कल रोटी बनाते समय
मेरा हाथ तवे से छू गया
जलन से मैं चिल्ला उठी
उस चीख में
अचानक एक और चीख मिल गई,
पड़ोस की माथुर आंटी की
जब दो महीने पहले
उन्हें ज़िन्दा जला दिया गया था,
उनकी शिफॉन की ख़ूबसूरत गुलाबी साड़ी
भयंकर काले रंग के कूड़े के ढेर में तब्दील हो गई थी,
एक छोटी सी मासूम लड़की की
जब फूल चुनने जाने पर
गार्डन में मालिक के कुत्ते ने
उसे काट खाया था,
उस लड़के की
जब कुछ लोगों ने
उसकी पीठ में छुरा भोंक दिया था
उसकी पॉकेट से तीन सौ दस रुपए लेने के लिए ,
उस लंगड़े भिखारी की
जिसकी नज़रें टिकी थीं
भीख में मिले दस रुपए पर
तब बत्ती हरी हो गई थी
और उसके पीछे बस खड़ी थी,
दंगे में हथियार लिए
गुस्से से पागल भीड़ से भागती,
अपने बच्चे को गोद में चिपटाए
एक माँ की
जिसके बेतहाशा दौड़ते पैर
कभी साड़ी में
तो कभी बुरके के घेरे में फंस जाते हैं,
और भी कई चीखें थीं
जो आपस में इतनी बुरी तरह गुँथीं थीं
कि उन्हें पहचानना मुश्किल था।
मैंने घबराकर अपने कान बन्द कर लिए,
आवाज़ें अभी भी आ रही थीं।
धीरे-धीरे करके जब वे खत्म हुईं
तो उस चीख के खत्म होने पर
एक अजीब मरघट-सी चुप्पी थी,
उस चुप्पी में कई ख़ामोशियाँ थीं
जो
कभी गुजरात में बैठे
एक बूढ़े की आँखों में पथराती हैं,
तो कभी
काश्मीर से भागे
एक पंडित की ज़ुबाँ से चिपक जाती हैं,
कभी सड़क पर पड़े
एक लड़के की लाश से होकर गुज़र जाती हैं
जो अभी कुछ देर पहले थरथराई थी,
कभी किसी चौराहे पर सोए
एक आधे-अधूरे कंकाल पर फैलती हैं
जो कभी शायद ज़िन्दा था,
कभी एक दुल्हन को छू जाती हैं
जिसकी जली हथेलियों में
कभी मेहन्दी भी लगी थी।
एक ऐसी ख़ामोशी
जो सबसे होकर गुज़र जाती है
और सभी चुपचाप, बस चुपचाप
खड़े रह जाते हैं।
मेरा ध्यान तवे पर गया
तवे पर रखी रोटी
बुरी तरह से जल चुकी थी।
मेरा ध्यान तवे पर गया
ReplyDeleteतवे पर रखी रोटी
बुरी तरह से जल चुकी थी ...
चीख ..... सच में कितना कुछ है इस चीख में ... कितने जीवन की गाथाएँ ... कितने एहसास, भूख, प्यास, जीवन की चाह इस एक चीख के साथ या तो निकल आती हैं या घुट के मार जाती हैं .... जली हुई रोटी जैसे ...
मार्मिक एवं भावपूर्ण अभिव्यक्ति...सशक्त भाव...धन्यवाद
ReplyDeleteदर्दनाक!
ReplyDeletehummmmmm ankhen nam ho gyi padte padte....bahut sahi or saralta se kah diya!!
ReplyDeleteJai Ho Mangalmay HO
dhanyavaad aap sabhi ka....
ReplyDeletekyaa chitran karateen hain aap.
ReplyDeleteshuruaat me maine socha bhee nahee ki baaten yahan tak aa jayengee .
bahut accha laga hamesha ki tarah.
padh kar to kuch kar gujarane ko jee ho uthaa .
afsos!!!!!!!!kuch kar paata .
उत्तम कृति है ..........वर्त्तमान परिवेश में एक सुसुप्त पड़े ज्वलंत घटनाक्रम की सटीक अभिव्यक्ति है ! इस रचना में साहित्य कम सार्थकता एवं चिन्तनशीलता के दर्शन ज्यादा होतें हैं! धन्यवाद उक्त कृति के लिए
ReplyDeleteUff! Kya kahun?
ReplyDeleteHoleekee shubhkamnayen sweekaar karen!
धन्यवाद...आप सभी को भी होली की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
ReplyDeleteसच्चाई को बयान करती एक बेबाक रचना---। आज समाज को जागरूक करने के लिये ऐसी यथार्थपरक रचनाओं की ही जरूरत है।
ReplyDeletedhanyvaad aap sabhi ka rachna ko saraahne k liye..
ReplyDeleteAapki rachanayen itnee gaharee hoti hain,ki, baar baar padhneko man hota hai..
ReplyDelete@kshama: aapki rachnaaon k sath b kuch aisa hi hai..har din aapke blog par jati hoon yah dekhne k liye k aapne kuchh post kiya ya nahi..
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