वो एक ऐसी रात थी जिसे
तारों की ज़रूरत नहीं थी, उसे खुली पलकों और बंद पलकों दोनों से देखा जा सकता था
क्योंकि बंद और खुली दोनों पलकें घुप्प अंधेरा ही दिखाती थीं. हू – हू कर हवा बह
रही थी और हवा में झूमते पेड़ भी उस हवा का संगत में अजीब तरह की आवाज़ें निकाल रहे
थे. वह ऐसी डरावनी रात थी जिसने खुद को ही डर से आईने में नहीं देखा था. वह रात
भूतों की थी. वह मुहल्ला भूतों का था, वह रास्ता भूतों का था जिधर से होकर इस तरह की रात में कोई
आता-जाता नहीं था. सिर्फ भूत और भूत और भूत. उनके ठहाके, उनके कहकहे, उनके किस्से-कहानियाँ, उनके दुखड़े और उनके सपने.
..........सपने? और भूतों के? आश्चर्य हुआ न? खुद भूतों को भी हुआ था, उनके लिए भी ये हैरानी की बात थी. हुआ यूँ था
कि इसी रात भूतों की मंडली में एक युवा, सपनीले भूत ने अपने सपने की बात उनसे बताई थी. और वो सपना
भी क्या था? आम भूतों की तरह किसी को डराने का,
धमकाने का, उन्हें परेशान करने का नहीं बल्कि लोकप्रिय होने
का, नाम कमाने का, पहचान बनाने का और
वो भी मरे भूतों के बीच नहीं.....ज़िंदा इंसानों के बीच, मानव
दुनिया में यानि......हमारी-आपकी दुनिया में!
जी हाँ, ये सपना सच था और इस सपने को सच भी कर
दिखाया गया, हाँ थोड़े अलग तरीके से पर किया गया ज़रूर. कैसे? सुनिए.
अपने इस सपने को सच करने की तलाश में वह कई दिनों से भटका
रहा था. और भटकते-भटकते उसे इस सच्चे ज्ञान की प्राप्ति हो गई थी कि उसका दिमाग
इतना उपजाऊ नहीं कि उसपर इस सपने को सच कर दिखाने के तरीकों की फसल उगाई जा सके
इसीलिए काफी सोच-विचार के बाद उसने अपने मन की इस बात को उस अंधियारी रात में अपनी
मंडली के सामने रखी जिसे सभी ने सुना और बड़े ग़ौर से सुना. फिर कुछ समझदार
बड़े-बुज़ुर्गों से सुझाव भी मिले जो इस प्रकार हैं –
“बेटा, मानवों की दुनिया में नाम कमाना चाहते हो
तो उन्हें खूब डराओ-धमकाओ, तरह-तरह से परेशान करो, उनके घर की चीज़ों को उलट-पुलट कर दो, रात में ठीक
बारह बजे किसी का सफेद दुपट्टा ओढ़कर किसी इंसान को अचानक दर्शन दे दो. कभी किसी की
खुली खिड़की में झाँक आओ, बंद हो तो सिर्फ चुपचाप उधर से गुज़र
जाओ, पेड़ पर उल्टा लटक जाओ और खूब चीखो-चिल्लाओ. कभी-कभी
ज़ोर-ज़ोर से हँसा करो, कभी रोने भी लगो. ऐसे-ऐसे काम करो कि
पब्लिक में तुम्हारी दहशत फैल जाए और फिर देखो इंसानों के बीच तुम कैसे मशहूर हो
जाते हो. पूरे इलाके में और उसके आसपास भी तुम्हारे ही चर्चे होंगे, लोग तुम्हारे नाम से डरेंगे, काँपेंगे और मज़े की
बात तो ये कि डर-डर कर और काँप-काँप कर और थर-थर कर भी वे तुम्हारी ही बातें
करेंगे. तुम उनके बीच हॉट सब्जेक्ट हो जाओगे बेटा. फिर तुम्हारे नाम का डंका बजेगा” – बुजुर्ग भूतों ने बड़े जोश से अपना सारा अनुभव
उंडेल दिया था.
“पर मुझे डंका नहीं बजवाना, मुझे तो सीटी बजवानी है, सीटी”
“सीटी??? ये क्या होती है?” – आदिम ज़माने के सबसे बूढ़े भूत ने दाढ़ी खुजलाते
हुए पूछा.
