने आया है”
चूहा (काम छोड़कर): “हमसे?”
चुहिया (बेरुखी से): “हाँ”
चूहा: “कहाँ”
चुहिया हाथ से पीछे की ओर इशारा करती है। चूहा उधर देखता है। काका और चिंटू एक छोटी सी बोरी पर बैठे हैं।
चूहा(उन्हें देखकर, दोनों हाथ मलते हुए): “हीं-हीं-हीं-हीं-हीं.........हमसे मिलने आए हैं?......जी कहिए?”
चिंटू (आदेशात्मक लहज़े में): “चूहा-चूहा तुम जाल काटो, जाल न गजराज फँसावे, गजराज न समुन्दर सोखे, समुन्दर न आग बुझाए, आग न लाठी जलाए, लाठी न साँप मारे, साँप न रानी डसे, रानी न राजा छोड़े, राजा न बढई डाँटे, बढ़ई न खूँटा चीरे, खूँटा न दाल निकाले, खूँटे में दाल है, क्या खाएँ क्या पीएँ, क्या लेकर परदेस जाएँ”
चूहा (वैसे ही हाथ मलते हुए): “हें-हें-हें...वो तो ठीक है हम जाल को काट देंगे पर....”
काका: “पर क्या?”
चूहा: “आप तो देख ही रहे होंगे, जब आप आए थे तब मैं इस बोरे को काट रहा था। लेकिन देखिए उतनी देर तक काटने का फल.....कुल एक मिलीमीटर भी नहीं काट पाया”
चिंटू: “पर ये तो काफी कटा हुआ है”
चूहा (घबराकर): “अ..हाँ लेकिन...दरअसल...वो..इतना तो पहले से ही कटा हुआ था। मैं तो इसे थोड़ा भी नहीं काट पाया”
चिंटू: “अच्छा-अच्छा, तो तुम ये कह रहे हो कि तुम जाल नहीं काट पाओगे”
चूहा: “अब~~ इन दाँतों के साथ तो नहीं काट पाउँगा। क्या है कि बहुत दिनों से दाँतों को पैना नहीं करवाया, धार खत्म हो चली है इनकी। अगर आपकी कुछ मेहरबानी हो सकती तो मैं इन्हें तेज़ करवा लेता। क्या है कि जब बोरे काटने में इतनी परेशानी है तो जाल काटने में तो.....हें-हें...आप समझ ही सकते हैं.....कुछ मिल जाता तो..हें-हें-हें”
चिंटू: “तो तुम्हें धार पैनी करवानी है”
चूहा: “हें-हें-हें-हें”
चिंटू: “ठीक है! हम अभी इंतज़ाम करते हैं। तुम यहीं ठहरना, बिल्कुल यहीं। हम अभी आ रहे हैं”
काका को चलने का इशारा करता है और उड़ता है। चूहा हें-हें करता हुआ हाथ मलता उन्हें उड़ते जाते देखता है।



