Friday, August 12, 2011

अम्मा की कहानियाँ और मेरा बचपन - तोता और दाल की कहानी (आगे - दृश्य 10 और 11)

Scene 10



दोपहर का वक़्त। नदी बह रही है। नदी के बगल में आम का बगीचा है। वहाँ खूब सारे हाथी जमा हैं। कोई चहल-कदमी कर रहा है, कोई नदी से पानी पी रहा है, कोई सो रहा है, कोई आपस में खेल रहा है। काका और चिंटू वहाँ आते हैं। एक हाथी चुपचाप बैठा है। दोनों उस हाथी की सूंड पर बैठते हैं।
चिंटू (उसी हाथी से): “हलो, कैसे हो?”
कोई जवाब नहीं आता। वह हाथी बस उन दोनों को देखता है और फिर आँखें बन्द कर लेता है।
चिंटू (दुबारा उसी से): “तुम्हारा नेता कौन है?”
वह हाथी इस बार भी कुछ नहीं कहता बस अपनी सूंड को सीधाकर नेता हाथी के सामने लाता है। दोनों वहाँ नीचे उतर जाते हैं। नेता हाथी मुरेठा पहने एक विशाल पेड़ के नीचे बैठा आँखें आधी बन्द किए सुस्ता रहा है। दोनों झुककर उसका अभिवादन करते हैं। उत्तर में नेता हाथी कुछ कहता नहीं सिर्फ भौंहे उठाकर प्रश्नवाचक मुद्रा बनाता है (मानो एक्स्प्रेशन से पूछ रहा हो कि क्या हुआ, बोलो), फिर आँखें बन्द कर लेता है।
चिंटू: “गजराज तुम समुन्दर सोखो, समुन्दर न आग बुझाए, आग न लाठी जलाए, लाठी न साँप मारे, साँप न रानी डसे, रानी न राजा छोड़े, राजा न बढ़ई डाँटे, बढ़ई न खूँटा चीरे, खूँटा न दाल निकाले, खूँटे में दाल है, क्या खाएँ क्या पीएँ, क्या लेकर परदेस जाएँ”
नेता हाथी कुछ देर तक कुछ भी नहीं कहता फिर ‘ना’ की मुद्रा में सिर हिला देता है।
चिंटू: “जी?”
नेता हाथी (सुस्ती में): “कहीं और जाओ जी। समुन्दर सोखने में बहुत मेहनत है”
चिंटू उदास होकर अपना सर झुका लेता है। फिर कुछ देर में उसका एक्स्प्रेशन बदलता है और उसके चेहरे पर गुस्से का भाव आता है।
उसी गुस्से में वह बुदबुदाता है – “जाल”


Scene 11

मछुआरों की बस्ती। लकड़ी पर रस्सी डालकर उसपर बड़े-बड़े जाल धूप् में सुखाए जा रहे हैं। चिंटू और काका वहीं एक जाल के पास आते हैं। उसे जैसे ही वे छूते हैं वह जाल भड़क उठता है।
जाल (भड़ककर): “अबे, क्या है बे?”
चिंटू (सहमकर): “जी..अ..अ..आपमें सबसे बड़ा कौन है?”
जाल: “मैं हूँ, क्यों?”
चिंटू (सहमते हुए): “जाल-जाल तुम गजराज फँसाओ, गजराज न समुन्दर सोखे, समुन्दर न आग बुझाए, आग न लाठी जलाए, लाठी न साँप मारे, साँप न रानी डसे, रानी न राजा छोड़े, राजा न बढई डाँटे, बढ़ई न खूँटा चीरे, खूँटा न दाल निकाले, खूँटे में दाल है, क्या खाएँ क्या पीएँ, क्या लेकर परदेस जाएँ”
जाल (झिड़ककर): “अबे च~~ल, तेरे एक दाल के दाने के लिए मैं...चल हट...भाग!”
चिंटू (चिढ़कर उसकी नकल करता हुआ): “अबे, चल तू...भाग तू...हट तू”
जाल: “चलता है या लपेटूँ तुझे हीं” – कहकर उन दोनों को लपेटने के लिए उनपर झुकता है, दोनों भागते हैं।


क्रमश:

2 comments:

  1. शुभ कामना
    रक्षाबंधन की ढेर सारी शुभकामनाएँ ....

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  2. Ham in bholi bhali kahaniyon ke khoob maze le rahe hain!

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