“ओफ, होती है कुछ” – वह झुंझला उठा और जाने को उठ खड़ा हुआ – “आपलोगों को तो कुछ कहना ही मुश्किल है. वही
पुराने आप और वही पुराने आपके पारम्परिक रीति रिवाज़ वाले सुझाव.”
“अच्छा – अच्छा बैठ तो” – उनमें से एक ने, जो ज़रा ज़्यादा
अप-टू-डेट था, बात सम्हालते हुए
पूछा – “तू सीटी क्यों बजवाना चाहता है? क्या उसमें कुछ
स्पेशल होता है?”
“आप नहीं समझ रहे, मुझे वो नहीं चाहिए
जो आप कह रहे हैं”
“तो क्या चाहिए” – सभी को उत्सुकता हुई. इसे क्या चाहिए भई!
“दरअसल” – हमारे भूत ने कुछ रुककर कहा – “मैं नहीं चाहता कि लोग मेरे नाम से काँपने लगें, डरने लगें, घबराने लगें वगैरह वगैरह. मैं तो ये चाहता हूँ कि लोग मेरे नाम से खुशी से
तालियाँ बजाएँ, सीटियाँ बजाएँ.
मेरे डर से पागल न हों बल्कि मेरे लिए पागल हो जाएँ” – वह बोलता जा रहा था – “मैं इंसानों की दुनिया में फेमस होना चाहता हूँ, पॉपुलर होना चाहता हूँ, वे मुझसे भागें नहीं मेरे करीब आएँ. मैं उनके
बीच विख्यात होना चाहता हूँ, सुख्यात होना चाहता
हूँ, कुख्यात नहीं.”
ये कहना था कि मंडली में तहलका मच गया.
“ये तू क्या बोले जा रहा है? ये हम क्या सुन रहे
हैं?”
“वही बोल रहा हूँ जो बोल रहा हूँ और आप वही सुन रहे हैं जो आप सुन रहे हैं”
“तो बज गई तेरी सीटी. अब तो शैतान ही तेरा मालिक है. ऐसा भी कभी हुआ है कि
इंसानों की दुनिया में भूत वो क्या होता है ‘ख्यात’! ख्यात हो जाएँ?”
“विख्यात और सुख्यात बोला था मैंने”
“हाँ वही. ऐसा नहीं होने वाला बेटा, न तो ऐसा आजतक कभी
हुआ है और न होगा” – और इस भविष्यवाणी के साथ वो मंडली उस रात वहीं खत्म हो गई.
कई रात और कई दिन हमारे सपनीले भूत को आराम नहीं मिला. दिन का चैन - रातों की
नींद, भूख-प्यास सब खत्म. अपनी मंडली में आना-जाना
छोड़ दिया. अंधियारी रातें चाँदनी रातों में बदल गईं पर इसके मन के
अंधेरे आँगन में कोई चाँद नहीं उतरा. दुनिया उजड़ी-उजड़ी सी नज़र आने लगी, अपने सब पराए हो गए, सपने सब धूल में जा मिले, ख़ुद के होने का एह्सास ही न रहा. सब कुछ बदल
गया. लेकिन कहते हैं न कि धूल-धूसरित भले ही हो जाएँ पर सपने इतनी आसानी से मरते
नहीं इसलिए उन सपनों ने कुछ दिनों बाद फिर से एक दिन हमारे नायक का हाथ थाम लिया.
हुआ यूँ कि एक दिन एक नेता की एक झलक पाने को बेताब भीड़ की बेकरारी ने पास के पेड़
पर लटके उसके टूटे सपनों से भरे ह्रदय के तारों को छेड़ दिया. उसे नेताजी से
ईर्ष्या हो आई – “इन नेताओं को कितना अच्छा है, लोगों की पूरी भीड़
लगी होती है इनके पीछे! हीरो-हिरोइनों को देखो! इनकी एक झलक पाने के लिए इतनी
उछलकूद होती रहती है. ......और एक मैं हूँ, कोई पूछने वाला नहीं. चुपचाप बैठा हूँ, बैठा भी नहीं लटका हुआ हूँ यहाँ” – एक लम्बी
साँस उसके मुँह से निकली – “काश! मैं भी उन जैसा हो पाता” – और बस
कल्पना की उड़ान शुरु हो गई.