Scene 13
“Whew! क्या कहा तुमने ज़रा दुबारा कहना!” – कहकर एक मोटी सी बिल्ली एक घर के छज्जे पर से कूदकर नीचे आती है। नीचे खूब सारे गमले रखे हैं। वहीं काका और चिंटू खड़े हैं।
चिंटू: “जी...जो कहा वही कहा”
बिल्ली: “नहीं-नहीं, ज़रा दुबारा कहो। मुझे अपने कानों पर यकीन नहीं हो रहा। ज़रा उसी लय में, उसी ताल में, वही सुर, वही शब्द! आहा-हा क्या शब्द थे, वही शब्द ज़रा फिर से दुहराना!!”
चिंटू: “बिल्ली-बिल्ली तुम चूहा खाओ, चूहा न जाल काटे, जाल न गजराज फँसावे, गजराज न समुन्दर सोखे, समुन्दर न आग बुझाए, आग न लाठी जलाए, लाठी न साँप मारे, साँप न रानी डसे, रानी न राजा छोड़े, राजा न बढई डाँटे, बढ़ई न खूँटा चीरे, खूँटा न दाल निकाले, खूँटे में दाल है, क्या खाएँ क्या पीएँ, क्या लेकर परदेस जाएँ”
बिल्ली: “हाय दइया! ये मैं क्या सुन रही हूँ! कान ऐसी बात सुनने को तरस गए थे! चूहा – यह शब्द ही कितना रसदार है.........चूहे!” – कहकर मानो ‘चूहे’ शब्द में खो जाती है। फिर तुरंत सम्हलकर पूछती है।
बिल्ली: “हाँ तो बोलो, कब चलना है?”
तबतक घर के भीतर से ऐनक लगाए एक बूढ़ी बिल्ली आती है।
बूढ़ी बिल्ली (घर से बाहर निकलते हुए): “कहाँ चलना है? कोई पार्टी-वार्टी है क्या, हाँ भाई?”
अपना ऐनक ठीक करती है। सामने काका और चिंटू को देखकर चौंककर जाती है।
बूढ़ी बिल्ली: “अरे, तुम दोनों कौन हो भाई? (चिंटू को पकड़कर) ओहो! तुम तो बहुत हट्टे-कट्टे दिखते हो, चटपटे लगते हो!”
चिंटू को अपने चेहरे के पास लाती है। चिंटू घबरा जाता है।
चिंटू (घबराकर): “अरेरेरेरे.........मैं तो चूहे की दावत लेकर आया था, चूहे की, चूहा-चूहा!”
बूढ़ी बिल्ली: “क्या? कहाँ?” – कहकर चिंटू को छोड़ देती है।
चिंटू ‘धम्” से नीचे गिरता है। उठता है। पहले तो भागकर काका के पास जाता है। फिर अपने शरीर से धूल झाड़ता है। चिंटू (बूढ़ी बिल्ली से): “हाँ, वो....” लेकिन मोटी बिल्ली बीच में ही टोक देती है और चिंटू को बात पूरी नहीं करने देती।
मोटी बिल्ली (बीच में टोकते हुए): “मौसी तुम भीतर जाओ, ये मेरी और इसकी डील है”
बूढ़ी बिल्ली (मोटी बिल्ली को अनसुना करते हुए): “कितने चूहे हैं बेटा? आहा-हा, मेरी तो अभी से लार टपकने लगी है। बेटा, एक मिनट रुकना ज़रा, हाँ? मैं ज़रा डाई-वाई करके आती हूँ। बस एक मिनट लगेगा। जाना मत...आहा-हा चूहों की पार्टी!!” – कहकर भीतर जाती है।
मोटी बिल्ली (चिंटू को धकियाते हुए): “चलो”
तीनों चल देते हैं।


Friday, August 12, 2011

अम्मा की कहानियाँ और मेरा बचपन - तोता और दाल की कहानी (आगे - दृश्य 10 और 11)

