यार हवा
चुप रहो
मत बोलो इतने ज़ोर-ज़ोर से
ठंड की भाषा।
चुप रहो
उसी तरह
जिस तरह
ये ऊँचे-ऊँचे पेड़ चुप हैं
तुम्हारे ये थपेड़े खाकर भी,
मत बोलो उसी तरह
जिस तरह
ये हरा-भरा मैदान कुछ नहीं कहता
अपनी घास को सफेद बर्फ में बदलते देखकर भी,
चुप रहो
जिस तरह
खिड़की के कोने में बैठी
वह बिल्ली चुप है
अपने-आप को परदे के पीछे छुपाकर,
जैसे
ये सड़क चुप है
अपने ऊपर बर्फ का बोझ सहते हुए भी,
उसी तरह
जिस तरह
बाबा के आगे जलते
अलाव की आग कुछ नहीं कहती,
वैसे ही जैसे
भूरा ओवरकोट पहने
मेरी पड़ोसन चुप है।
चुप रहो; क्योंकि
तुम्हारी यह भाषा बहुत ठंडी है
जो हमारे भीतर की गरमी सोख लेती है,
मत बोलो; क्योंकि
तुम्हारी यह तेज़ आवाज़
हमारी कई आवाज़ों को लील जाती है।
और इसीलिए
इन सब की तरह तुम भी
कुछ मत बोलो
चुप रहो,
यार हवा।
Bahut sundar.
ReplyDeleteसुंदर रचना
ReplyDeleteइस बार मेरे ब्लॉग पर
" मैं "
बहुत खूब.......................
ReplyDeleteहवा को तो अभी चुप करा लोगे .. पर क्या होगा जो वो गर्मी में भी चुप हो जायेगी ...
ReplyDeleteया अगर सदा के लिए चली गयी तो क्या होगा ...
@दिगम्बर नासवा जी....इतनी बात तो नहीं मानेगी मेरी, देखिए न आज ही इतने ज़ोर-ज़ोर से फिर चल पड़ी है:)
ReplyDeleteबस इतना ही कहूंगा कि कविता कहने का आपका अंदाज बेहद आकर्षक है। आपकी रचना पाठक को आकर्षित करती और अंत तक बांधे रखती है। और यह किसी कवि के लिए बडी बात है।
ReplyDelete---------
पति को वश में करने का उपाय।
मासिक धर्म और उससे जुड़ी अवधारणाएं।
is hawa ne aapko chup nahi rakha.. aur yeh kavita padhke kuchh aur logon ki chuppi tutegi.. badi hi pyari kavita hain.. likhte rahiye..
ReplyDelete@ज़ाकिर जी, आयुश जी...उत्साहवर्धन के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद...
ReplyDeleteHappy Lohri To You And Your Family..
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क्या कहे जी....
ReplyDeleteजब सभी चुप किये जा रहे है तो हम क्या बोले...
चलो टिप्पणी फिर कभी कर देंगे...आज चुप सही...
कुंवर जी,
बहुत ही प्रभावशाली रचना
ReplyDeleteउत्कृष्ट लेखन का नमूना
लेखन के आकाश में आपकी एक अनोखी पहचान है ..
ख़ामोशी की भी इक जुबान होती है .चुप भी बोलती है धीरे धीरे.
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता है.शुभ कामनाएं .
ठंडी हवा से बातें करने का आपका ये अंदाज़ बहुत दिलकश लगा...बेहद खूबसूरत रचना है आपकी..बधाई...
ReplyDeleteनीरज
"तुम्हारी यह तेज़ आवाज़
ReplyDeleteहमारी कई आवाज़ों को लील जाती है।
और इसीलिए
इन सब की तरह तुम भी
कुछ मत बोलो
चुप रहो,
यार हवा"
मनमोहक ब्लॉग तथा निराले अंदाज में बहुत सुंदर रचना - हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं
बहुत ही प्रभावशाली रचना| बधाई|
ReplyDeleteसर्द हवा से बातें करना
ReplyDeleteऔर
उन बातों को काव्य में हम सब तक पहुंचाना ...
अच्छा लगा !!
Aapki rachna bahut prabhavshali hai ...kei dino se aapke blog tak nahi pahunch saka tha ....kisi karan vash main hindi main tippni nahi kar paa raha hoon aasha hai aap....ise bhi svikar karenge ...apna lekhan anvarat rup se jaari rakhen ...shubhkamnaon sahit ...kewal ram
ReplyDeleteप्रज्ञा जी अच्छी अभिब्यक्ति
ReplyDeleteसुन्दर लगी आप की कविता
बहुत बहुत धन्यवाद
इस ब्लाग पर आते ही कुछ अलग सा महसूस हुआ ! लगता है अपनी छाप आसानी से छोड़ने में सफल रहोगी ....
ReplyDeleteशुभकामनायें !
बहुत उम्दा आपने हवा से इस ठंड में इल्तजा की है ! तस्वीर में बैठा पंछी कविता को और भी सुन्दर किए दे रहा है ! आप को फ़ोलो कर लिया जाए ! मरे ब्लोग पर भी आएं !
ReplyDeleteआप सभी की तहे दिल से आभारी हूँ , आपके प्रोत्साहन का शुक्रिया अदा करते हुए यही आशा करती हूँ कि आप सभी इस ब्लॉग से अपना प्रेम यूँ ही बनाए रखेंगे..
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