Tuesday, June 23, 2009

हमें याद करना

अफसानों के गिरेबाँ में झाँकना
तो हमें याद करना
दीवानों के कारवाँ में झाँकना
तो हमें याद करना


जब मिल ना पाए
ग़म में कोई हँसने वाला
जीने की तमन्ना में
बसने वाला
तो नज़र उठा के
आसमाँ में झाँकना
औ' याद करना।

परदों से खिड़कियों को
जो न ढक पाया
आँखों से आँसुओं में
ना बरस पाया
हो सके तो
उसके गुनाहों को
कभी माफ़ करना।

3 comments:

  1. जब करती हूँ तुम्हें महसूस हर दम अपनी ही खुशबू में... तो कहीं और ढूँढने का क्या फ़ायदा
    जो पल कभी बीते ही नहीं, जो ज़ख्म कभी भरे ही नहीं...जो आंसुओं कभी सूखे ही नहीं...
    जब हम कभी तुम्हें भूले ही नहीं... तो बताओ, तुम्हें याद करके क्या फ़ायदा !!!

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  2. पता नहीं यार कहीं आगे जाकर भूल जाओ तो..:)

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  3. I can see a poet in you Prgaya who expresses through her heart and not mind. The way you sketch people and the vulnerability associated with them says only one thing....that sensitivity is lost in the jungle of misplaced values
    vijay

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