Friday, July 10, 2009

बारिश


मैं देखती हूँ
आकाश में घने, काले बादलों को
उमड़ते, घुमड़ते हुए।
अपने-आप से
इस समूचे, बड़े-से आकाश को ढकते हुए।
कुछ देर बाद ये बादल
धुआँधार पानी बरसाएँगे।
और वह पानी
हमारे खपरैल छत के बीच-बीच से होकर
हमारे घर में कई जगह टपकेगा।
घर के मिट्टी के धरातल को भीगने से बचाने के लिए
माँ
यथासंभव
हर टपकने वाली जगह पर
कोई-न-कोई बरतन रख देगी।
फिर पानी के साथ-साथ
तेज़, ठंढी हवा भी बहेगी
और हम सभी भाई-बहन
दादी के शरीर पर लिपटे शॉल में सिकुड़कर जा घुसेंगे।
तरह-तरह के कीड़े-मकोड़े
अपनी-अपनी जगह से निकलकर
इधर-उधर घूमने लगेंगे,
झींगुर बोलने लगेंगे
हरे-हरे पेड़ धुलकर
चमकने लगेंगे।
फिर कुछ घंटों बाद
यह बरसात रुक जाएगी
और हर छोटे-बड़े गड्ढों, नालियों, तालाबों में
पानी भरकर
हवा के साथ कहीं और भाग जाएगी
और हमारे लिए छोड़ जाएगी
भरपूर कीचड़ से भरे रास्ते
जिसपर सम्हल-सम्हलकर चलते हुए
बाबा खेत तक जाएँगे
और उसमें रोपे गए
धान के छोटे-छोटे पौधों को देखकर
मुस्कुराएँगे।


अचानक तभी
मेरे ऊपर पानी की एक बूंद गिरती है
और मैं अचकचाकर उधर देखती हूँ
जिधर दूर से
माँ हाथ के इशारों से
मुझे बुला रही है
और बाबा ऊपर आसमान की ओर देखकर कह रहे हैं
'बरसो~बरसो'

पानी बरसने लगता है
और मैं
भाग पड़ती हूँ घर की ओर,
इससे पहले
कि मुझे भीगती देख
माँ वहाँ खड़ी-खड़ी नाराज़ हो जाए।

1 comment:

  1. pragya di..
    aapki kuch rachnaon ko padhne ka mauka pahle v mila tha.....khushi hui kee ab aapki rachnaon ko aksar aapke blog pe padha karunga.
    jp log aaj v hasiye v rakhe hue hain unke prati aapki samwedansheelta aapki rachna se jhalakti hai.
    sundar aur sahaj bhaw se piroyi gayee rachna.

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