Saturday, September 6, 2014


Part II

हाँ!
तो उसे दिखेगा कैसे?
तो वो तो मैं आपको भी नहीं दिखता
तो मुझे तुझे कोचिंग थोड़े ही न देनी है?
मतलब?
ओफ्फोह! तुझे समझाना तो बहुत मुश्किल है. मतलब ये कि मैं तो सिर्फ तुझसे बातें करताहूँ परंतु वो तो तुझे कोच करेगा. और इसके लिए बहुत आवश्यक है कि तू उसे दिखे
अच्छा, तो ऐसे बोलिए न – भूत की अब समझ में आया – ये तो मुझे पता ही नहीं था – बाबा कितने ज्ञानी हैं! धन्य हैं बाबा, आप सचमुच धन्य हैं.
अब पता चल गया?”
जी
अब ये सोच कि तुझे वहाम किस रूप में जाना है
किस रूप में का क्या मतलब है? मैं किसी भी ख़ूबसूरत, स्मार्ट इंसान के रूप में चला जाऊँगा!
और किसी भी ख़ूबसूरत, स्मार्ट इंसान का ये रूप आएगा कहाँ से?”
कहाँ से क्या? किसी कब्रिस्तान से उठा लाऊँगा
क्या?”
हाँ! इसमें इतने चौंकने की क्या बात है? अब, कोई ज़िंदा, ख़ूबसूरत इंसान तो मुझे अपने भीतर आने की इजाज़त देगा नहीं और जबरन तो मैं किसी में नहीं घुस सकता न! शरीफ भूत हूँ
और कब्रिस्तान में तो तुझे बड़ा ख़ूबसूरत आदमी मिल जाएगा?”
हाँ, क्यों नहीं? ख़ूबसूरत आदमी मरते नहीं क्या? हर कोई मरता है
बिल्कुल, लेकिन मरने के बाद कोई ख़ूबसूरत नहीं रहता. और वैसे भी मुझे कोई शौक नहीं किसी मरे हुए आदमी से धोनी को मिलवाने का
ओह, हाँ – ये तो बड़ी समस्या हुई – तो फिर, क्या करूँ?
ऐसा कर – बाबा ने सुझाया – किसी निर्जीव पदार्थ में घुस जा
निर्जीव पदार्थ? ये क्या होता है?
जो ज़िंदा न हो
तो मरा आदमी भी तो ज़िंदा नहीं होता
लेकिन वो मरा हुआ तो होता है!
तो ये मरा हुआ नहीं होता?”
ये न तो मरा हुआ होता है, न ज़िंदा
आप क्या बोल रहे हैं, मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा

समझने की ज़रूरत भी नहीं है – उसे समझाते-समझाते बाबा की समझ आ गया कि इस बंजर दिमाग पर समझ की फसल उगाने लगा तो भविष्य में कभी किसी को समझाने लायक नहीं रहूँगा – कल मैं एक बल्ला ले आऊँगा, उसी में घुस जाना. अब जा. – बाबा का पुराना क्रिकेट प्रेम जगने लगा था. बचपन में मोहल्ले की क्रिकेट टीम के – दो दिनों के लिए – बल्लेबाज़ थे, ये बात और थी कि थोड़ा कम ज्ञान होने (इस खेल में थोड़ा हाथ तंग होने) के कारण उन्हें अपनी टीम से खेलने का कोई ख़ास मौका न मिल पाया था. उन्होंने सोचा इसी बहाने कुछ देर बल्ला थामने का मौका मिलेगा. लेकिन उनके चेले को उनका ये क्रिकेट प्रेम पता न था सो उसने पूछ लिया –
मगर बाबा बल्ला क्यों?”
यूँ ही
यूँ ही क्यों?”
अब बाबा उसे अपने इस छिपे प्रेम के बारे में बताना नहीं चाहते थे – कहीं क्रिकेट के बारे में कुछ ऐसा पूछ बैठे जिसका उत्तर न जानते हों तो? इज़्ज़त खराब हो जाएगी, फिर बात ही नहीं मानेगा ये मेरी.
बताइए तो बाबा, बल्ला क्यों?”
क्योंकि गेंद बहुत छोटी होती है – बाबा को कोई उत्तर न सूझा – खोने का डर होता है
मगर गेंद-बल्ले के अलावा कुछ और क्यों नहीं?”
कुछ और क्या? बैलगाड़ी बनेगा? उसमें भी ज़िंदा बैलों की ज़रूरत होती है
नहीं, बैलगाड़ी नहीं. कुछ और
जैसे?”
जैसे, कुछ भी, जिसे मैंने पहले कभी इस्तेमाल किया हो. कुर्सी, टी.वी., फ्रिज़ कुछ भी
कुर्सी, टी.वी., फ्रिज़?? दिमाग तो ठिकाने है तेरा? उठा के कैसे ले जाऊँगा मैं? कुली समझ लिया है मुझे? और वैसे भी जब क्रिकेटर बन जाएगा तो बल्ला ही तेरा जीवन हो जाएगा, समझा? इसीलिए अभी से ही अपने-आप को बल्ले के हवाले कर दे
पर बाबा
पर-वर कुछ नहीं. कुछ देर की बात है. एक बार धोनी तुझे क्रिकेट सिखाने को राज़ी हो जाए तो फिर देखा जाएगा
बाबा- भूत को घबराहट हो रही थी – मुझे हमेशा के लिए तो इस बल्ले में नहीं रहना होगा न?
बल्ले में रहेगा तो बल्लेबाज कैसे बनेगा मूर्ख? अब जा, दिमाग खराब मत कर, जाकर आराम से सो जा, कल आना.
-----------------------------------------------------------
रात पूरे शबाब पर थी. चाँद आसमान के बीचोबीच बैठा चुपचाप किसी कल्पना में खोया हुआ था और इसका फायदा उठाकर चाँदनी आसमान से धरती पर अमूमन हर जगह आराम से घूमती फिर रही थी और अपने कदमों के सफेद निशान छोड़ती जा रही थी. हवा शांत थी और माहौल सफेद चाँदनी के रंग में पूरी तरह रंगा था. तब ऐसी रात में माही उधर राँची में घर के अंदर कम्प्यूटर पर ब्लैक हॉक डाउन नामक गेम खेलने में व्यस्त थे.

घंटी बजी – दरवाज़े की.

