Tuesday, September 13, 2011

अम्मा की कहानियाँ और मेरा बचपन - तोता और दाल की कहानी (आगे - दृश्य 17 और 18)

Scene 17


रात का अन्धेरा। आकाश में तारे टिमटिमा रहे हैं। सभी हाथी इधर-उधर लेटे खर्राटे ले रहे हैं। बीच-बीच में कोई हाथी करवट बदलता है। जाल पेड़ की एक डाल पर लटका सो रहा है, उसी पर बैठा-बैठा काका भी सो रहा है। चिंटू नीचे एक हाथी के पेट पर सो रहा है। अचानक हाथी करवट लेता है और चिंटू उसके नीचे दब जाता है। चिंटू ‘बचाओ-बचाओ’ चिल्लाता है लेकिन किसी पर कोई असर नहीं होता, सभी गहरी नींद में हैं। एक-दो बार वह और चिल्लाता है पर जब फिर भी किसी को सुनाई नहीं पड़ता तब वह अपनी चोंच से उस हाथी को काट खाता है। हाथी हड़बड़ाकर उठ खड़ा होता है। जल्दबाज़ी में हाथी किसी और हाथी की पूँछ पर खड़ा हो जाता है जिससे वह दूसरा हाथी भी हड़बड़ाकर उठ खड़ा होता है लेकिन वह भी जल्दबाज़ी में किसी और की पूँछ पर अपना पाँव रख देता है। ऐसे ही छ: हाथी उठ खड़े होते हैं और आपस में लड़ने लगते हैं। चिंटू धरती में दबा-दबा ज़ोर से उन्हें पुकारता है।
चिंटू (जोर से): “अरे भाई, लड़ो मत” किसी को उसकी आवाज़ नहीं सुनाई देती। वह फिर चिल्लाता है: “अरे, पहले मुझे यहाँ से निकालो! सुनो तो मेरी आवाज़!”
सभी हाथी चौंककर इधर-उधर देखने लगते हैं कि ये आवाज़ कहाँ से आई। एक हथिनी की नज़र ज़मीन में धँसे चिंटू पर पड़ती है और वह डर के मारे ‘उई माँ’ कहती है और उछलकर किसी और हाथी की गोद में चढ़ जाती है। वह हाथी लड़खड़ाता है फिर सम्हल जाता है। सभी हाथी चिंटू को देखते हैं। तभी वह हाथी, जिसपर चिंटू सोया था, चिंटू को पहचान लेता है और कहता है।
हाथी: “अरे ये तो...”
चिंटू (बीच में ही): “हाँ, मैं हूँ। अब इस तरह आँखें फाड़-फाड़ कर मत देखो मुझे एम्बैरेसमेंट हो रही है। अपनी सूंड लाओ इधर।”
वह हाथी अपनी सूंड चिंटू के पास ले जाता है। चिंटू बड़ी मुश्किल से अपने पंखों को खींचतान कर बाहर निकालता है, सूंड पकड़ता है और फिर पूरी तरह से धँसे हुए अपने शरीर को किसी तरह बाहर निकालता है। वह पूरी तरह से पिचक गया है। बाहर निकलकर वह उसी हाथी को झिड़कता है जिसपर वह सोया था।
चिंटू (झिड़कते हुए): “बड़े अजीब तरीके से सोते हो तुमलोग यार!!”
वह हाथी (मासूमियत से): “मैंने क्या किया?”
चिंटू: “क्या किया? देखा नहीं? मुझे आधा पाताल में पहुँचाकर पूछते हो क्या किया? वो तो मैं था जिसने अपने-आपको खींचकर बाहर निकाल लिया वरना पता है अन्दर के लोग मेरी टांग पकड़कर अपनी ओर खींच रहे थे!”
वह हाथी: “सॉरी...मैंने जानबूझकर नहीं किया”
चिंटू: “ठीक है-ठीक है लेकिन अभी सम्हलकर सोना, ओ.के.?”
वह हाथी सहमति में सर हिलाता है और कहता है: “ओ.के.” सभी हाथी धीरे-धीरे सोने चले जाते हैं। चिंटू गहरी साँस लेकर अपने पिचके शरीर को फुलाता है।
चिंटू (उसी हाथी पर फिर चढ़ते हुए): “कैसे-कैसे लापरवाह लोग होते हैं! या अल्लाह, रहम कर” आँखें बन्द करता है, फिर जैसे अचानक कुछ याद आता है, आँखें खोलता है और जल्दी से बोलता है।
चिंटू: “मेरे ऊपर, ये नहीं कि किसी और के ऊपर कर दिया रहम, हाँ!” सो जाता है।

Scene 18
बिल्कुल सुबह का समय। चिंटू की नींद खुलती है। अंगड़ाई लेता है। फिर हर किसी के पास जा-जाकर ‘चलो भाई, उठो भाई। समुन्दर पीने चलना है” कहकर उन्हें उठाता है। इधर काका और जाल की नींद भी टूटती है। तीनों मिलकर बाकी बचे सोते हुए हाथियों को उठाते हैं। नेता हाथी दूर से ही चिंटू से कहता है।
नेता हाथी (चिंटू से): “मगर पहले नहा-वहाँ लें तब चलेंगे”


चिंटू: “अरे दादा, अब नहाना-वहाना वहीं समुन्दर में”
जाल: “अच्छा, अब अपुन का कोई काम नहीं। अपुन जा रेला है”
चिंटू: “हाँ भाई तू जा, जा” जाल चला जाता है।

क्रमश:

3 comments:

  1. अच्छी कहानी है। और भी दिखाना।

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  2. आगे की प्रतीक्षा है ।

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