“अगर मैं फेमस हो जाऊँ तो अपने प्रशंसकों से किस तरह मिलूँगा? किस
तरह उनसे हाथ मिलाऊँगा? जो लोग मेरी एक झलक को बेताब होंगे
उन्हें देख किस स्टाइल में हाथ हिलाऊँगा? सोनिया गाँधी
स्टाइल या फिर शाहरुख़ ख़ान स्टाइल में? शाहरुख़ ख़ान के स्टाइल में
हिलाऊँगा.......और क्या-क्या करूँगा? फोटो खिचवाउँगा, इंटरव्यू दूँगा. इंटरव्यू तो मैं हर टी.वी. वाले को दूँगा, किसी को निराश नहीं करूँगा. वैसे.....इंटरव्यू में मुझसे पूछेंगे क्या?” – काफी देर
तक माथा-पच्ची करने पर भी सवाल नहीं सूझा तो – “ख़ैर, जो
पूछना हो पूछें, मैं सारे प्रश्नों का जवाब दूँगा, कोई भी प्रश्न टालूँगा नहीं. खूब सारे ऑटोग्राफ दूँगा. लेकिन ऑटोग्राफ में
साइन किस नाम से करूँगा?” – अब ये तो बड़ी परेशानी हुई. ऑटोग्राफ देने के लिए कोई नाम
तो होना चाहिए – “क्या नाम होना चाहिए? कौन सा नाम मेरे ऊपर सूट करेगा? अरे, क्या फर्क पड़ता है, कोई
भी नाम रख लूँगा. लेकिन नहीं कोई बढ़िया, ऑरिजिनल सा नाम होना
चाहिए.”
नाम के बारे में सोचते-सोचते जनाब का संतुलन बिगड़ा और
धड़ाम.....सीधा धरती पर.
काफी देर तक धरती मैया की गोद में बेहोश पड़े रहे. होश आया
तो देखा ज़मीन पर पड़े हैं. जल्दी से उठे. खुद को झाड़-वाड़ कर ऊपर की ओर जाने ही वाले
थे कि नज़र पड़ी पेड़ की दूसरी तरफ बैठे एक तेजस्वी-ओजस्वी साधु बाबा पर. चेहरे पर
जैसे सूरज-चाँद दोनों आकर ठिठक गए थे और आगे जाने का रास्ता भूलकर वहीं रह गए थे.
बाल इतने लम्बे, काले, घने और जट्टेदार मानो कोयले के
ढेर के ढेर लगे हों, दाढ़ी–मूछें उसी से प्रतियोगिता करती
हुईं. गेरुआ वस्त्र धारण किए, माथे पर भस्म रमाए बाबा पालथी
लगाकर, आँखें बंद किए धीरे-धीरे शायद किसी मंत्र का जाप कर
रहे थे. उन्हें देखकर हमारे स्वप्निल नायक को लगा, ‘बाबा तेजस्वी लग रहे हैं. अगर इनसे अपनी बात कहूँ तो शायद ये मेरी समस्या
का समाधान कर दें.’
बस फिर क्या था, ये ख़याल दिमाग में आते ही महाशय पहुँच गए
बाबा की चरणों में.
बाबा डीप थिंकिंग में थे, गहन चिंतन में थे, बुरी तरह से भगवान के ध्यान में मगन थे, चारों ओर से
ख़ुद को समेट कर भगवान को प्रसन्न करने के चक्कर में लगे हुए थे, दीन-दुनिया भूलकर उसी में लीन थे. लेकिन हमारे भूत को इससे क्या
लेना-देना? वो तो अपने ही चक्कर में था सो लगा बाबा के चरणों
में लोटने.
“बाबा, मेरी सहायता करें बाबा, मैं बहुत परेशान हूँ, मुझे आपका सहारा चाहिए बाबा.