अभी कौन आ गया? कहीं कोई प्रेस रिपोर्टर तो नहीं – खोला तो सामने गेरुआ वस्त्र धारण किए, लम्बे-लम्बे बाल, दाढ़ी-मूँछ, बड़ी-सी ललाट वाले, हाथों में दण्ड-कमंडल और बल्ला थामे एक साधु बाबा खड़े थे. बल्ला धारित बाबा को देख धोनी कुछ हैरान हुए. ख़ैर, - प्रणाम बाबा, क्या चाहिए? – उन्होंने विनीत स्वर में पूछा.
कोचिंग चाहिए बच्चा
कोचिंग???
हाँ, क्रिकेट की कोचिंग
आपको? – धोनी को आश्चर्य या शायद महा आश्चर्य हुआ.
नहीं, इस बल्ले को – बाबा ने बल्ले को ज़मीन पर टिकाते हुए कहा.
(कहने की ज़रूरत नहीं कि) धोनी हैरान! उन्हें अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ. बल्ले को कोचिंग!! ये क्या कह रहे हैं बाबा? ज़रूर इन्हें विश्राम की ज़रूरत है. लगता है ज़्यादा यात्रा कर ली है, मानसिक रूप से थोड़ा थक गए हैं. बाबा आप अंदर आइए, थोड़ा विश्राम कर लीजिए, फिर बातें करेंगे
बाबा समझ गए. ये मुझे सीरियसली नहीं ले रहा – बच्चा, मुझे विश्राम की आवश्यकता नहीं. तू बता, इसे कोचिंग देगा या नहीं
धोनी चुप.
बाबा ने फिर कहा – देख, एक बार तू मान जा. कह दे तू इसे कोच करने के लिए तैयार है फिर सारी बातें मैं तुझे समझा दूँगा – और आँखों में आशा भर धोनी की आँखों में देखने लगे.
धोनी को पछतावा हुआ – क्यों मैंने दरवाज़ा खोल दिया’- हाथ जोड़कर बोले – बाबा, आप जो आज्ञा देंगे मैं आँखें बंद कर उसे मानूँगा, पर क्षमा करें आपकी ये बात मैं नहीं मान सकता. आपके इस बल्ले को मैं कोचिंग नहीं दे पाऊँगा         
ये सुन उधर बल्ला बने भूत का दिल करीब-करीब आधा डूब गया, सपना फिर से चकनाचूर होने की कगार पर पहुँच गया. उसने धीरे से बाबा को कहा –बाबा इन्हें सब कुछ साफ-साफ बता दीजिए न! कह दीजिए कि ये बल्ला सिर्फ एक बल्ला नहीं है बल्कि इसमें मैं हूँ
बाबा को बात उचित लगी. उन्होंने धोनी से कहा – देख बच्चा, ये जो बल्ला है न जिसे तू सिर्फ एक अदना-सा, साधारण-सा, आम लकड़ी का बल्ला समझ रहा है, साधारण नहीं है. ये एक भूतहा बल्ला है, इसमें एक भूत बैठा है
क्या?????
बाबा ने शायद गलत शब्द का प्रयोग गलत तरीके से कर दिया था. धोनी के होश उड़ गए! भूतहा बल्ला – सारा शरीर सुन्न हो गया, रोंगटे खड़े हो गए, दिल दिमाग सब जाम. मुझे तो पहले ही शक था कि बाबा में कुछ प्रॉब्लम है. लेकिन इतना बड़ा प्रॉब्लम! बल्ला भूतहा! और हो न हो ये बाबा भी ज़रूर कोई तांत्रिक वांत्रिक हैं. हे भगवान, मुझे क्या हो गया था जो मैंने इन्हें भीतर आने दिया. बल्ले में भूत और उसे लेने वाला तांत्रिक! अब क्या करूँ? क्या करूँ? कुछ तो करना पड़ेगा. दिमाग के घोड़े दौड़ाना पड़ेगा. लेकिन इससे पहले कि उनके दिमागी घोड़े (विपरीत दिशाओं में) दौड़ते, बाबा ने उनकी लगाम खींची –
किस सोच में पड़ गया तू बच्चा?”

नहीं, कुछ नहीं बाबा – धोनी बाबा के सामने अपनी अंदरूनी दशा को प्रदर्शित नहीं कर सकते थे.
तो तू चुप क्यों है?
दरअसल मैं सोच रहा था – धोनी ने सचमुच सोचते हुए पूछा – कि इस भूतहे बल्ले को मैं क्यों कोच करूँ?
दरअसल – बाबा हँसते हुए बोले – ये बेचारा-प्यारा सा भूत –.........
बेचारा-प्यारा सा भूत?’
........हम इंसानों की दुनिया में इंसान की तरह ही प्रसिद्ध होना चाहता है. वो तेरे जैसा मशहूर होना चाहता है. ये चाहता है कि हम इंसान इसे खूब प्यार दें, सम्मान दें
धोनी को झटके पर झटके लग रहे थे. शुरु में तो उन्हें भरोसा ही नहीं हुआ लेकिन बाबा ने उनका अच्छा –खासा समय लेकर आख़िर उन्हें इस सच पर विश्वास करने लायक बना ही दिया.

