Part III
“ठीक है” – धोनी ने
उठते हुए अपनी चुप्पी तोड़ी – “लेकिन ज़्यादा दिनों तक नहीं बाबा”
और ये खबर जब भूत को मिली तो उसकी खुशी और
आश्चर्य का तो ठिकाना ही न रहा! हैरानी की कोई हद न रही! सर ने मेरे लिए इतनी बड़ी
कुर्बानी दी! अपना शरीर, नाम, पहचान, अपना सबकुछ मुझ जैसे एक अदने-से भूत के नाम कर दिया! सर महान हैं! महान
से ज़्यादा महान, इनके सामने तो दधीचि भी कुछ नहीं!”
परंतु हमारे ये भूत को ये बिल्कुल पता
नहीं था कि ये महान कुर्बानी हमेशा के लिए नहीं दे दी गई, वो ये
नहीं जानता था कि प्रसिद्धि का ये भूत उसके सिर से एक दिन उतरना है. अब चूँकि बाबा
ये जानते थे कि ‘अज्ञानता प्रसन्नता की पोषक है’ अत: उन्होंने अपने प्यारे भूत को इस प्रसन्नता का आनंद उठाने का भरपूर
मौका दिया.
उधर कई दिनों बाद नींद में खोया चौकीदार
रामदयाल नींद से जाग उठा था और आश्चर्यजनकरूप से अपनी विस्फोटक बल्लेबाजी को पूरी
तरह से भूल चुका था. और उधर उसके प्यारे मालिक महेंद्र सिंह धोनी ने इस सिरीज़ के
लिए कप्तानी के लिए किसी और को अवसर देने की घोषणा कर बाबा की निगरानी में अपना
शरीर भूत को सौंपकर चुपके-चुपके अपनी एक नई-नवेली, फुल लेंग्थ तस्वीर में
शरण ले ली थी. शिष्य के ‘सभी तरह के कारनामों’ से वाकिफ रहने के लिए उन्हें नींद में नहीं डाला गया था और इस तरह एक
जीती-जागती, बोलती तस्वीर ने इस दुनिया में आने कदम रखे.
मैच का दिन आया. भारत की बल्लेबाज़ी शुरु
हुई. धोनी मैदान पर उतरे. उतरते ही उन्होंने और दिनों की भाँति सीधा पिच पर न जाकर
स्टेडियम में मौज़ूद हज़ारों दर्शकों को देख पहले हाथ हिलाया,
बाउंड्री के पास खड़े कैमरे के सामने खड़े होकर मुस्कुराए, कुछ
देर मैदान के बाहर ही खड़े रहकर फटी-फटी आँखों से चारों ओर जाने क्या देखते रहे और
तब क्रीज़ पर आए. क्रीज़ पर जाते ही उन्होंने ताबड़तोड़ बल्लेबाज़ी शुरु कर दी. वैसे तो
वे हमेशा ही धुआँधार बल्लेबाज़ीकरते हैं पर आज तो उन्होंने कमाल ही कर दिखाया. हर
गेंद बाउंड्री के पार. चौके ऐसे तेज़ निकलते मानो उनमें रॉकेट लगा हो, छक्के इतने गगनचुम्बी कि हर बार नई गेंद लानी पड़ी. कई गेंदें खोईं, कई के सईम उधड़ गए और कई तो बल्ले के प्रहार से फट ही गईं. उन्होंनेजज़ब की
‘जादुई’ बल्लेबाज़ी की, दर्शक बेकाबू हो गए, विपक्षी टीम ने अपने बाल नोंच
डाले और कमेंटेयर्स कमेंट्री करना भूल गए. हर गेंद पर प्रहार.
सभी चकित, विस्मित, अचम्भित, हैरान! धोनी को आज ये हुआ क्या है? कहीं उनपर कोई भूत तो सवार नहीं हो गया? क्या गज़ब
की अद्भुत, तूफानी-झंझावाती बल्लेबाज़ी
कर रहे हैं!! विपक्षी टीम की तो उन्होंने बखिया उधेड़ दी.
अकेले ही इतने रन ठोक डाले! उनके बाद आने वाले बल्लेबाज ने पैड, ग्लव्स, हेलमेट सब उतार कर रख दिया – आज ये आउट
नहीं होने वाला. दर्शक मुग्ध-उत्तेजना भरा शोर सातवें आसमान पर उछलता हुआ, कमेंटेटर भौंचक्के – आखिर क्या बोलें? क्या बोलें
इस धाकड़, धुआँधार बल्लेबाज़ी के लिए! हर बॉल पर कोई कैसे
एक्साइटमेंट भरी लाइन्स बोले! इस तूफानी बल्लेबाज़ के तेवर आज कुछ ज़्यादा ही गर्म
हैं और देखो ज़रा हर शॉट के बाद ये ख़ुद ही कितने खुश हो रहे हैं! पब्लिक भी तो आपे
में नहीं है, भई बल्लेबाज़ी ही ऐसी हो रही है! लेकिन हर बार शॉट
से पहले वो चुटकी क्यों बजा रहे हैं? ख़ैर, हो सकता है कि कंधे उचकाने और ग्लव्स खोल-बंद करने की तरह ये भी उनकी कोई
नई आदत या फिर नया स्टाइल हो. लेकिन आज न तो वे पहले की तरह कंधे उचका रहे हैं न
ही ग्लव्स को कसरत करवा रहे हैं. ये थोड़े अलग तरह के धोनी हैं जो सिर्फ चुटकियाँ
बजा रहे हैं.
ओवर पूरे हुए और खचाखच भरी भीड़ उनपर उमड़
पड़ी. कोई उसी धींगा-मुश्ती में उनकी आड़ी-तिरछी फोटो ले रहा है, कोई
उनके बाल खींच रहा है, कोई उन्हें छूकर मानो खुद को ‘कन्फर्म’ कर रहा है – ‘आदमी ही है न!’ – कोई बल्ला छीनकर घर ले जाना चाह रहा है ‘देख इसी बल्ले से माही ने कई गेंदें फोड़ी थीं!’ कोई कपड़े खींच रहा है और इस सब के बीच में धोनी थोड़े-से
भौंचक्के और बहुत सारे खुश दिख रहे हैं – “ “ यही ज़िंदगी है” ”
गेंदबाज़ी शुरु हुई. विकेट के पीछे धोनी. कई गेंदें उनसे छूट
रही हैं. कितने स्टम्प्स मिस हुए, कितने कैच छूटे!
अन्य खिलाड़ी बार-बार आकर समझा रहे हैं लेकिन धोनी की विकेटकीपिंग में कोई सुधार ही
नहीं हो रहा. हालांकि रन इतने बन गए थे कि भारत ये मैच जीत गया और खराब
विकेटकीपिंग को भूलकर लोग बल्लेबाज़ धोनी की तारीफों के लाखों – लाख किलोमीटर लम्बे
पुल बाँधने लगे.
उधर धोनी थे कि फूले नहीं समा रहे थे. जीतने के बाद वे इतने
व्यस्त हो गए थे कि लाख चाहने के बावज़ूद अपने प्रिय बाबा और परम पूज्य कोच, जो फिलहाल जीती-जागती तस्वीर में बदले हुए थे, के पास उनसे मिलने नहीं जा पा रहे थे. फोन रखने
और करने की आदत इन नए वाले धोनी को अभी नहीं हुई थी. वे हर जगह छाए हुए थे. जहाँ
देखो वहीं धोनी. दीवारों पर उनकी तस्वीर, टीवी में उनके
इंटर्व्यू, उन्हीं पर स्पेशल रिपोर्ट, कुछ भी करें तो वही ब्रेकिंग न्यूज़, पेपर-पत्रिका में उन्हीं पर लिखे गए लेख. धोनी
की धूम मची हुई थी. उन्हें अकेले रहने की अब फुरसत ही न थी.
एक के बाद एक मैच हो रहे थे. सभी में वही हाल, विकेटकीपिंग खराब पर बल्लेबाज़ी धुआँधार. हर मैच
में धोनी चार सौ - पाँच सौ रन बनाते और अपनी विकेटकीपिंग से सौ - दो सौ रन बनवाते
भी. लेकिन ऐसा कब तक चलता? उपेक्षा की उम्र खत्म
हुई और आलोचकों ने उनकी बल्लेबाज़ी पर से नज़रें हटाकर विकेटाकीपिंग पर टिकाईं. उनकी
विकेटकीपिंग के भी चर्चे होने लगे. जैसे-जैसे उनकी बल्लेबाज़ी के फैन बढ़ते गए, विकेटकीपिंग के आलोचक भी बढ़ते गए.
लेकिन धोनी को इससे कोई लेना देना नहीं था. वे अपनी
प्रसिद्धि की हवा में बड़ी तेज़ी से बह रहे थे. अपनी इस आलोचना से उन्हें कोई फर्क
नहीं पड़ रहा था. टीम के बाकी सदस्यों ने भी उन्हें समझाने की कोशिश की पर वे तो
जैसे बल्लेबाज़ी की दुनिया में ही खोए हुए थे, विकेटकीपिंग का
उनकी दुनिया में कोई ख़ास स्थान नहीं था. और बल्लेबाज़ी भी ऐसी जो चुटकियाँ बजाकर
होती थीं.
इधर उनकी एक फुल लेंग्थ तस्वीर के चेहरे पर शिकन पड़ने लगे
थे, भौंहे टेढ़ी होने लगी थीं और सदा मुस्कुराने
वाले होंठ परेशानी की भाषा बोलने लगे थे. एक दिन तस्वीर ने बाबा से कहा – “बाबा, अब मैं और इस तरह
शीशे और लकड़ियों की चारदीवारी में बंद नहीं रह सकता. अपनी ही फोटो में अब मेरा दम
घुटता है. कब तक मैं एक फ्रेम के अंदर इस तरह कैद रहूँ? वो भी सिर्फ एक ही पोजीशन में. अगर कभी थोड़ा
हिलता-डुलता भी हूँ, रिलैक्स भी करता
हूँ तो सूने में. जहाँ कोई आता है, फिर वही पोजीशन.
मैं थक गया हूँ बाबा. ऊब गया हूँ मैं. ज़िंदगी नीरस हो गई है. मैं फिर से खुली हवा
में साँसें लेना चाहता हूँ, अपने इन पैरों पर
चलना-दौड़ना-भागना चाहता हूँ. भारत की ओर से फिर खेलना चाहता हूँ, बल्लेबाज़ी करना चाहता हूँ, रन बनाना चाहता हूँ, छक्के-चौके लगाना चाहता हूँ. स्टम्प, कैच, रन आउट करना चाहता हूँ. अपनी टीम के साथ
हज़ारों दर्शकों के साथ खेलना चाहता हूँ. अपनी टीम को अपनी आँखों से जीतता हुआ
देखना चाहता हूँ, उस जीत का हिस्सा बनना चाहता हूँ, उसे महसूस करना चाहता हूँ. अब मैं अपनी ज़िंदगी जीना चाहता हूँ. अब मैं
अपने शरीर में, अपनी दुनिया में वापस जाना चाहता हूँ. इस तरह
अकेले, अपने फोटोग्राफ में बैठ आपकी गोद से क्रिकेट के मैदान
को नहीं देखना, मैं वहीं खड़े होकर उसकी घास को छूना चाहता
हूँ”
“हाँ बच्चा”- बाबा ने भी
महसूस किया- “मैं भी अब तुझे उठाए-उठाए और नहीं चल सकता. बड़ा भारी है तू”
“और उसपर से बाबा” – धोनी
रुआँसे हो उठे – “बताइए, वो मेरे सामने ही इतनी खराब विकेटकीपिंग कर
रहा है, बल्लेबाज़ी भी ईमानदारी से नहीं बल्कि चुटकियाँ बजाकर
करता है और मैं? मैं कुछ भी नहीं कर पाता, रोज़ हर जगह से अपनी विकेटकीपिंग की आलोचना सुनता रहता हूँ. कल ही ये
रामदयाल मेरा फ्रेम पोंछ रहे दीनू से मेरी विकेटकीपिंग की इतनी बुराइयाँ गिना रहा
था. मन तो कर रहा थी कि क्या कर डालूँ. मैं खराब विकेटकीपर नहीं हूँ बाबा, फिर क्यों सुनूँ ये सब?”
“हाँ, लोग
उसकी विकेटकीपिंग की जबर्दस्त आलोचना कर रहे हैं”
“उसकी नहीं बाबा मेरी, लोग
मेरी विकेटकीपिंग की आलोचना कर रहे हैं. वे महेंद्र सिंह धोनी की बुराई कर रहे हैं
और महेंद्र सिंह धोनी यहाँ क्या कर रहा है? एक फ्रेम के अंदर
टंगा हुआ है”
“हम्म्म्म्म” – बाबा गम्भीर हो गए – “समस्या गम्भीर है, अब तो कुछ करना पड़ेगा”
“लेकिन पहले वो मिले तो” – धोनी उदास हो गए – “उसे मेरी दुनिया बड़ी अच्छी लग रही है बाबा और
उम्मीद कम है कि वो इस दुनिया को छोड़ना चाहे”
“छोड़ना तो उसे पड़ेगा ही, चाहे वो चाहे या न चाहे. वैसे भी इस तस्वीर
रूपी पिंजरे में मैं और ज़्यादा दिनों तक तुझे कैद नहीं रखा सकता. मेरी शक्तियों की
भी एक सीमा है, मैं उसे तोड़ नहीं
सकता. शरीर तो उसे अब वापस करना ही होगा.”
“लेकिन मेरे शरीर का टेम्पोररी स्वामी दर्शन तो
दे”
और कहते हैं न कि ‘शैतान’ का नाम लिया और शैतान हाज़िर, सो धोनी और बाबा दोनों ने
ही देखा कि माही के शरीर का टेम्पोररी स्वामी उनकी ओर दौड़ा चला आ रहा है. आते ही
उसने बाबा को प्रणाम किया – “क्षमा कीजिएगा बाबा, मुझे थोड़ी देर हो गई. वरना मैं तो पहले ही
मैच के बाद आना चाहता था पर किसी ने मुझे मौका ही न दिया.” – फिर अपने
कोच की तस्वीर के चरणों में गिरकर बोला –
“आपने मेरा सपना साकार
कर दिया सर! मैंने तो कभी कल्पना ही नहीं की थी कि सचमुच मेरी ज़िंदगी इतनी सारी
रौशनी से जगमगा उठेगी. ऐसा लगता है मानो मैं सपना देख रहा हूँ, लेकिन
ये हकीकत है, खुली हकीकत. मैं हर जगह छा गया हूँ. आपलोग
जानते हैं कि मैं कितना फेमस हो गया हूँ? लोग मेरे पीछे पागल
हैं! पहले भी थे पर अब तो क्या कहने! बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ मेरे लिए लाइन लगाए खड़ीं
हैं! पहले भी थीं पर अब तो!! जहाँ जाता हूँ, वहीं भीड़ लग
जाती है. इतने सारे इंटरव्यू दिए मैंने, इतने सारे लोगों से
मिला! इतने सारे ऑटोग्राफ दिए!”
“ऑटोग्राफ दिए” – कोच धोनी
का माथा ठनका – “पर ऑटोग्राफ में नाम किसका लिखा तूने?” – कहीं अपने
पुराने जन्म का कोई साइन-वाइन तो नहीं कर पाया.
“आपका”- शिष्य धोनी
का उत्तर आया.
“मेरा?” – कोच धोनी
घबरा गए. इसे मेरा साइन करना तो आता नहीं!
“हाँ, आपका!
वैसे शुरु-शुरु में मुझे दिक्कत हुई, आपका साइन जानता नहीं
था न मैं” – शिष्य धोनी ने अवगत कराया.
“क्या जानते हैं?”
“अरे यही कि तू मेरा साइन नहीं जानता”
“पर आपको कैसे पता?” – शिष्य को घोर आश्चर्य हुआ – “मैंने तो कभी आपको बताया नहीं!”
“तूने नहीं बताया पर मैं जानता हूँ”
“अरे वाह!” – शिष्य खुश हो गया – “बाबा के साथ रहते-रहते आप भी ज्ञानी बन गए!
अच्छा है”
“चुप रह” – कोच को बेचैनी थी – “पहले बता तूने लोगों को ऑटोग्राफ कैसे दिया? कहीं मेरा साइन बदल तो नहीं दिया तूने?”
“नही-नहीं सर, आप भी क्या बात करते हैं? मैं ये सब नहीं
करता. मैंने जादू से आपका साइन करना सीख लिया.”
“चल, इतनी तो समझ आई
तुझे”
“और सर एक बार जानते हैं क्या हुआ? कुछ लोगों ने मुझसे इन स्टाइलिश बालों का राज़ पूछा. अब मैं
तो जानता नहीं था तो मैंने पता है क्या जवाब दिया?”
“क्या?” – कोच ने
लम्बी साँस लेते हुए पूछा. उन्हें न जाने क्या क्या और सुनना था.
“मैंने कहा मैं रोज़
इनमें सनसिल्क का पूरा एक डिब्बा लगाता हूँ”
“कह तो दिया पर” – कोच को ज़रा
चिंता हुई – “ऐसा करता तो नहीं है न?”
“नहीं-नहीं,
शैम्पू तो इसमें अभी तक मैंने एक बार भी नहीं लगाया”
“क्या??” – कोच ने
अपना सिर पीट लिया – “तूने इतने दिनों तक शैम्पू नहीं किया?
बर्बाद करके छोड़ेगा तू मुझे”
“ऐसा मत कहिए सर! आपको
पता नहीं मेरे ऐसा कहने पर उस शैम्पू की बिक्री बढ़ गई है और उसकी कम्पनी ने मुझे
उनका एक ऐड करने का न्योता भेजा है”
“तो?” – कोच
सहमे-से सब कुछ सुन रहे थे, वे पहले से ही शैम्पू की किसी और कम्पनी के
साथ करार में थे और किसी कानूनी गड़बड़ी की आशंका से उनके दिल की धड़कन तेज़-कम, तेज़-कम हो रही थी.
“तो मैंने सोचा पहले
आपसे पूछ लूँ”
“बड़ी कृपा” – चैन मिला.
“और सर, बल्लेबाज़ी करने में तो मुझे क्या मज़ा आ रहा है! लाइफ बहुत
फैंटैस्टिक हो गई है सर, मुझे सचमुच बहुत
मज़ा आ रहा है!” – शिष्य अपनी ज़िंदगी से बहुत खुश था.
“लेकिन मुझे उतना मज़ा नहीं आ रहा” – कोच की आवाज़ आई.
“क्यों?”
“क्योंकि नहीं आ रहा”
“लेकिन सर, क्यों?”
“क्योंकि” – तस्वीर में शरणागत धोनी ने कहा – “मैं एक इंसान हूँ, सचमुच का इंसान. चलता-फिरता. कम-से-कम तेरे आने से पहले तो ऐसा ही था. और इस
तरह, एक फोटो में, एक ही पोजीशन में, हमेशा के लिए खड़े
रहने में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है.”
“तो किसी और पोजीशन में खड़े हो जाइए या कभी कभी
बैठ भी जाइए. या, ऐसा कीजिए किसी और
फोटो में शिफ्ट हो जाइए. अब तो आपकी इतनी सारी फोटो हैं सर! वैसे तो पहले भी थीं
पर अब तो बात ही कुछ और है, मैंने इतने सारे
अलग-अलग स्टाइल में फोटो खिंचवाए हैं कि आप देखेंगे तो दंग रह जाएँगे.” – शिष्य ने गर्व से बताया.
“दंग तो मैं हूँ ही”
“तो ठीक है सर. तो मैं अभी कुछ फोटो लेकर आता हूँ, आप किसी भी एक को
पसंद कर लीजिएगा” – कहकर वह दरवाज़े की ओर मुड़ा.
“नहीं” – कोच ने रोका – “तू रुक यहीं. मुझे कोई फोटो वोटो नहीं, अपना शरीर वापस चाहिए.”- उन्होंने साफ कहा – “अपने हाथ, अपने पाँव, अपना चेहरा, अपने बाल और सबसे बढ़कर अपना क्रिकेट और अपनी ज़िंदगी वापस चाहिए.”
ये सुनना था कि शिष्य की सारी रंगीन
खुशियाँ पल भर में ब्लैक एंड व्हाइट हो गईं, साँप सूँघ गया, दुनिया भर की बिजली एकसाथ सिर पर गिर पड़ी, पाँव के नीचे की धरती खिसक गई
“लेकिन सर…….” – उसने खुद को सम्हालते हुए कुछ बोलने की कोशिश की पर उसके
सर आज किसी और ही मूड में थे.
“लेकिन-वेकिन कुछ नहीं.
वैसे भी तुम मेरी विकेटकीपिंग का बुरा हाल कर रहे हो. कबाड़ा कर दिया है तुमने.
जानते हो मेरे रिकॉर्ड्स कितने खराब हो रहे हैं?”
“पर सर आपकी
बल्लेबाज़ी कितनी ज़बर्दस्त हो गई है, आप जानते हैं?” – शिष्य ने अच्छी तरफ ध्यान दिलाया – “लोग कहते हैं कि
आपकी बल्लेबाज़ी की औसत डॉन से भी बेहतर हो गई है”
“डॉन??” – बाबा ने पूछा.
“जी बाबा, डॉन”
“कौन डॉन?” – बाबा को आश्चर्य हुआ. अब डॉन वगैरह भी क्रिकेट खेलने
लगे.
“कोई डॉन ब्रैडमैन”
“अरे बेवकूफ! वे ‘कोई’ डॉन ब्रैडमैन
नहीं, ‘सर’ डॉन बैडमैन हैं! अब तक
के सबसे महान क्रिकेटर” – धोनी ने क्लैराइफाई किया.
“हाँ वही, उनसे
भी अच्छी औसत हो गई है आपकी सर. पता है? आप दौड़कर तो रन लेते
ही नहीं! सिर्फ छक्कों और चौकों से ही रन बना लेते हैं. दौड़ना तो जैसे जैसे आप भूल
ही गए हैं!!!”
“हाँ, क्यों नहीं? दौड़ना तो भूल ही गया और अगर एक और दिन भी
मैं इस फोटोग्राफ में घुसा रहा तो जल्द ही चलना-फिरना और बैठना भी भूल जाऊँगा”
“पर सर” –शिष्य ने
किसी तरह सर को मनाने की कोशिश की – “आप इतनी अच्छी
बल्लेबाज़ी कर रहे हैं”
“बल्लेबाज़ी मैं कर रहा
हूँ या तुम कर रहे हो?”
“बात तो एक ही है सर”
“बात तो सचमुच एक ही है” – कोच को
वाकयुद्ध में पिछड़ते देख बाबा आगे आए – “और वो ये कि तू
स्वार्थी हो रहा है और उस स्वार्थ में तू किसी की भी परवाह नहीं कर रहा, यहाँ
तक कि अपने उस कोच की भी नहीं जिसने तेरे सपने को सच करने के लिए क्या-क्या नहीं
किया. तुझे कोच किया, अपना पूरा वक्त दिया और यहाँ तक कि अंत
में अपनी ज़िंदगी भी दे डाली. तूने जो माँगा उसने वो दिया,
इसी के कारण आज तू इतनी ऊँचाई पर है और आज जब ये तुझसे अपना शरीर वापस माँग रहा है
तो तू ऐसा करने से मना कर रहा है? स्वार्थ की आग में तू पूरी
तरह जल चुका है. मैंने नहीं सोचा था कि तू अपने ऐसे रंग दिखाएगा” – आदि-आदि
जैसी कितनी ही बातें बाबा ने कहीं जो धीरे-धीरे कर निशाने पर लगीं भी.
शिष्य को महसूस हुआ कि वो सचमुच स्वार्थ में
अंधा हो गया है, कि वो सिर्फ अपनी सोच रहा है, कि अपने
महान, परम पूज्य सर की वह परवाह ही नहीं कर रहा, कि वह बहुत गिर गया है – बाबा की नज़रों में, कोच की
नज़रों में और अब खुद अपनी नज़रों में.
लेकिन बाबा ने उसे ज़्यादा गिरने नहीं दिया
और और बीच में ही बोले – “देख इतना सोचने की ज़रूरत नहीं है. तुझे बस इतना करना है कि
ये शरीर उसी को वापस देना है जिसका ये है. ये ज़िंदगी, ये
क्रिकेट-बल्लेबाज़ी सब उसी को वापस कर दे” – बाबा ने
ज्यों ही बल्लेबाज़ी का नाम लिया भूत की आँखों में आँसू आ गए. बोला – “बाबा, मेरा
मन इस खेल को छोड़ने का कर नहीं रहा”
“वाज़िब है बेटा” – कहकर सहसा जैसे बाबा को कुछ याद आया – “और सुन, तुझे अपनी क्रिकेट
के लिए अपने कोच से माफी माँगनी पड़ेगी”
“क्यों?”
“क्योंकि तूने उसके सिखाए इस खेल को पूरी
ईमानदारी से नहीं खेला. बल्लेबाज़ी तूने की, बड़े धूम-धड़ाके से
की पर जादू से, चुटकी बजाकर. ख़ैर
चल, वो तेरी मर्ज़ी थी परंतु तूने विकेटकीपिंग बहुत
ही खराब की. मानता है या नहीं?”
“मानता हूँ मैंने विकेटकीपिंग खराब की पर
बल्लेबाज़ी तो मैंने शानदार की न! खूब चौके-छक्के
मारे, पब्लिक ने कितना मज़ा लिया! हाँ, कुछ कैच छोड़ डाले, स्टम्प्स मिस कर गया तो क्या फर्क पड़ता है?”
“तुझे नहीं पड़ता पर तेरे सर को पड़ता है. उन्हें
तेरी तरह सिर्फ बल्लेबाज़ी ही नहीं, विकेटकीपिंग भी
प्यारी है. और चुटकी बजाकर चौके-छक्के लगाना तेरे सर को पसंद नहीं. वे नहीं चाहते
कि उनके रिकॉर्ड्स चीटिंग से, बेईमानी से बनें.
समझा?” – बाबा को ज़रा गुस्सा आ गया – “माफी मांग सर से”
“नहीं-नहीं, माफी मांगने
की इसमें कोई ज़रूरत नहीं है”- सर ने बीच में कहा – “तुमने
बल्लेबाज़ी का मज़ा लिया यही बहुत है. जी भरकर चौके-छक्के मारे, रन
बनाए और मेरे लिए रन बढ़ाए भी, बल्लेबाज़ी में मेरे रिकॉर्ड्स अच्छे
कर दिए, मुझे और भी ज़्यादा लोकप्रिय बना दिया, इसके लिए तो मुझे तेरा शुक्रिया अदा करना चाहिए”- धोनी ने
भारी होते माहौल को हल्का करने के लिए हँसते हुए कहा.
“नहीं-नहीं सर,
शुक्रिया तो मुझे आपका अदा करना चाहिए. आपने मुझे वो सबकुछ दिया जिसके सपने मैं
पेड़ पर लटके –लटके देखा करता था, बल्कि आपने तो उससे भी कहीं
ज़्यादा कुछ दिया मुझे! इतनी ख़ूबसूरत, इतनी अच्छी, इतनी बढ़िया दुनिया दी.
मैंने खूब मज़े लिए. खूब जीया मैं. सारे
शौक पूरे कर लिए. इंटरव्यू दिए, फोटोग्राफ खिंचवाए. यहाँ तक कि आपकी साइन
सीखकर ऑटोग्राफ भी दिए. भले ही जादू से सीखकर. फैन बनाए. थोड़े से आलोचक भी बनाए पर
सबसे बढ़कर जमकर चौके-छक्के मारे! चुटकियों से ही सही पर खूब बल्लेबाज़ी की. मैं बता
नहीं सकता सर मुझे कैसा लगता था जब गेंद हवा में दूर कहीं गुम हो जाया करती थी, गेंदबाज़ के सामने आते ही मुझमें एक अजीब सा रोमांच हो आता थ, क्रिकेट का मैदाम मेरे लिए स्वर्ग बन गया था सर. बल्लेबाज़ी सचमुच मेरे
लिए हुई सभी चीज़ों में सबसे अच्छी रही. मैं इसके रोमांच को कभी भूल नहीं सकता” – कुछ देर
रुककर फिर उसने कोच के सामने हाथ जोड़कर कहा –
“और इसके लिए मैं अपने
पूरे दिल से आपका आभारी हूँ. इस एहसान को तो कभी चुका नहीं सकता पर इतना ज़रूर कर
सकता हूँ कि आप जब चाहें – जो चाहें, मुझसे बस एक बार कहिएगा, मैं किसी भी कीमत पर आपकी आज्ञा का पालन करूँगा”
“मतलब, अलादीन के जिन्न
की तरह तू मेरा जिन्न बनेगा, क्यों!” – धोनी ने
मुस्कुराते हुए कहा.
“हाँ सर, आपके
लिए कुछ भी करूँगा. मेरे पास गुरु दक्षिणा के लिए तो कुछ है नहीं, आपकी आज्ञा पालन में ही अपनी गुरुदक्षिणा समझूँगा” – कहते-कहते उसका
गला भर आया.
अपने प्यारे शिष्य की इतनी सारी भावुक
बातें सुन हमारे राँची के राजकुमार का दिल भी भर आया. भावनाओं के सागर में गोते
लगा रहे शिष्य को अपनी ओर मुख़ातिब करते हुए उन्होंने कहा –
“देख रहा हूँ, इतने
ही दिनों में तुम्हें चौकों-छक्कों से विशेष लगाव हो गया है,
क्यों!”
शिष्य ने कुछ देर तक कोई जवाब नहीं दिया, फिर
हौले-से कहा – “सर, लगाव तो हो गया है,
पर अब इतना स्वार्थी नहीं कि आपसे आपकी ज़िंदगी लेकर अपनी बल्लेबाज़ी का मज़ा लूँ”
“वो सब तो ठीक है, पर ये
बताओ इंसानों के बीच की ये पॉप्युलैरिटी पसंद आई तुम्हें?”
“जी” – भूत ने सर
झुकाए-झुकाए कहा.
“ये भीड़-भाड़,
हल्ला-गुल्ला, शोर-शराबा अच्छा लगा?”
“जी”
“बल्लेबाज़ी अच्छी लगी?”
“जी”
“फिर से करना चाहोगे?”
“जी???”
“जी क्या?
चौके-छक्के लगाना चाहोगे? रन बनाना चाहोगे?” – कोच ने
डाँटते हुए पूछा.
बेचारा शिष्य डर गया. कुछ पल्ले नहीं पड़
रहा था. ‘ये सर को क्या हो गया? अचानक ये ऐसी
बहकी-बहकी बातें क्यों करने लगे? लगता है इतने दिनों के
अकेलेपन का इनपर गलत असर हो गया है.’
अभी बेचारा पूरी तरह से अपने सर के इन प्रश्नों
की वज़ह के बारे में सोच भी न पाया था कि कोच की कड़क आवाज़ उसके कानों में पड़ी – “सोच क्या रहे
हो?”
“जी? जी-जी
हाँ” – वह जल्दबाज़ी में कुछ और कह नहीं पाया. समझ तो उसके पहले
ही कुछ नहीं आ रहा था.
“क्या जी – जी?
चौके-छक्के लगाना चाहोगे या नहीं?”
“जी लगाना चाहूँगा”
“तो ठीक है,
तुम्हारी गुरुदक्षिणा यही रही. तुम्हारे लिए मेरी यही आज्ञा है कि तुम फिर से मेरे
लिए खूब चौके-छक्के लगाओ, अच्छे अच्छे शॉट लगाओ, बीच मैदान में गेंदों की बखिया उधेड़ो और खूब प्रशंसा प्रसिद्धि पाओ, मगर........” – कहकर कोच साह्ब चुप हो गए.
“मगर......धोनी बनकर नहीं”
“तो?”
“धोनी का पसंदीदा बल्ला बनकर. बोलो, मंज़ूर है?”
*********
तब से धोनी अपने पसंदीदा बल्ले को हमेशा अपने किट में रखते
हैं और उसी से खेलना पसंद करते हैं.
तो तुम भी कभी धोनी का ऑटोग्राफ लेने जाओ तो उनसे उनका पसंदीदा
बल्ला दिखाने को ज़रूर कहना. बड़े शौक से और बड़े प्यार से तुम्हें दिखाएँगे.
मगर हाँ, एक बात मैं तुम्हें यहाँ बता दूँ! उनके उस बल्ले को चाहे
जितने प्यार से छूना, सहलाना, पुचकारना, उसकी प्रशंसा करना पर उसके सामने कभी चुटकी मत बजाना. पूछोगे क्यों?
वो इसलिए, क्योंकि उसके कोच ने उसे चुटकियों से दूर रहने कहा है!!!! J