आप ही मेरा उद्धार कर सकते हैं, मेरे सपनों को साकार कर सकते
हैं. आँखें खोलिए बाबा...मेरा इस भरी-पूरी दुनिया में कोई नहीं, कोई नहीं जो मुझे समझ सके, कोई नहीं जिसे मैं अपना
कह सकूँ, आप ही मेरा एकमात्र सहारा हैं बाबा...मेरा
मार्गदर्शन करें. मैं स्वयं को आपके चरणों में सौंपता हूँ,
अर्पित करता हूँ, समर्पित करता हूँ” – मनुष्य
योनि में पढ़ी गई हिंदी आज उसके काम आ रही थी – “अब आप चाहें तो मुझे शरण दें और न चाहें...........तो भी
शरण दें. मैं आपको छोड़कर कहीं नहीं जाऊँगा, आपकी तेजस्विता ने मुझे मोहित कर लिया है.
अब आप ही मेरे सबकुछ हैं, त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बंधुश्च सखा त्वमेव, त्वमेव विद्या च
द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्वम मम देव देव”
बाबा बड़े घबराए. कौन है भाई? कहाँ है? किधर है? ऊपर है? नीचे है? दाएँ है? बाएँ है? आकाश में, पाताल में? पेड़ पर, जड़ में? कहाँ है?
“बाबा, मेरा कल्याण करें बाबा” – भूत भयंकर
रूप से गिड़गिड़ा रहा था.
“अरे, पर तू है कहाँ?” – बाबा
विचलित हो उठे.
“सामने हूँ बाबा”
“सामने?? कहाँ? मुझे तो नहीं
दिखता” – बाबा ने बड़ी कोशिश की लेकिन काफी ज़ोर डालने पर भी उन्हें
कुछ नहीं दिखा. आँखें फाड़कर, सिकोड़कर, मींचकर, खोलकर, दाएँ से, बाएँ से, सब तरफ से देखा, पर सामने कोई नहीं दिखा. एक तो
आवाज़ से घबराए हुए थे ही, आवाज़ का मालिक दिखा नहीं तो उन्हें
लगा कोई उनके साथ मसखरी कर रहा है. बस क्रुद्ध हो गए, हाथ
में कमंडल लेकर उच्च स्वर में बोले – “अरे कौन है
मूर्ख? मेरे साथ मसखरी कर रहा है, मज़ाक कर रहा है मेरे पास? एक शाप दूँगा यहीं भस्म हो जाएगा”
बाबा का ये रूप देख भूत के होश उड़ गए, ऊपर से नीचे तक
काँपने लगा. उसे लगा ये तो उल्टा ही हो गया. कहाँ मैं उद्धार कराने आया था और कहाँ
संहार की बात हो गई! तुरंत हाथ जोड़कर हिलती आवाज़ में बोला – “नाराज़ मत होइए बाबा, मैं शैतानी नहीं कर रहा. आपको परेशान नहीं कर
रहा, मैं तो ख़ुद ही परेशान हूँ.”
अब बाबा चकराए, ‘आवाज़ तो सामने ही से आ रही है. पर कोई दिख नहीं
रहा....लगता है चश्मा लगवाना पड़ेगा. दृष्टि में कुछ समस्या उत्पन्न हो गई है’, लेकिन जब तक बाबा अपनी इस नई समस्या के बारे
में कुछ सोचते, भूत ने अपनी पुरानी
समस्या व परिचय बताकर बाबा की इस नई उभरती समस्या का पलभर में निदान कर दिया.
हाथ जोड़कर बोला- “बाबा, आपके सामने अत्यंत ही निरीह–सा एक भूत खड़ा है
जो दर-ब-दर की ठोकरें खाता फिर रहा है. उसे कोई पूछने वाला नहीं है” – कहते-कहते उसकी आवाज़ भर्रा गई और वह आगे कुछ
न कह पाया.
बाबा निश्चिंत हुए. ‘अच्छा तो भूत है तभी मुझे नहीं दिख रहा था. पर ये मेरे
पास क्यों आया है? हाँ याद आया; किसी समस्या से ग्रस्त है. पर इसके सामने
कौन-सी ऐसी समस्या आ खड़ी हुई कि ये मेरे पास आ पहुँचा? बेचारा आवाज़ से तो बड़ा भोला-भाला, मासूम सा लगता है, जाने किस समस्या से ग्रसित हो गया है?’ – उनका ह्रदय पिघल गया –
“क्या हुआ बच्चा? तुझे किस बात की
परेशानी है?”