तो ये बात है – माही ने अंत में महसूस किया और बल्ले पर बड़े प्यार से हाथ फेरते हुए सोचा – और मैंने जाने क्या-क्या सोच लिया था, वही तो! बाबा किसी तांत्रिक-वांत्रिक की तरह  दिखते तो नहीं, और इस बल्ले को भी ज़रा देखो तो बेचारा कितना प्यारा है!

लेकिन जहाँ तक कोचिंग की बात थी तो किसी भूतहे बल्ले को कोचिंग देना इतना आसान तो होता नहीं सो धोनी अभी भी हाँ और ना के बीच में अटके थे. उन्हें इस असमंजस से बाहर निकालने (और अपना काम बनाने के लिए भी) के लिए बाबा ने अपना आखिरी दाँव खेला –
अब सब कुछ तेरे हाथ में है बच्चा. तू इसे क्रिकेट सिखाना चाहे तो ठीक पर अगर नहीं सिखाना चाहे तो मैं तुझे एक बात याद रखने की सलाह दूँगा कि भले ही ये बड़ा प्यारा-सा भूत है पर है तो आखिर भूत ही न! अब आगे तेरी मर्ज़ी. तुझे ही निर्णय लेना है – गेंद (या बल्ला?) धोनी के पाले में कर बाबा अलग खड़े हो गए.

मरते क्या न करते, धोनी मान गए. लेकिन उन्हें अभी भी एक बल्ले को कोच करने में थोड़ी असुविधा हो रही थी सो उसका भी उपाय निकाला गया. मेरे ऊपर विश्वास रख का मंत्र जापकर बाबा ने धोनी के चौकीदार रामदयाल की आत्मा को गहरी और लम्बी निद्रा में भेज दिया और शरीर को भूत के हवाले कर दिया – धोनी की समस्या हल कर दी गई.
तो इस तरह शुरु हुई हमारे भूत की क्रिकेट कोचिंग महेंद्र सिंह धोनी के हाथों. अगले दिन दोनों, धोनी और रामदयाल, पहुँचे मैदान पर. धोनी ने पहले दिन उसे बल्लेबाजी के कुछ गुर बताए.
बस यही! अरे ये तो बहुत आसान है. मेरे लिए तो ये चुटकियों का काम है
मतलब?
मतलब ये कि शॉट लगाने के लिए जहाँ आपको तकनीक, टाइमिंग, एकाग्रता वगैरह, वगैरह की ज़रूरत पड़ती है वहीं मुझे सिर्फ चुटकियाँ बजाने की. यहाँ मैंने चुटकियाँ बजाईं और वहाँ गेंद सीमापार!
हाँ, लेकिन यहाँ चुटकियाँ नहीं चलेंगी, तुम्हें असली में खेलना होगा – कोच ने साफ कर दिया – कोई जादू-वादू नहीं

लेकिन हमारे भूत को चुटकियों से बल्लेबाजी करने का आइडिया ज़्यादा आसान, आरामदायक और अच्छा लगा सो धोनी साहब ने बल्लेबाज़ी की ट्रेनिंग छोड़ी और अपने शिष्य को विकेटकीपिंग के ग्लव्स पहनाए.

विकेटकीपिंग ज़रा मुश्किल काम था और थोड़ा सा कम मज़ेदार भी. जबकि बल्लेबाज़ी काफी मज़ेदार थी. अत: हमारी कहानी के मुख्य पात्र द्वारा विकेटकीपिंग पर उतना ध्यान नहीं दिया गया लेकिन बल्लेबाज़ी जमकर की गई और वो भी चुटकियों के सहारे. सामने बॉलिंग मशीन से गेंद आती और चुटकीबजाते ही बल्ले को छूकर सीमा पार कर जाती.