Scene 10



दोपहर का वक़्त। नदी बह रही है। नदी के बगल में आम का बगीचा है। वहाँ खूब सारे हाथी जमा हैं। कोई चहल-कदमी कर रहा है, कोई नदी से पानी पी रहा है, कोई सो रहा है, कोई आपस में खेल रहा है। काका और चिंटू वहाँ आते हैं। एक हाथी चुपचाप बैठा है। दोनों उस हाथी की सूंड पर बैठते हैं।
चिंटू (उसी हाथी से): “हलो, कैसे हो?”
कोई जवाब नहीं आता। वह हाथी बस उन दोनों को देखता है और फिर आँखें बन्द कर लेता है।
चिंटू (दुबारा उसी से): “तुम्हारा नेता कौन है?”
वह हाथी इस बार भी कुछ नहीं कहता बस अपनी सूंड को सीधाकर नेता हाथी के सामने लाता है। दोनों वहाँ नीचे उतर जाते हैं। नेता हाथी मुरेठा पहने एक विशाल पेड़ के नीचे बैठा आँखें आधी बन्द किए सुस्ता रहा है। दोनों झुककर उसका अभिवादन करते हैं। उत्तर में नेता हाथी कुछ कहता नहीं सिर्फ भौंहे उठाकर प्रश्नवाचक मुद्रा बनाता है (मानो एक्स्प्रेशन से पूछ रहा हो कि क्या हुआ, बोलो), फिर आँखें बन्द कर लेता है।
चिंटू: “गजराज तुम समुन्दर सोखो, समुन्दर न आग बुझाए, आग न लाठी जलाए, लाठी न साँप मारे, साँप न रानी डसे, रानी न राजा छोड़े, राजा न बढ़ई डाँटे, बढ़ई न खूँटा चीरे, खूँटा न दाल निकाले, खूँटे में दाल है, क्या खाएँ क्या पीएँ, क्या लेकर परदेस जाएँ”
नेता हाथी कुछ देर तक कुछ भी नहीं कहता फिर ‘ना’ की मुद्रा में सिर हिला देता है।
चिंटू: “जी?”
नेता हाथी (सुस्ती में): “कहीं और जाओ जी। समुन्दर सोखने में बहुत मेहनत है”
चिंटू उदास होकर अपना सर झुका लेता है। फिर कुछ देर में उसका एक्स्प्रेशन बदलता है और उसके चेहरे पर गुस्से का भाव आता है।
उसी गुस्से में वह बुदबुदाता है – “जाल”


Scene 11

मछुआरों की बस्ती। लकड़ी पर रस्सी डालकर उसपर बड़े-बड़े जाल धूप् में सुखाए जा रहे हैं। चिंटू और काका वहीं एक जाल के पास आते हैं। उसे जैसे ही वे छूते हैं वह जाल भड़क उठता है।
जाल (भड़ककर): “अबे, क्या है बे?”
चिंटू (सहमकर): “जी..अ..अ..आपमें सबसे बड़ा कौन है?”
जाल: “मैं हूँ, क्यों?”
चिंटू (सहमते हुए): “जाल-जाल तुम गजराज फँसाओ, गजराज न समुन्दर सोखे, समुन्दर न आग बुझाए, आग न लाठी जलाए, लाठी न साँप मारे, साँप न रानी डसे, रानी न राजा छोड़े, राजा न बढई डाँटे, बढ़ई न खूँटा चीरे, खूँटा न दाल निकाले, खूँटे में दाल है, क्या खाएँ क्या पीएँ, क्या लेकर परदेस जाएँ”
जाल (झिड़ककर): “अबे च~~ल, तेरे एक दाल के दाने के लिए मैं...चल हट...भाग!”
चिंटू (चिढ़कर उसकी नकल करता हुआ): “अबे, चल तू...भाग तू...हट तू”
जाल: “चलता है या लपेटूँ तुझे हीं” – कहकर उन दोनों को लपेटने के लिए उनपर झुकता है, दोनों भागते हैं।


क्रमश:

Thursday, August 11, 2011

अम्मा की कहानियाँ और मेरा बचपन - तोता और दाल की कहानी (आगे - दृश्य 8 और 9)


Scene 8

विशाल समुद्र सामने हिलोंड़े ले रहा है। काका और चिंटू समुद्र के सामने एक चट्टान पर बैठे हैं।
काका (चिंटू से): “क्या हुआ? अब यहाँ आकर चुप क्यों बैठा है, बोल समुन्दर को”
चिंटू (सोचने की मुद्रा बनाकर): “अपुन कुछ सोच रेला है बॉस”
काका: “क्या?”
चिंटू: “यही~~~~ कि...”
काका: “कि?”
चिंटू: “कि” – कहते हुए चिंटू काका को बड़े ही अर्थपूर्ण तरीके से ग़ौर से देखता है। काका भौहें ऊपर उठाता है और ‘नहीं’ की मुद्रा में सर हिलाता है और ‘नहीं’ बोलना चाहता है मगर उसके ‘न’ कहते ही चिंटू अपने पंख से उसका मुँह बन्द कर देता है।