“वो – अ – वो” – भूत का गला जाने क्यों अटकने लगा. शायद उसका पहला अनुभव उसकी आवाज़ रोक रहा
था. उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह कैसे अपनी परेशानी बताए.
कोई आवाज़ न मिलने पर बाबा ने पूछा – “क्या हुआ? समस्या भूल गया
क्या?”
“नहीं बाबा, दरअसल मेरी समझ में नहीं आ रहा कि कैसे कहूँ?”
“झिझक मत बच्चा. जो कहना है कह डाल. तेरी हर समस्या का मैं निदान करूँगा.”
“करेंगे न बाबा?”
“हाँ हाँ अवश्य! क्यों नहीं? पर पहले अपनी
समस्या तो बता” – बाबा को उत्सुकता हो रही थी – आखिर भूतों की क्या समस्या हो सकती है?
“समस्या ये है बाबा कि मैं इंसानों की दुनिया में फेमस होना चाहता हूँ” – भूत ने अपनी बड़ी-सी समस्या बाबा के सामने रख
दी.
पर ये क्या? इतनी गंभीर समस्या
सुन बाबा हँसने लगे! हमारा प्यारा नायक रुँआसा हो गया – “बाबा आप हँस रहे हैं?”
बाबा संभले – “अरे नहीं-नहीं” – बेचारे पर हँसना नहीं चाहिए – “मैं तो बस यूँ ही अपने कलीग बाबा रामदेव द्वारा
बताए गए एक योग का अभ्यास कर रहा था” – फिर गंभीर होकर बोले – “देख बच्चा, जहाँ समस्या होती
है, वहीं उसका समाधान भी होता है. तेरी समस्या का
भी समाधान है.”
“जी बाबा, है?” भूत को विश्वास ही नहीं हुआ. बाबा ने उसकी इतनी
बड़ी समस्या का निदान इतनी जल्दी और इतनी आसानी से कर लिया?
“सुन” – बाबा बोले – “इंसानों की बस्ती में जा और उन्हें खूब बुरे-बुरे तरीकों से डरा. फिर देख कैसे
तेरी तूती बोलती है, इतना प्रसिद्ध हो
जाएगा कि मीडिया वाले भी तुझे ही सुर्ख़ियाँ बनाएँगे.”
“ओफ बाबा, आप भी वही
घिसी-पिटी योजना बता रहे हैं” – बेचारा निराश हो गया – “मैं वैसी प्रसिद्धि नहीं पाना चाहता. मैं कुछ हट कर मशहूर होना चाहता हूँ.”
“ओह! तो कुछ हट के डरा” – सुझाव मिला.
अब तो बेचारा पूरी तरह से हताश हो गया. सचमुच मेरे सपनों को
कोई नहीं समझ सकता. बाबा ने भी नहीं समझा – “आप भी मेरी बात
नहीं समझ रहे. मैं वैसा फेमस नहीं होना चाहता. मैं इंसानों की दुनिया में इंसानों
जैसा पॉपुलर होना चाहता हूँ.”
“ओह” – बाबा को अब बात समझ में आई – “इंटरेस्टिंग”- बाबा ने सोचा.
पढ़े-लिखे थे. अंग्रेज़ी में भी सोचते थे. “पर बच्चा” – उन्होंने भूत
को समझाया – “इंसान भी अलग-अलग तरह के प्रसिद्ध होते हैं. एक वो जो सुरेंदर – मनिंदर जैसे
होते हैं, एक वो जो शाहरुख़ – सचिन जैसे होते हैं, एक वो जो मेरे और रामदेव जैसे होते हैं, एक वो जो लता-आशा-रफी-किशोर जैसे होते
हैं.....और भी होते हैं कई तरह के” – बाबा का स्टॉक खत्म हो रहा था – “तू बता, तू किस तरह की
प्रसिद्धि चाहता है?”
अब ये तो बड़ी उलझन वाली बात हो गई! भूत कंफ्यूज़ हो गया. उसे किस तरह की
प्रसिद्धि चाहिए? इस बारे में तो
उसने कभी सोचा ही नहीं था. अब क्या करे? खूब सोचा-विचारा
लेकिन समझ में नहीं आया.