कोच साहब परेशान, हैरान – ये क्या कर रहे हो? मैच में भी ऐसे ही चुटकियाँ बजाओगे क्या?
बिल्कुल सर! देखिएगा कितना मज़ा आएगा, ये गेंद आई और वो स्टेडियम के पार. हर गेंद चौका, हर गेंद छक्का. वाह मज़ा आ जाएगा. मुझे भी और देखने वालों को भी
रात में तीनों खाने बैठे. बाबा ने पूछा, क्यों भई, हमारे भूत की कोचिंग?
भूत नहीं बाबा, रामदयाल कहिए – रामदयाल बना भूत बिगड़ गया – अब मैं रामदयाल हो गया हूँ
हाँ-हाँ, गलती हो गई. तो रामदयाल हो गई कोचिंग?
हाँ बाबा, एक ही दिन में सर की तरह खेलने लगा मैं! – रामदयाल ने खूब उत्साहित होकर बताया.
अच्छा,ये तो कमाल हो गया! – बाबा कोच साहब की ओर मुख़ातिब हुए जो चुपचाप बैठे मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे – ये सच कह रहा है?
कोच ने मुस्कुराते हुए कहा – हाँ, बल्लेबाज़ी करना तो इसके लिए चुटकियों का काम है
अच्छा? – बाबा को आश्चर्य हुआ – ये तो कमाल का प्रतिभाशाली निकला! – और, विकेटकीपिंग बच्चा? वो कैसी चल रही है?”
इससे पहले कि कोच कुछ कह पाते, भूत ने, ओह माफ कीजिएगा, रामदयाल ने झट से उत्तर दिया – वो भी सीख रहा हूँ बाबा, धीरे-धीरे सीख जाऊँगा
हाँ बेटा, विकेटकीपिंग भी मन लगाकर सीखना

लेकिन उनके रामदयाल का मन विकेटकीपिंग में न लगना था और न ही उन्होंने लगाने की कोई ख़ास कोशिश की.
और इस तरह हमारे प्यारे स्वप्निल रामदयाल के क्रिकेट की कोचिंग या यूँ कहें कि बल्लेबाज़ी की कोचिंग चलती रही या शायद यहाँ से कोचिंग शब्द हटा देना ज़्यादा मुनासिब रहेगा. अब तो अगल-बगल के लोग भी धोनी के चौकीदार की बल्लेबाज़ी के कायल होने लगे थे.

ख़ैर, एक दिन हर रोज़ की तरह रामदयाल की बैटिंग की कोचिंग चल रही थी. हालाँकि बल्लेबाज़ के हाथों में जाने क्या जादू था कि उसे किसी भी तरह की कोचिंग की ज़रूरत महसूस नहीं होती थी और इसके इस जादूको कोच भी बखूबी जानते थे और यदा-कदा इसका इस्तेमाल कम करने की सलाह भी देते थे पर अपने ज़िद्दी शिष्य के आगे उनकी एक न चलती थी.

हाँ, तो बल्लेबाज़ी के कोचिंग चल रही थी. तभी दूर से बाबा आते दिखे. कोच दौड़कर उनके पास गए – अरे बाबा आप यहाँ – उन्हें बैठने को कुर्सी दी.
बाबा बैठते हुए बोले- बच्चा, सुना है कुछ दिनों बाद भारत का श्रीलंका के साथ मैच है?
जी बाबा, आपने सही सुना है
और तू है ही टीम का कप्तान
जी, तीन-चार दिनों में मैं मैच के लिए निकल जाऊँगा. पर आप चिंता मत कीजिए. आपके इस प्यारे भूत को और मेरे प्यारे रामदयाल को कोचिंग की कोई खास ज़रूरत नहीं है. अब वो सबकुछ जान गया है. बल्लेबाज़ी तो वैसे भी उसके लिए चुटकियों का काम है और बाकी सभी चीज़ें भी मैंने उसे बता ही दी हैं – बल्लेबाज़ी कर रहे अपने शिष्य को देखते हुए कोच ने कहा.
तो इसका मतलब वो मैच खेलने लायक हो गया है?

मैच? – धोनी का माथा ठनका- क्या आप इसे अभी से मैच खिलाएँगे?

हाँ क्यों नहीं? मैच तो इसे जल्दी से जल्दी खेलना है. तू ये बता खेल सकता है ये मैच?

