अफ़सानों के गिरेबाँ में झाँकना
तो हमें याद करना
दीवानों के कारवाँ में झाँकना
तो हमें याद करना।
जब मिल न पाए
ग़म में कोई हँसने वाला
जीने की तमन्ना में
बसने वाला
तो नज़र उठा के
आसमाँ में झाँकना
औ' याद करना।
परदों से खिड़कियों को
जो न ढँक पाया
आँखों से आँसुओं में
न बरस पाया
हो सके तो
उसके गुनाहों को
कभी माफ़ करना।
अफ़सानों के गिरेबाँ में झाँकना
ReplyDeleteतो हमें याद करना
दीवानों के कारवाँ में झाँकना
तो हमें याद करना।
बहुत ही खूबसूरत भाव हैं.और ख़ूबसूरती से शब्दों में पिरोये हैं.शुभ कामनाएं.
प्रज्ञा जी
ReplyDeleteनमस्कार !
हमें याद करना पढ़ कर बहुत अच्छा लगा ।
परदों से खिड़कियों को
जो न ढँक पाया
आँखों से आँसुओं में
न बरस पाया
हो सके तो
उसके गुनाहों को
कभी माफ़ करना …
बहुत ख़ूब !
आपके पास सुंदर भाव हैं, शब्द हैं, … श्रेष्ठ शिल्प के प्रति उदासीन न हों ।
~*~हार्दिक शुभकामनाएं और मंगलकामनाएं !~*~
- राजेन्द्र स्वर्णकार
"हो सके तो
ReplyDeleteउसके गुनाहों को
कभी माफ़ करना।"
वाह क्या पंक्तियाँ हैं..........मगर उक्त पंक्तियों कि सार्थकता कि गुंजाइश कम ही होती है ..............गणतंत्र दिवस कि शुभकामना के साथ धन्यवाद....
प्रज्ञा जी, आपके ब्लॉग का तसल्ली से चक्कर काट कर आ रहा हूँ. बहुत ही सुन्दर भाव और बहुत ही सुन्दर लेखन के लिए मेरी बधाई स्वीकार करें. हम दोनों में फर्क मात्र इतना है की आप अपने भावो को शब्दों में पिरो कर कविता लिखती है और मै उन्ही भावो से गुफ्तगू करता हूँ. कभी मेरी गुफ्तगू में शामिल होने का भी समय निकाले.
ReplyDeletewww.gooftgu.blogspot.com
प्रज्ञा जी,
ReplyDeleteख्याल भी उम्दा है और शिल्प भी बेहतरीन... आपने जिस खुबसुरत ढंग से अपने पाक ज़ज्बात पेश किए है वो पुरकशिश हैं और दिल को सुकून देने वाले भी...।
ख्याल,अल्फाज़ और बाकी सब काबिल-ए-तारीफ है।
सादर
डा.अजीत
www.shesh-fir.blogspot.com
www.meajeet.blogspot.com
अफ़सानों के गिरेबाँ में झाँकना
ReplyDeleteतो हमें याद करना
दीवानों के कारवाँ में झाँकना
तो हमें याद करना।
Kya gazab kee panktiyan hain!
Gantantr Diwas kee dheron badhayee!
@sagebob, राजेन्द्र जी, शिवा, सूर्य गोयल जी, डॉ. अजीत तथा क्षमा जी>>> शुभकामनाओं, प्रोत्साहन तथा मार्गदर्शन के लिए बहुत आभारी हूँ...कोशिश करूँगी कि आप सभी की उम्मीदों पर आगे भी खरी उतरती रहूँ...बहुत-बहुत धन्यवाद...
ReplyDeleteaapki ye kavita bhahut sare bhav man me umdati hai.har shabdh aur usse judi samvedanaye aapki nahi balki mere apni ho jati hai! mujhe antim pankti veshshkar pasand aye hai !bahut vishisht panktiya hai.
ReplyDeleteबहुत संवेदनशीलता से रची है यह रचना ...
ReplyDeleteभाव ख़ूबसूरती से शब्दों में पिरोये हैं| धन्यवाद|
ReplyDeleteबेहद ही भावमयी प्रस्तुति है आपकी। मेरी बधाई स्वीकार करे।
ReplyDelete@दीप्ति, संगीता जी, Patali-The-Village, ehsas>>> आप सभी का बहुत-बहुत शुक्रिया...आपलोगों का स्नेह और मार्गदर्शन मेरे लेखन को बेहतर बनाने का एक प्रमुख कारक है...
ReplyDeletekhoobsurat, bahut khoob...
ReplyDeleteशुक़्रिया फ़ौज़िया...
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