“मैं ये सब नहीं जानता. ये जिम्मा आपका. मैं सिर्फ इतना जानता हूँ कि मैं
प्रसिद्ध होना चाहता हूँ. चाहता हूँ कि हर इंसान मुझे जाने-समझे, और ना जाने तो जानने की कोशिश करे, मुझे प्यार करे, मुझे मान दे-सम्मान दे.”
“और बदले में तू उन्हें क्या देगा?”
“ऑटोग्राफ दूँगा, फोटोग्राफ
खिचवाऊँगा उनके साथ, इंटरव्यू दूँगा, और जितना चाहेंगे उतना दूँगा. कभी ना नहीं
कहूँगा” – भूत ने अपनी दरियादिली का परिचय दिया.
“मैं समझ गया” – बाबा बोले – “समझ गया तुझे कैसी प्रसिद्धि चाहिए. अब, एक काम कर, चुपचाप यहाँ बैठ जा. कुछ देर मुझे शांति से
सोचने दे, फिर मैं तुझे बताता हूँ कि तुझे क्या करना है
और कैसे करना है” – बाबा ने आँखें बंद कीं और ध्यान में लीन हो गये. भूत चुपचाप उनके सामने
पालथी लगाए बैठ गया. एक घंटा बीता, दो घंटे बीते, तीन घंटे, चार घंटे, पांच.....बाबा ने आँखें नहीं खोलीं. भूत बैठा
इंतज़ार करता रहा, टकटकी लगाए देखता
रहा, ‘बाबा अब आँखें
खोलेंगे – अब आँखें खोलेंगे – अब आँखें खोलेंगे’- मगर बाबा थे कि एक बार जो आँखें बंद कीं तो खोलने का नाम ही नहीं! भूत को शक
हुआ – ‘कहीं बाबा मुझे भूल तो नहीं गए? या कहीं ऐसा तो नहीं कि उपाय सोचते-सोचते सो गए’ – उसने धीरे से पुकारा – “बाबा”- कोई हरकत नहीं. बाबा वैसे के वैसे ध्यान में
लीन!
अब उन्होंने चुपचाप रहने को कहा था सो इसकी हिम्मत भी नहीं हो रही थी कुछ
करने-कहने की. लेकिन अपनी शंका का समाधान भी ज़रूरी था.
“बाबा”- इस बार ज़रा जोर से.
अब भी कोई असर नहीं.
“बाबा”- उसने अपनी आवाज़ और ऊँची की पर फिर भी बाबा पर कोई असर नहीं, अंगुलियाँ तक नहीं हिलीं. अब उसे पक्का यकीन हो
गया कि बाबा सो गए.
नींद से जगाने को ज्यों ही उसने अपना हाथ बढ़ाया, बाबा ने आँखें खोल दीं और प्रसन्न होकर बोल उठे – “मिल गया, समाधान मिल गया”
“याहू!!!” भूत खुशी से झूम उठा. अब ये खुशी समाधान मिलने की थी या उनकी आँखें खुलने की, यह उसे खुद नहीं पता.
“अरे, पहले सुन तो
ले क्या मिला, फिर याहू – वाहू करना”
“मुझे पता है क्या मिला है” –
नाचते-नाचते वह बोला.
बाबा को भयंकर आश्चर्य हुआ. इसे कैसे पता चला? मैंने
तो इसे अभी बताया ही नहीं और न ही मैंने इसके साथ पार्टनरशिप में ध्यान लगाया था, फिर इसे मेरे बिना बताए कैसे पता चल गया, कहीं इसने
किसी भूतहा विद्या का इस्तेमाल तो नहीं किया?”
“क्या मिला है?” – बाबा की भवें तिरछी हुईं.
“समाधान!” – उत्तर मिला.
“पर समाधान क्या है?”
“ये” – भूत ठिठका – “ये मुझे नहीं पता”
“फिर?” – बाबा झुंझला उठे – “पहले समाधान
सुन ले फिर खुशी मनाना”
बात सही है. पहले समाधान तो सुन लूँ फिर खुशी मनाऊँगा. भूत
चुपचाप बैठ गया.
“जी बाबा, बताइए”
“तुझे प्रसिद्धि चाहिए न?”