हाँ वो तो खेल सकता है – धोनी ने कुछ सोचते हुए कहा – लेकिन इसके लिए मैंने अभी कोई टीम तो देखी नहीं. वैसे एक टीम है इधर पर पर वो अभी कोई टूर्नामेंट नहीं खेल रही.

बाबा थोड़े गम्भीर हुए. बोले – बच्चा धोनी, मुझे तुझसे एक बात करनी है

जी बोलिए – धोनी को ज़रा आश्चर्य हुआ, ये बाबा अचानक इतने गम्भीर क्यों हो गए?

पहले वादा कर. जो मैं कहूँगा उसे मानेगा. – धोनी की आँखों में झाँकते हुए उन्होंने कहा.

अगर न मानूँ तो भी तो आप मुझसे अपना कहा तो करवा ही लेंगे – धोनी ने हँसते हुए कहा – फिर, मेरे न मानने की बात कहाँ से आ गई? आप निश्चिंत होकर कहिए जो भी कहना चाहते हैं. मैं वादा करता हूँ सौ फीसदी आपका कहा मानूँगा

ये हुई न बात! मुझे तुझ जैसे अच्छे बच्चे से यही उम्मीद थी – बाबा प्रसन्न हो गए – तू ऐसा कर, इस मैच में अपनी जगह इस रामदयाल को खेला दे

धोनी अवाक रह गए. सिर पर भरा-पूरा आसमान आ गिरा. नीचे की ज़मीन खिसक गई. इसकी तो उन्होंने कल्पना ही न की थी – ये क्या कह रहे हैं बाबा? ये कैसे हो सकता है? मेरी जगह ये कैसे खेल सकता है और वो भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर का मैच?”

क्यों नहीं खेल सकता? अभी-अभी तो तूने कहा था कि ये मैच खेलने लायक हो गया है?”

मैच तो खेल सकता है पर ये वाला नहीं खेल सकता – धोनी ने बाबा को समझाने की कोशिश की – चयनकर्ताओं ने इस मैच के लिए मुझे चुना है, महेंद्र सिंह धोनी को. और इस मैच में मेरी जगह कोई और तब तक नहीं खेल सकता जब तक कि उसे मेरी जगह न चुना जाए. और मेरी जगह किसी और खिलाड़ी को तभी चुना जा सकता है जब घरेलू मैचों में वो मुझसे अच्छा प्रदर्शन करे, जो कि इसने अभी तक नहीं किया है

तो कब करेगा?” – बाबा ने परेशान होकर पूछा.
जब वो घरेलू मैचों में खेलेगा
तो कब खेलेगा?”
इसके लिए उसे नीचे से शुरुआत करनी होगी. पहले सबसे निचली सीढ़ी पर कदम रखना होगा. फिर सीढ़ी-दर-सीढ़ी ऊपर चढ़ना होगा. कोई भी खिलाड़ी एक ही बार में सीधा राष्ट्रीय टीम में नहीं आ सकता
सीढ़ी? क्रिकेट खेलने के लिए सीढ़ी चढ़नी पड़ती है? – बाबा चकित हुए, ये तो आजतक नहीं सुना!
ओफ! मेरा मतलब है कि पहले उसे छोटी-छोटी टीमों से खेलना होगा. छोटे-छोटे टूर्नामेंट खेलने होंगे. फिर धीरे-धीरे बड़ी टीमों से खेलने का मौका मिलेगा. आईपीएल में भी खेल सकता है. उसमें लगातार अच्छा प्रदर्शन करना होगा – धोनी ने खुलकर समझाया – पर आप उसकी चिंता मत कीजिए. मैं उसे किसी अच्छे क्लब में डलवा दूँगा
लेकिन इस तरह तो मशहूर होने में उसे काफी वक्त लगेगा?
हाँ, थोड़ा तो लगेगा

