Saturday, September 17, 2011

अम्मा की कहानियाँ और मेरा बचपन - तोता और दाल की कहानी (आगे - दृश्य 21 और 22)

Scene 21


पूरे नगर में आग फैलती हुई आगे बढ़ रही है। मकानों, प्राणियों और पेड़ों को छोड़कर पूरी ज़मीन पर आग फैलती जा रही है। सभी लोग डरकर इधर-उधर भाग रहे हैं। हाहाकार मचा हुआ है। धुएँ और आग के सिवा कुछ भी ठीक से नहीं दिख रहा। आग चारों ओर यही कहते हुए तेज़ी से आगे बढ़ रही है – “कहाँ है लाठी? पहलवान की लाठी कहाँ है? आज हम उसे जलाकर राख कर देंगे, कहाँ है??”
चिंटू और काका भी साथ-साथ ऊपर उड़ रहे हैं। अचानक चिंटू की नज़र लाठी पर पड़ती है। लाठी भी बाकी के भागते हुए लोगों के साथ भागा जा रहा है। चिंटू लाठी की ओर उंगली दिखाता है और आग से कहता है।
चिंटू: “वो रहा”
आग उधर देखता है जिधर चिंटू ने बताया था और लाठी को देख लेता है। आग अपनी एक लपट को आगे बढ़ाकर लाठी को घेर लेता है।
लाठी (गिड़गिड़ाते हुए और गरमी से बचने के लिए उसी घेरे में इधर-उधर भागते हुए, इस बीच उसकी मूँछ नीचे की ओर लटक जाती है): “नहीं-नहीं मुझे मत जलाओ। मैं जीते-जी नहीं जलना चाहता, अभी मेरी उम्र ही क्या हुई है! इसे हटाओ, हटाओ वरना मैं जल जाऊँगा, मेरी सूरत खराब हो जाएगी, मेरी मूँछे जल जाएँगी। अरे, अभी तो मैंने दुनिया देखनी शुरु ही की है! क्यों अभी से मेरी चिता तैयार कर रहे हो?”
चिंटू (लाठी से): “दुनिया देखनी शुरु की है तो इस दुनिया में साँप को भी कहीं न कहीं देखा ही होगा?”
लाठी (चिंटू की ओर देखता है): “अरे तुम? तुम्हें तो मैंने कहीं देखा है”
चिंटू: “हाँ, मैं जानता हूँ। पहले ये बताओ साँप को देखा है?”
लाठी: “हाँ-हाँ देखा है”
चिंटू: “तो तुम्हें साँप को ज़रा परलोक दिखाना है”
लाठी: “अरे, किसी ने पहले भी ये बात मुझसे कही है”
चिंटू: “वो छोड़ो, पहले ये बताओ तैयार हो?”
लाठी: “मगर क्यों, उसे मैं परलोक क्यों दिखाऊँ?”
चिंटू: “चिता देखी है?”
लाठी: “हाँ”
चिंटू: “उसमें खुद को देखना है?”
लाठी: “न-न-नहीं”
चिंटू: “तो साँप को परलोक दिखाना होगा”
लाठी: “ठ-ठ-ठीक है पर पहले इसे (आग को छूता है) आ~~~~~ई~~~~~ (चिल्लाता है) इसे हटाओ”
आग धीरे-धीरे हटती है। लाठी जल्दी से उसके घेरे से बाहर निकलता है। अपनी मूछें छूता है जो नीचे की ओर हो गई हैं उसे वापस ऊपर उठाता है और आग को धीरे-धीरे वापस जाते देखता रहता है।



Scene 22


लाठी (गुस्से से): “कहाँ है साँप? आज मैं उसकी ताकत मापने आया हूँ, कहाँ है बुलाओ उसे”
मदारी की झोंपड़ी। सामने कई साँप लेटे पड़े हुए हैं, कई डिबियाँ खुली हुई हैं। लाठी की ललकार सुन वे सभी जल्दी-जल्दी आनन-फानन में खुली डिबियों में घुस जाते हैं और ऊपर से ढक्कन लगाकर उसमें से झाँकते हैं।
लाठी, चिंटू और काका वहाँ आते हैं। चिंटू और काका झोंपड़ी की खुली खिड़की पर बैठते हैं। चिंटू काका से कहता है।
चिंटू (काका से): “आज तो लाठी और साँप की बढ़िया सी लड़ाई देखने को मिलेगी बापू”
काका (डाँटते हुए): “चुप कर”
लाठी - “कहाँ है, कहाँ है साँप” कहता हुआ इधर-उधर उस साँप को ढूँढ रहा है। फिर वह एक डिबिया के पास आता है, उसके नज़दीक झुकता है। उसमें बैठी साँपिन, जिसने एक बड़ी सी लाल बिन्दी लगा रखी है, ‘उई माँ’ कहकर उद डिबिया में बैठे बाकी के साँपों के बीच दुबक जाती है। लाठी जब ये देखता है कि साँप उससे डर रहे हैं तो उसकी हिम्मत बढ़ती है और वह उस डिबिया में मुँह घुसा लेता है।
लाठी (डिबिया में मुँह घुसाकर दहाड़ता है): “कहाँ है साँप?”
किसी और डिबिया से एक साँप की हकलाती हुई, धीमी आवाज़ आती है: “अ-आप नन्दू साँप को ढ-ढूँढ रहे हैं क-क्या?”
लाठी (उसी डिबिया में मुँह घुसाए-घुसाए): “नन्दू हो या चन्दू, हमें इससे कोई मतलब नहीं। हमें बस साँप चाहिए, वो साँप हमें दे दो, दे दो हमें वो साँप”
वही साँप (जल्दी से): “जी सर वो तो रानी को डसने गया है”
चिंटू (आश्चर्य से): “क्या??”
वही साँप: “जी, उसे ये ख़बर हो गई थी कि आप पहलवान जी के इन लाठी महाराज के साथ आ रहे हैं तो...”
चिंटू (खुश होते हुए): “वाह! यहाँ तो ऐसे ही काम हो गया!”

क्रमश:

6 comments:

  1. सुन्दर रोचक प्रस्तुति.
    अगली कड़ी का इंतजार है.
    आभार.

    मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.

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  2. बहुत सुन्दर कथा| धन्यवाद|

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  3. थोड़ा कन्‍फयूजन है लाठी वाकई लाठी को कहा जा रहा है या कुछ और है ये

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  4. आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद...

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  5. @राजे जी>>लाठी वाक़ई में लाठी ही है..

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  6. pahali bar आया , अच्छा लगा !

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