बादलों की सफेदी पर अब काले रंग नहीं उभरते क्या?
दो छोटे-छोटे पंख लेकर पंछी भी अब उड़ान नहीं भरते क्या?
लगता है बारिश ने हमेशा-हमेशा के लिए घूंघट ओढ़ लिया है
हवाओं ने भी पीले-हरे पत्तों का दामन छोड़ दिया है।
आँखों से देखो तो आसमान नीला है
और आँखें बन्द करने पर कुछ दिखता ही नहीं
कोरे-कोरे कागज़ सब कोरे ही उड़ जाते हैं
क्या उनपर अब कोई अपना हाल-पता लिखता नहीं?
तितलियों और फूलों में भी बातचीत बन्द है शायद
उड़ते-खिलते दोनों एक-दूसरे को देखते तक नहीं,
या वे भी इंसानों की फेहरिस्त में आ गए
जो दोस्तों के दरवाज़े खटखटाना भूल गया,
अंगुलियों में अंगूठियाँ तो काफी हैं
पर उन अंगुलियों को कलम पकड़ाना भूल गया,
तालियों पर तालियाँ बजाता वह महफिल में
खुशी से पीठ थपथपाना भूल गया।
बादलों की सफेदी पर काले रंग नहीं आते अब
वे सब हमारे नाखूनों में उतरने लगे हैं
पेड़ तो बहुत हैं अपने हिस्से की छाया देते
पर छुईमुई के पौधे सब ज़मीन के नीचे सोने लगे हैं।
देखो ना ईश्वर तुम भी ज़रा झांककर
हर कोई इतना अलग-अलग, चुप-चुप, रूठा-रूठा सा क्यों है?
आँखों के मिलने पर मुस्कुराती हैं आँखें,
पर उन आँखों में कुछ झूठा-झूठा सा क्यों है?
मिलते हैं कभी-कभार हाथों से हाथ भी
पर उन हाथों में कुछ छूटा-छूटा सा क्यों है?
सोचो न तुम भी झाँको न एक बार
सबके लिए सबको मिलाओ न एक बार
क्या हुआ जो एक-दूसरे से टकराएँगे सारे
उस टकराहट में अपनापन मिलाओ न एक बार
सबको फिर से जिलाओ न एक बार
अंगुलियों को अंगुलियों से पिराओ न एक बार
धड़कनों को धड़कनों से मिलाओ न एक बार
बारिश के घूँघट को हटाओ न एक बार
आसमाँ पर काला रंग बिखराओ न एक बार
इस बारिश में तुम भी नहाओ न एक बार।
क्या लिख डाला ब्रजबाला....
ReplyDeleteकुछ पढ़ा नहीं जा रहा...
शुरु बादल की सफेदी से...
बाद में सब सफाचट??????
अपनी रचना किसी और बेहतर हिन्दी फॉण्ट में पोस्ट करें ...........और एक वेबसाइट लिंक देखें .........http://www.pravakta.com/?p=6645
ReplyDeletesach kahu.....nice photo yaar ....is you and your friends??
ReplyDeletei couldnt read post becoz of font !!
bt i know its all abt friendship ..
Jai HO Mangalmay Ho
Sorry guys! Sorry for the inconvenience...गलती सुधारते हुए मैंने फॉंट बदल दिया है...Sorrrrrry..:)
ReplyDeleteक्या हुआ जो एक-दूसरे से टकराएँगे सारे
ReplyDeleteउस टकराहट में अपनापन मिलाओ न एक बार
सबको फिर से जिलाओ न एक बार ....
सच कहा ...... सबको मिलाना ही जीवन कर्म होना चाहिए ...... बहुत अच्छा लिखा है ...... लिखते रहें ऐसे ही ..........
धन्यवाद दिगम्बर
ReplyDeleteबादलों की सफेदी पर अब काले रंग नहीं उभरते क्या?
ReplyDeleteदो छोटे-छोटे पंख लेकर पंछी भी अब उड़ान नहीं भरते क्या?
लगता है बारिश ने हमेशा-हमेशा के लिए घूंघट ओढ़ लिया है
हवाओं ने भी पीले-हरे पत्तों का दामन छोड़ दिया है।
Bahut sundar likhteen hain aap!
sundar rachnaa!!
ReplyDeleteवाह .कई चीजों की याद दिला रही हो...तुम्हारी कविता पढ़कर अपनी खुद की पीठ थपथपा रहा हुं...क्योंकी
ReplyDeleteबादलों से अब भी बात करता हुं में
बारिश में अब भी नहाता हुं मैं
सफेद बादलों पर अब भी
घुमड़ते काले बादल दिखते हैं मुझे
जानती हो क्यों ...
क्यों मेरे अंदर बच्चा
गहरी नींद अभी भी सोया नहीं
सोये तो जगा देता हूं मैं....
पर तुम्हारे एक सवाल का जवाब नहीं है मेरे पास प्रज्ञा..
''हर कोई इतना अलग-अलग, चुप-चुप, रूठा-रूठा सा क्यों है?''
या सबके अंदर का बच्चा अब बड़ा हो गया है..हर रिशते को नफे के तराजू पर तोलता हो.....या कोई और बात...
खैर काफी बढ़िया कविता लिखी है .....
बहुत खूबसूरत रचना-----।
ReplyDeleteसच कहा ...... सबको मिलाना ही जीवन कर्म होना चाहिए
ReplyDeletethank u for appreciation!! thank u:)
ReplyDelete