लेकिन हमारे पास उतना वक्त है नहीं. हम रामदयाल की आत्मा को अधिक से अधिक तीन चार महीने और सुला सकते हैं बस. और फिर जो रास्ता तुम मुझे बता रहे हो उसमें तो बेचारे भूत को कई शरीर बदलने पड़ेंगे क्योंकि एक शरीर में चार-पाँच महीनों से ज़्यादा तो हम उसे टिका नहीं पाएँगे. फिर जितनी बार वो नया शरीर लेगा, हर बार उसे बिल्कुल शुरु से शुरुआत करनी होगी और इस तरह वो हर बार सिर्फ शुरुआत ही करता रह जाएगा, अंत तक कभी पहुँच ही नहीं पाएगा.
ये तो मुश्किल हो गई – धोनी भी चिंतित हो गए. बाबा की चिंता जायज़ थी. इस तरह तो वो कभी अपनी मंज़िल पर पहुँच ही न पाएगा.

तभी तो मैं कह रहा हूँ बच्चा, मान जा, थोड़े दिनों की बात है. उसे अपनी जगह खेल लेने दे
पर बाबा मैंने आपको समझाया न कि वो टीम में धोनी की जगह नहीं ले सकता, वो भी ऐसे, इस बार
हम्म्म्म्म- बाबा गम्भीर होकर कुछ चिंतन-मनन करने लगे. कुछ देर तक उन्होंने कुछ नहीं कहा. धोनी भी चुपचाप मैदान पर बैठ उत्साहित रामदयाल को बल्लेबाज़ी करते देखते रहे, वो भी शायद कुछ सोच रहे थे या शायद उन्हें अपने महत्वाकांक्षी, सपनीले शिष्य के लिए दुख हो रहा था. कुछ देर यूँ ही बीत गया. फिर बड़े धीमे स्वर में बाबा ने कहा – बच्चा धोनी?
जी बाबा?- धोनी ने बाबा को देखा. बाबा ने उनके कंधों पर हाथ रखा – तो कोई और इस मैच में धोनी की जगह नहीं ले सकता

धोनी ने सहमति में सिर हिलाया.

पर...... – बाबा ने थोड़ी देर रुककर कहा – तेरी जगह तो ले सकता है?
जी??
हाँ
मैं...मैं कुछ समझा नहीं बाबा – धोनी थोड़ा चकराए और बाबा मुस्कुराए – धोनी को टीम में रहने दे, पर तू कुछ दिनों के लिए बैठ जा
पर – धोनी पूरी तरह से चकरा गए – ये कैसे हो सकता है?”
वैसे ही जैसे तेरा चौकीदार आराम से सो रहा है पर रामदयाल वहाँ मैदान में बल्लेबाज़ी कर रहा है – कहकर बाबा ने रहस्यमयी तरीके से धोनी की ओर देखा.
पर धोनी को ये मंज़ूर न था.
नहीं बाबा, ये मैं नहीं कर सकता
पर तूने वादा किया था मेरी बात मानेगा – बाबा ने याद दिलाया.
हाँ, किया था, पर ये मैं नहीं कर सकता

क्यों भला?

क्योंकि मैं किसी भूत-वूत को अपने-आप में घुसने की इजाज़त नहीं दे सकता. मुझे ये पसंद नहीं है – धोनी ने साफ मना कर दिया – क्या मालूम वो मुझमें घुसकर क्या-क्या करेगा? कहीं उसने मेरे बाल खराब कर दिए तो? – उनका हाथ अपने स्टाइलिश बालों पर चला गया – और टीम इंडिया की कप्तानी? कोई आसान बात है क्या? कैसे करेगा वो?

