Thursday, September 23, 2010

24 सितम्बर 199..........या 201.................?

कोई राम मन्दिर या कोई बाबरी मस्ज़िद ही क्यों, अल्लाह या राम के छोटे-छोटे, मासूम पैगम्बर क्यों नहीं?
.........एक पवित्र धार्मिक स्थल पर एक अनाथाश्रम क्यों नहीं?????

Saturday, September 4, 2010

शरणार्थी

मैं जा रही थी
रास्ते में
मिली हवा
उसने पूछा - "शरणार्थी हो क्या?"
मैंने कहा - "नहीं, मेरा घर है यहाँ।"
मैं चल पड़ी।
रास्ते में
मिले खेत
सरसों ने पूछा - "शरणार्थी हो क्या?"
मैंने कहा - "नहीं, मेरा घर है यहाँ।"
मैं चल पड़ी।
रास्ते में
मिली गौरैया
उसने पूछा - "शरणार्थी हो क्या?"
मैं चीखी - "नहीं, मेरा घर है यहाँ।"
और मैं दौड़ी।
और फिर, कोई नहीं मिला।
घर पहुँची।
माँ थीं,
उन्होंने दरवाज़ा खोला।
"माँ, क्या मैं शरणार्थी हूँ?" - मैंने पूछा।
वे मुस्कुराईं,
मेरा सर सहलाया
और कहा - "हाँ"
"यह तेरा घर नहीं, एक छोटा-सा शरण-स्थल है।"
मैंने फिर यही कहा - "हाँ, मैं शरणार्थी हूँ।
सुना न तुमने ऐ हवा, सरसों के खेत, पंछी, नदिया!
तुमने सुना न!"