न जाने इस आईने का चेहरा हमसे मिलता क्यों है
हर बार मिलकर हमें अपना-सा वो लगता क्यों है
हर रात जब चाँद निकलता है छत पे
हमें देखकर हर बार वो हँसता क्यों है
हर राह एक राह से मिलती है जहाँ
उस राह पे चलता एक रस्ता क्यों है
रौशन हुई एक ज़िन्दगी जहाँ पर अपनी
उस ग़ैर का हर कदम वहाँ फिसलता क्यों है
किस राह पे चले और पहुँचे कहाँ हम
यह सोचकर हर बार दिल दुखता क्यों है
जिस रूह से मिल चुके हम कई दफ़ा
इस बार वो अजनबी-सा लगता क्यों है
वो जो आईना है अपने से चेहरे वाला
हर बार वो मिलकर कुछ टूटता क्यों है
हर रात जब चाँद निकलता है छत पे
ReplyDeleteहमें देखकर हर बार वो हँसता क्यों है
वाह...वा...इस खूबसूरत रचना के लिए बधाई स्वीकारें...
नीरज
उम्दा ग़ज़ल.बहुत ही गूढ़ शेर.....
ReplyDeleteहर राह एक राह से मिलती है जहाँ
उस राह पे चलता एक रस्ता क्यों है
सवाल खूबसूरत है...
रौशन हुई एक ज़िन्दगी जहाँ पर अपनी
उस ग़ैर का हर कदम वहाँ फिसलता क्यों है
बहुत खूब.....
जिस रूह से मिल चुके हम कई दफ़ा
इस बार वो अजनबी-सा लगता क्यों है
डायरी के अगले पन्ने की इन्जार में हूँ.
सलाम.
इन्जार को इंतज़ार पढ़ें.
ReplyDeleteसिर्फ एक शब्द.....बेहतरीन
ReplyDeleteकुछ पुँरानी यादें ताजा हो गयीं ! शुभकामनायें आपको
ReplyDeleteshabd nahi hai mere pas, kya likhu.. bas itna ki aap hamesha likhti rahen.. behad khubsurat ghazal hai..
ReplyDelete@नीरज जी>>बहुत शुक्रिया..अच्छा लगता है जब अपने-से कुछ शब्दों को प्रशंसा के कुछ शब्द भी मिल जाते हैं...@sagebob जी>>आपके ब्लॉग नेम से ही आपको जानती हूँ, आपकी हौसला आफ़ज़ाई बहुत बेहतरीन तरीके से काम करती है, आपके प्रोत्साहन की हमेशा शुक्रगुज़ार होती हूँ....@शशि>>बहुत दिनों बाद आए आप, रचना पसंद करने का शुक्रिया, आपके इस एक शब्द 'बेहतरीन' ने कुछ आशाएँ जोड़ दी हैं...@सतीश जी, बहुत-बहुत धन्यवाद, आशा करती हूँ कि आपका मार्गदर्शन यूँ ही निरंतर मिलता रहेगा..आयुश जी>>आपको ग़ज़ल अच्छी लगी यह जानकर अच्छा लगा, बहुत-बहुत आभार...
ReplyDelete@हिमांशु जी>>मेरे ब्लॉग से जुड़ने के लिए बहुत शुक़्रिया...
ReplyDeleteye jo darare hai aayene me,
ReplyDeletewho khud ke chahare par mahsus hoti kyu hai?
bahut hi behatreen gazal.. badhayi sweekar kare..
ReplyDelete--------------
मेरी नयी कविता " तेरा नाम " पर आप का स्वागत है .
आपसे निवेदन है की इस अवश्य पढ़िए और अपने कमेन्ट से इसे अनुग्रहित करे.
"""" इस कविता का लिंक है ::::
http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/02/blog-post.html
विजय
@विजय जी>>>पता नहीं क्यों आज किसी का भी ब्लॉग खुल नहीं रहा मुझसे इसलिए आपसे क्षमा माँगूगी कि आपकी कविता पढ़ नहीं पा रही हूँ...उम्मीद करती हूँ कल ये समस्या नहीं रहेगी...
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