तू आज ही इस सिरीज़ के लिए कप्तानी से इस्तीफा दे दे – बाबा ने तुरंत उपाय सुझाया. फिर सम्हलकर बोले – सिर्फ इसी सिरीज़ के लिए

कहीं उसने कोई कानूनी गड़बड़ी कर दी तो? फसूँगा तो मैं ही! वो मैं बनकर पता नहीं क्या क्या हंगामें करता फिरेगा और मैं बेचारा यहाँ चुपचाप देखता रहूँगा. देखता भी नहीं बल्कि रामदयाल की तरह सोता रहूँगा – सबसे बेखबर. नहीं-नहीं बाबा, मैं ये नहीं कर सकता, मुझे क्षमा करें

अरे, कोई गड़बड़ नहीं करेगा. मैं इसकी गारंटी लेता हूँ – बाबा ने पूरे आत्मविश्वास से कहा –और वैसे भी बच्चा कोई और रास्ता भी तो नहीं है हमारे पास. और कहाँ ये सबकुछ हमेशा के लिए होनेवाला है. बस एक दो दिनों की ही तो बात है, फिर जैसे ही उसके सिर से प्रसिद्धि का ये भूत उतरेगा तू वैसे ही अपने शरीर में वापस चले आना

और अगर उसके सिर से भूत नहीं उतरा तो?
तो मैं उतार दूँगा

आप क्या कर लेंगे बाबा? वो भूत है, जो चाहे कर सकता है.
वो भूत है तो मैं भूतनाथ का भक्त हूँ. ये दण्ड देख रहा है? – बाबा ने अपना चमकीला दण्ड उठाया – इसमें वो शक्ति है जो किसी भी भूत का वर्तमान और भविष्य बना-बिगाड़ सकती है
पर बाबा – धोनी खुद को तैयार नहीं कर पा रहे थे.
देख बच्चा – धोनी को तैयार न होते देख बाबा ने नरम, मुला
यम, भीगे-भीगे शब्दों से उन्हें अपने पक्ष में करनेकी कोशिश की. उसके सपनों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा – तू तो जानता है कि कितने दिनों से वो बेचारा इस दिन का सपना पाल रहा है. देख, कितनी तन्मयता और उत्साह से बल्लेबाज़ी कर रहा है, किसलिए? सिर्फ इसलिए कि बहुत जल्द वो तेरा मुकाम हासिल कर पाएगा, कभी तेरी तरह खेल पाएगा. – धोनी पर शायद असर हो रहा था. कम से कम उनके चेहरे के चढ़ते-उतरते, बनते-बिगड़ते भावों को देखकर तो ऐसा ही लग रहा था. बाबा बोलते रहे – तूने उसका सपना पूरा करने में मेरी इतनी मदद की है, थोड़ी सी और कर दे. अपनी सबसे बड़ी खुशी के इतने करीब लाकर उसे इससे दूर न कर. देख तूने वादा किया था मेरी बात मानेगा, अब इससे मुकर रहा है?

वादा तो किया था, पर इस तरह उसे निभाना पड़ेगा, नहीं जानता था – धोनी खिन्न हो गए थे. उन्हें खिन्न देख बाबा ने कहा – बेटा, मैं जानता हूँ कि मैं तुझसे बहुत ज़्यादा मांग रहा हूँ, स्वार्थ की हद तक, या शायद उससे भी आगे. लेकिन क्या करूँ इस पागल भूत के पागलपन और इसके प्रति प्रेम के कारण ऐसा करने को मजबूर हूँ

दोनों काफी देर तक चुप बैठे रहे. दोनों की चुप्पी देख सूरज ने भी अपनी खिलखिलाती रौशनी की चादर को समेट लिया और चुपचाप धरती की रजाई के भीतर अपना आधा चेहरा छिपा टुकुर-टुकुर उन्हें देखने लगा. हवा भी शांत हो आई और छोटे-छोटे दो-चार तारे आकाश की खिड़कियाँ खोल कहीं-कहीं से नीचे झाँकने लगे. हालाँकि रात अभी पसरी नहीं थी पर सूरज की रौशनी ढल चुकी थी. न पूरा अंधेरा रहा, न पूरा उजाला.

क्रमश:

No comments:

Post a Comment