Scene 9

काका समुद्र के आगे हाथ जोड़े खड़ा है। पीछे कुछ दूरी पर उसी चट्टान पर चिंटू खड़ा है। चिंटू इतनी दूरी पर है कि वह काका की आवाज़ को पूरी तरह से स्पष्ट नहीं सुन सकता।
काका (अटकते हुए): “समुन्दर-समुन्दर तुम आग बुझाओ, आग न...आग न...न रानी डसे”
उसे अच्छे से याद नहीं आता कि चिंटू क्या कविता कहता था इसलिए वह आँखें बन्द कर एक स्वर में लगातार जो भी और जैसे भी याद आता जाता है, कह देता है।
काका: “रानी....रानी...न दाल निकाले, दाल न साँप मारे, साँप न लाठी जलाए, लाठी न बढ़ई डाँटे, बढ़ई न राजा चीरे, राजा में खूँटा है, क्या खाएँ क्या पीएँ, क्या लेकर परदेस जाएँ”
समुन्दर कुछ नहीं कहता। काका कुछ देर उसकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार करता है लेकिन जब का समुन्दर फिर भी कुछ नहीं कहता तो काका पीछे चट्टान पर खड़े चिंटू को देखता है। चिंटू आगे आता है।
चिंटू (काका के पास आकर): “क्या हुआ?”
काका: “पता नहीं”
चिंटू: “आपने इनसे कहा तो न?”
काका: “हाँ मैंने सब कह दिया, लेकिन इन्होंने कुछ कहा ही नहीं”
चिंटू और काका दोनों समुन्दर को देखते हैं।
समुन्दर की एक लहर ऊपर उठती है और उसमें आँखें और मुँह बनता है। समुन्दर बोलता है: “दरअसल आपने जो कहा मैं उसे सही-सही समझ नहीं पाया। रानी न दाल निकाले, दाल न साँप मारे...कुछ खास समझ नहीं आया”
चिंटू (काका से): “पापा?”
काका: “हाँ”
चिंटू: “आपने सब कुछ ठीक से तो कहा था न?”
काका: “हाँ, जहाँ तक मुझे लगता है”
चिंटू: “हाँ, वो तो समझ में आ रहा है। चलिए, कोई बात नहीं” – फिर समुन्दर को कहता है – “वो बात दरअसल ये है कि हमारे अग्नि देव सुसाइड करना चाहते हैं। वो ये चाहते हैं कि आप उन्हें बुझा दें”
समुन्दर (चौंककर): “सुसाइड?”
चिंटू: “जी”
समुन्दर: “पर ये तो बहुत ही ग़लत बात है”
चिंटू: “हाँ, लेकिन क्या किया जा सकता है...जब मरने वाला ख़ुद ही मरना चाहता हो”
समुन्दर: “नहीं, मैं उन्हें ऐसा करने की इजाज़त नहीं दे सकता......और इसमें सहायता तो बिल्कुल भी नहीं”
चिंटू (नाटकीय/बनावटी रूप से रुआँसा बनकर): “दरअसल सर, वो अपनी ज़िंदगी से बिल्कुल निराश हो गए हैं, ज़िंदगी में साथ देने वाला कोई नहीं, जल-जलकर वे अंदर से राख हो चले हैं...कहते हैं मैं भीगना चाहता हूँ....सर उन्हें भीगने दो सर...भीगने दो...भीगने दो”
समुन्दर: “उनसे जाकर कहना कि जीवन अमूल्य है, जीवन अपने-आप में एक आशा है, सोचने का ढंग है, सोचो तो पूरी दुनिया तुम्हारे साथ है और सोचो तो अपना हृदय भी अपने साथ नहीं। उनसे कहना वे जलने से न भागें। जलना उनकी नियति है और भीगना मेरी नियति...जब मैं उन्हें पुन: जला नहीं सकता तो उन्हें भिगाना भी मेरे हाथ में नहीं”
चिंटू अपना सर पकड़कर बैठ जाता है। कुछ देर बाद वैसे ही बैठे-बैठे कहता है: “अब कुछ नहीं हो सकता”
काका (चिंटू से): “बेटा, मैं एक सुझाव दूँ?”
चिंटू उसकी ओर देखता है।
काका: “गजराज के पास चलते हैं” चिंटू उसे देखता रहता है फिर मुस्कुराता है।