“अरे, ये आपको अब पता चला है?” – उसे घोर
आश्चर्य हुआ. बाबा ने उतनी देर से यही पता किया है? – “मैं उतनी देर
से आपको यही तो कह रहा हूँ!”
“अरे, तुझे प्रसिद्धि चाहिए न?”
“जी हाँ, वो तो चाहिए ही” – भूत बोला.
उतनी देर तक आँखें बंद किए यही सोचते रहे?
“तो तू क्रिकेट खेल” – बाबा ने समाधान
बताया.
“क्रिकेट??”
“हाँ! आजकल क्रिकेट खिलाड़ियों से प्रसिद्ध कौन है?”
“पर बाबा” – भूत परेशान-सा हो गया – “मैं तो
क्रिकेट खेलना जानता ही नहीं”
“ओहो, तो इसमें परेशान होने की क्या बात है?” – बाबा ने
उसे निश्चिंत करते हुए कहा – “उसका भी समाधान मैंने सोच लिया है. तू मुम्बई जाने का
रास्ता जानता है?”
“मुम्बई? मगर क्यों?”
“तू पूछता बहुत है. मुम्बई में दुनिया का सबसे बेहतरीन क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर
रहता है”
“सचिन! हाँ हाँ मैं जानता हूँ. तो क्या आप मुझे सचिन बना देंगे!” – भूत मारे खुशी के उछलने लगा.
“अरे मूर्ख, पहले ये तो बता कि
वहाँ का रास्ता जानता है?”
भूत को सहसा झटका लगा. सारी खुशी पल भर में हवा हो गई. बेचारा मायूस हो गया.
सारे सपने फिर से एक ही झटके में टूट गये. दुखी होकर बोला – “नहीं बाबा रास्ता तो मैं नहीं जानता”
बाबा भी थोड़े निराश हुए. परंतु कुछ ही
क्षणों में उन्होंने वापस पूछा – “राँची का रास्ता जानता है या वो भी नहीं जानता?”
इतना कहना था कि भूत उछलकर खड़ा हो गया – “क्यों नहीं जानता? बिल्कुल जानता हूँ! वहाँ तो मैं कई बार गया हुआ हूँ. मेरा जिगरी दोस्त अपना
दूसरा जन्म लेने से पहले वहीं तो रहता था!”
“फिर ठीक है. कल हमलोग दोनों राँची चले चलेंगे”
‘क्यों? राँची क्यों? क्या
सचिन ने अपना ट्रांसफर राँची करा लिया? हो सकता है’ – भूत को सोच में डूबा देख बाबा ने पूछा – “क्या हुआ बच्चा? किस सोच में डूबा है?”
“बाबा”- अपने होठों को चबाते हुए भूत ने कहा – “मैं सोच रहा था..........कि हमलोग राँची क्यों
जा रहे हैं?”
बाबा मुस्कुराए – “धोनी को पहचानता है?”
“धोनी!!!” – भूत मानो उछल पड़ा – “अरे, धोनी को कौन नहीं पहचानता बाबा? वो तो
राँची का राजकुमार है! क्या सुपरहिट छक्के मारता है, चौके
निकालता है तो ऐसा लगता है मानो रॉकेट आसमान की जगह ज़मीन पर छूटे हों! और क्या
हेयर स्टाइल करवाता है. और कप्तानी तो खैर कहने की बात ही नहीं, एक नम्बर की करता है, वर्ल्ड कप जीत चुका वर्ल्डकप! आप जानते भी हैं वर्ल्ड कप क्या होता है? मेरे तो
हज़ारों दोस्त उसके फैन हैं”
“फिर ठीक है. कल उसके यहाँ चलेंगे. उसे तेरे पागलपन के बारे
में बताएँगे और कहेंगे कि तुझे क्रिकेट खेलना सिखा दे. फिर तू भी क्रिकेटर बन जाना
और खूब नाम कमाना”
“हाँ! मैं क्रिकेटर बन जाऊँगा? वो सिखा देगा?" – भूत को विश्वास नहीं हुआ.
"हो सकता है"
"तब तो बड़ा मज़ा आएगा" – भूत की उत्तेजना की सीमा
नहीं थी.
"आना तो चाहिए"
क्रमशः
क्रमशः
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