Thursday, September 15, 2011

अम्मा की कहानियाँ और मेरा बचपन - तोता और दाल की कहानी (आगे - दृश्य 19 और 20)

Scene 19


हाथियों का बड़ा विशाल झुंड निकलता है जिसमें नेता हाथी सबसे आगे चल रहा है, उसके मुरेठे (पगड़ी) पर काका और चिंटू बैठे हैं। चलते-चलते वे समुन्दर के तट पर पहुँचते हैं और समुन्दर में घुसकर खूब धमा-चौकड़ी मचाते हैं। फिर सभी मिलकर समुन्दर का पानी पीना शुरु कर देते हैं। सागर का पानी बड़ी जल्दी-जल्दी घटने लगता है। तभी समुन्दर से बड़ी-बड़ी लहरें उठने शुरु हो जाती हैं और उसमें से आवाज़ आती है।
समुन्दर: “अरे-अरे तुम सब ये क्या कर रहे हो? इस तरह तो मैं सूख जाऊँगा”
चिंटू (जोर से): “वही तो हम कर रहे हैं”
समुन्दर: “मगर क्यों? मैंने ऐसी क्या गलती कर दी?”
चिंटू: “आपने हमारी बात नहीं मानी थी”
समुन्दर: “कौन सी बात?”
चिंटू: “आग को बुझाने की बात”
समुन्दर: “आग? कौन सी आग? कैसी आग? मुझे कुछ याद नहीं आ रहा”
चिंटू: “अभी याद आ जाएगा जब आपमें एक तालाब भर पानी रह जाएगा”
समुन्दर: “अरे रुको-रुको.....अरे रोको कोई इन्हें”
चिंटू: “यहाँ आपकी चीख-पुकार सुनने वाला कोई नहीं सिन्धु महाराज! आपके पास बचने का केवल एक ही तरीका है और आप बखूबी जानते हैं कि वो क्या है”
समुन्दर: “अच्छा-अच्छा, ठीक है। मैं तैयार हूँ-तैयार हूँ...अब तो रोको”
चिंटू: “ठीक है”
चिंटू एक सीटी बजाता है। सभी हाथी एकसाथ चिंटू को देखते हैं।
चिंटू: “मौज-मस्ती खत्म। आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद। अब आप सभी अपने गंतव्य स्थल पर जा सकते हैं” सभी हाथी समुन्दर से निकलकर चले जाते हैं।
समुन्दर: “मैं आग को बुझाने से पहले एकबार यहीं से उनसे बात करना चाहता हूँ”
चिंटू: “ठीक है”
समुन्दर (जोर से, काफी गंभीर-गूँजती हुई आवाज़ में): “अग्नि देव नमस्कार, मैं सिंधु बोल रहा हूँ”
बैकग्राउंड से आग की आवाज़: “नमस्कार सिन्धु महाराज!”
समुन्दर: “मैं आ रहा हूँ आपके पास”
आग: “हमारे पास? मगर कारण?”
समुन्दर: “आपकी इच्छा पूर्ति करने.....आपको बुझाने”
आग: “हमारी इच्छा पूर्ति? हमें बुझाने!!”
समुन्दर: “जी”
आग: “मगर हमारी ऐसी इच्छा कब हुई?”
समुन्दर: “क्यों? आपने संदेसा नहीं भेजा?”
चिंटू आग का जवाब देने से पहले ही बोल पड़ता है।
चिंटू (जोर से): “तो अग्नि देवता, इसका मतलब आप बुझना नहीं चाहते”
आग: “नहीं, हम भला क्यों....?”
चिंटू (बीच में ही): “तो आपको उस तोते की बात मंज़ूर है?”
आग: “कौन से तोते की बात?”
चिंटू: “वो मैं आपको आकर बताता हूँ। पहले वादा कीजिए कि आपके पास जो तोता आ रहा है आप उसकी इच्छा पूरी करेंगे”
आग: “कौन सी इच्छा? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा, ये कौन बोल रहा है?”
चिंटू: “वो मैं अभी आकर आपको समझा देता हूँ, आप पहले वादा तो कीजिए कि आप उस तुच्छ छोटे से तोते की इच्छा पूरी करेंगे”
आग (सोचते हुए, थोड़े से कंफ्यूज़्ड): “अ....ठीक है, हम प्रतिज्ञा करते हैं”
चिंटू: “धन्यवाद, मैं आ रहा हूँ (समुन्दर की ओर देखकर) आप अब आराम करें” चिंटू उड़ चलता है। पीछे-पीछे काका भी उड़ चलता है।


Scene 20
आग जल रही है। सामने चिंटू और काका खड़े हैं।
आग (चिंटू को देखकर): “ओहो, तो तुम हो!”


चिंटू: “जी”
आग: “क्या लाठी सचमुच यहाँ नहीं आ सकती? क्या हमें ही उसतक चलकर जाना पड़ेगा? हम जो यहाँ से वहाँ तक फैले हैं....हम जिसकी....” आग अपनी गौरव-गाथा का फिर से बखान करना शुरु करता ही है कि चिंटू बीच में ही टोक देता है।
चिंटू (बीच में ही): “जी अग्नि देव, आप ही, आप ही को वहाँ तक चलकर जाना होगा, लेकिन एक बात का ध्यान रहे कि आपकी लपेट में उस लाठी के अलावा और कोई न आए”
आग (थकी-हारी सी आवाज़ में): “मंज़ूर....चलो”

क्रमश:

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