एक अजीब तनहाई है
चारों तरफ एक शोर से घिरी,
शोर
अविश्वास का, अनमनेपन का, गहरे विषाद का,
गुस्से का, अनास्था का, अनजानेपन का।
एक अजीब सन्नाटे को ख़ुद से लपेटे
यह ज़िंदगी
जितनी गुज़रती है, उतनी ही खुदगर्ज़ होती जाती है
बेईमान होती जाती है, ख़तरनाक होती जाती है।
एक काली आज़ादी है जैसे
अंधकार की आज़ादी,
धोखेबाज़ी की आज़ादी,
दूर होते रहने की आज़ादी।
वह घास जो दूर से हरी दिखती है
उसके जितने पास जाओ, वह रेत की तरह पीली होती जाती है
उसे आज़ादी मिली है पीले होने की।
उस घास में दर्प है, अहंकार है
पीले होने का,
काली आज़ादी का
जो उसे अंधेरी ही सही
पर
आज़ादी तो देती है।
Aah..! Jahan rooh qaid me ho,jism aazaad kaise rahenge?
ReplyDeleteयह ज़िंदगी
ReplyDeleteजितनी गुज़रती है, उतनी ही खुदगर्ज़ होती जाती है
बेईमान होती जाती है, ख़तरनाक होती जाती है ..
धूप में जो पकती है ... इसलिए आज़ादी ख़ुदग़र्ज़ होती है ... अच्छी रचना है ..
hummm kuch pane ke liye kuch to khona padta hai lakin......phir bhi kali aajadi mubarak ho!!
ReplyDeleteJai HO Mangalmay hO
हम पंक्षी उन्मुक्त गगन के, पिंजर बंद ना गा पायेंगे
ReplyDeleteकनक तीलियों से टकरा कर पुलकित पंख टूट जायेंगे
हम बहता जल पीने वाले मर जायेंगे भूखे प्यासे
कहीं भली है कटक निबौरी कनक कटोरी के मैदे से !
................आजादी जैसी भी हो आज़ादी है........काली हो या जाज्वल्यमान ................अतिसराहनीय
प्रज्ञा जी, बहुत ही मंथन करके आपने यह बेहतरीन कविता लिखी है……आपकी यह कविता हमें बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देती है।
ReplyDeleteआप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद..
ReplyDeletePargya ji , आपकी कविता पढ़कर मन अभिभूत हो गया.....
ReplyDeleteशुक्रिया .
ReplyDeleteसही फ़रमाया आपने .
गंभीर रचना .
आपके विचारोंसे पूर्ण सहमति।
ReplyDelete---------
क्या आप बता सकते हैं कि इंसान और साँप में कौन ज़्यादा ज़हरीला होता है?
अगर हाँ, तो फिर चले आइए रहस्य और रोमाँच से भरी एक नवीन दुनिया में आपका स्वागत है।
आज़ादी ख़ुदग़र्ज़ होती है ... अच्छी रचना है
ReplyDeleteNAMASKAR PRAGYA JI
ReplyDeleteDOBARA PADHNE KA MAN KIYA TO BLOG PAR CHALA AAYA
@संजय जी, @लता जी...हौसला आफ़ज़ाई के लिए बहुत-बहुत शुक़्रिया....
ReplyDeleteनराजगी सी आक्रोश सा पर सब सच सा दिखा आपकी कविता में..ये आग जिलाए रखे..
ReplyDeleteaazad mili hume sharto ke sath,
ReplyDeleteki banna hoga aur bigadna hoga paristhithiyo ke sath,
kahna hoga wahi jo kaha ja chuka hai sunna hoga yahi jo suna ja chuka hai ,
aanth hin dard ko samete matra yhi aazadi mili hai humko ,
ki hukumarano ko unki azadi ka ahsas hum karva paye!
@डिंपल....बहुत शुक्रिया...कोशिश रहेगी इस आग को अपने अन्दर जलाए रखने की और अगर हो सके तो उसकी लौ कुछ अन्य दिलों में जलती आग से मिलाने की भी...
ReplyDelete@दीप्ति...बहुत सही लिखा है!
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