क्रमश:

Monday, August 1, 2011

अम्मा की कहानियाँ और मेरा बचपन - तोता और दाल की कहानी (आगे - दृश्य 7)

Scene 7

चारों ओर आग की भयंकर लपटें उठ रही हैं। लाल और पीले रंग के अलावा और कुछ नहीं दिख रहा। आग की लपकती ज्वालाएँ मानो सामने पड़ने वाले किसी को भी लील जाएँ। लपटों में दो बड़ी-बड़ी आँखें हैं जो आग की हैं। बैकग्राउंड से ये पंक्तियाँ चल रही हैं चिंटू की आवाज़ में: ”आग-आग तुम लाठी जलाओ, लाठी न साँप मारे, साँप न रानी डसे, रानी न राजा छोड़े, राजा न बढ़ई डाँटे, बढ़ई न खूँटा चीरे, खूँटा न दाल निकाले, खूँटे में दाल है, क्या खाएँ क्या पीएँ, क्या लेकर परदेस जाएँ”
भयंकर अट्टहास: “ही-ही-हा-हा-हा-हा-हा-हा..........”
आग (वही आवाज़): “तो तुम चाहते हो कि हम, हम जिसे दुनिया अग्नि देव के नाम से जानती है, हम - जिसकी हाथ जोड़कर दुनिया पूजा किया करती है, हम – जो एकबार किसी को घूरकर देख लें तो वो खड़ा-खड़ा राख हो जाए, हम – जिसकी.........”
चिंटू आग के इस स्व-बखान से परेशान हो उठता है और बीच में बोल उठता है – “ओफ्फोह, हाँ अग्नि देव आप ही-आप ही”
आग चिंटू की ओर देखता है और लगातार गर्व भरी गंभीर आँखों से उसे देखता रहता है।
आग: “तो तुम चाहते हो कि हम उस..उस...उस तुच्छ लाठी को जलाने उसके पास जाएँ??”
चिंटू और काका एक-दूसरे को देखते हैं।
आग: “ह: ह:, उस लाठी को कहो हम तक चल कर आए। हम उसे जलाएँगे, अवश्य जलाएँगे”
चिंटू: “पर वह चलकर आप तक नहीं आ सकता”
आग: “कारण?”
चिंटू: “वो-वो दरअसल महाराज...” कहकर चिंटू सोचने लगता है।
आग प्रश्नवाचक दृष्टि से उसकी ओर देखता है।
आग: “देर मत करो बच्चे, जल्दी बताओ। हमारे पास टाइमपास करने के लिए वक़्त नहीं है”
चिंटू (जल्दी से, बिना कुछ सोचे): “उसकी टांग में फ्रैक्चर है”
आग: “तो ठीक है, फ्रैक्चर ठीक होने के बाद आ जाए”
चिंटू कुछ कहना चाहता है पर आग अपने दोनों हाथों से उसे चुप रहने का आदेश दे देता है। चिंटू काका को देखता है। काका: “मैं चला अपनी बहन के पास” – कहकर पीछे मुड़कर उड़ चलता है और जाकर किसी पेड़ की डाल पर बैठ जाता है।
चिंटू: “अरे पापा, सुनो तो...” उड़ता है और पीछे-पीछे जाकर उस डाल पर बैठ जाता है जहाँ काका उड़कर बैठा है।
चिंटू: “अरे आप सुनो तो......हम समुन्दर को बुलाएँगे”
काका: “क्या??????” और बेहोश होकर पेड़ से नीचे गिर जाता है।
चिंटू: “अरे पापा!” नीचे जाता है और अपने पंख से काका को हवा करता है।

क्रमश: