Wednesday, August 24, 2011

अम्मा की कहानियाँ और मेरा बचपन - तोता और दाल की कहानी (आगे - दृश्य 14)

Scene 14


चिंटू, काका और बिल्ली तीनों वापस उसी गोदाम में खड़े हैं जहाँ वे चूहे से मिले थे।
चिंटू (चूहे को पुकारता है): “हाँ जी भइया, चूहे भाई!”
चूहा हाथ मलते और खींसे निपोरते हुए बोरियों के पीछे से बाहर आता है। लेकिन बाहर आकर बिल्ली को देखते ही उसके होश उड़ जाते हैं। वह वहीं जड़ हो जाता है। बिल्ली उसकी ओर एक कदम आगे बढ़ती है। चूहे को होश आता है। तुरंत चिंटू से पूछता है।
चूहा (चिंटू से): “अरे भइया, जाल कहाँ है?”
चिंटू: “जाल भी ले आएँगे, पहले ज़रा दाँतों को तो तेज़ करवा लो”
चूहा (हकलाते हुए): “दाँत? हाँ-हाँ, वो-वो दाँत तो मैंने खुद ही तेज़ करवा लिया। चलो, जाल के पास चलो....चलो” – कहकर चूहा बाहर की ओर भागना चाहता है लेकिन बिल्ली रास्ता रोक लेती है।
बिल्ली: “अरे मियाँ! कहाँ भागे चले जा रहे हो? ज़रा हमसे भी तो मिलते जाओ!”
चूहा: “अह: ह: मौसी अभी मैं ज़रा जल्दी में हूँ। लौट के आता हूँ तो बात होगी, ठीक है?” – कहकर चूहा आगे बढ़ता है लेकिन बिल्ली अपना एक पंजा उसकी पूँछ पर रख देती है।
बिल्ली: “इतनी जल्दी भी क्या है? इतने दिनों बाद मिले हो...जाने कैसे दे सकती हूँ!”
चूहा (हाथ जोड़कर चिंटू से): “अरे भइया, मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था?”
चिंटू: “तो तैयार हो जाल काटने को?”
चूहा: “अरे जनम भर!”
चिंटू: “तो ठीक है...मौसी छोड़ दो इसे”
बिल्ली (चौंकते हुए): “क्या? क्या कह रहे हो? हाथ आए शिकार को छोड़ दूँ, वो भी चूहे को?”
चिंटू: “लेकिन अब तो ये जाल काटने को राज़ी हो गया है न!”
बिल्ली: “कौन सा जाल? कहाँ का जाल? मैं कोई जाल-वाल नहीं जानती। क्या मैं इतनी दूर इसे छोड़ देने को आई थी? नहीं, अब ये मेरे हाथों नहीं बच सकता। वरना मैं वापस अपनी सोसाइटी में जाकर क्या मुँह दिखाऊँगी?”
चिंटू (काका को धीरे से): “अरे बापी.....ये तो गड़बड़ हो गई!!”
काका: “हाँ सो तो हो गई, पर अब क्या करें?”
चिंटू: “तुम चूहे को पकड़कर उड़ सकते हो?”
काका सोचता है – “अ~~~~~”
चिंटू: “पापा, अभी सोचने का टाइम नहीं है। बना हुआ काम बिगड़ रहा है”
काका: “हाँ, उड़ सकता हूँ”
चिंटू: “फिर ठीक है, मैं बिल्ली रानी का ध्यान बँटाता हूँ। आप उसे लेकर उड़ जाइएगा”
चिंटू बिल्ली के सामने आता है।
चिंटू: “अरे मौसी, ओ मौसी”
बिल्ली चिंटू की ओर देखती है।
चिंटू: “तुम मेरी मौसी हो न?”
बिल्ली: “हाँ हूँ, सभी की हूँ”
चिंटू: “सबकी छोड़ो। मेरी हो या नहीं ये बताओ”
चूहा (चिंटू से): “अरे तुम्हें अपनी मौसी की पड़ी है, यहाँ मेरी जान जाने वाली है!”
बिल्ली चूहे पर ध्यान नहीं देती और चिंटू से कहती है।
बिल्ली (चिंटू से): “हाँ, तुम्हारी भी हूँ”
चिंटू: “तो तुम्हारी शक्ल मेरी माँ की शक्ल से क्यों नहीं मिलती है? नहीं मिलती न?”
बिल्ली: “नहीं, नहीं मिलती”
चिंटू: “क्यों?”
बिल्ली: “पता नहीं, ये तो मैंने सोचा ही नहीं”
चिंटू: “सोचो मौसी सोचो....मेरी माँ की और तुम्हारी शक्ल क्यों नहीं मिलती”
बिल्ली सोच में पड़ जाती है और उसके पंजे की पकड़ थोड़ी सी ढीली पड़ जाती है। चिंटू काका को इशारा करता है। काका धीरे से चूहे को अपने पंजों से पकड़ता है। चूहा चौंक जाता है। काका उसे इशारे से चुप रहने को कहता है।
बिल्ली अभी भी सोच रही है, उसका ध्यान काका और चूहे पर नहीं जाता। काका चूहे को लेकर धीरे से उड़ने की कोशिश करता है लेकिन चूहे की पूँछ अभी भी बिल्ली के पंजे के नीचे है इसलिए उड़ नहीं पाता।
चूहा धीरे से बिल्ली के पंजे के नीचे से अपनी पूँछ खींचता है। बिल्ली सोच में डूबी हुई है इसलिए उसका इन हरकतों पर ध्यान नहीं जाता। काका चूहे को लेकर बिल्ली के पीछे से उड़ जाता है। चिंटू भी धीरे से वहाँ से खिसक जाता है।
बिल्ली को पता नहीं चल पाता और वह अंत तक सोचती रहती है।


2 comments:

  1. कमाल है प्रज्ञा जी,इतने सोच विचार में डाल दिया है
    आपने बिल्ली को.अब तो राम ही मालिक है.

    अम्मा की कहानियाँ तो बहुत रोचक है.

    मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.

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  2. आपकी कहानियां पहली बार पढ़ीं , वाकई ! आप तो बहुत ही अच्छा लिखती हैं . आपकी सक्रियता बनी रहे और आप बाल साहित्य का मानवर्धन करती रहें ,यही मेरी हार्दिक मंगलकामना है.बहुत बहुत बधाई .

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