Thursday, January 28, 2010


काश कि कुछ ऐसा हो पाता
कि जो सड़क पर है वह अपनी आवारीगर्दी को जी पाता
इस ठंढे मौसम की खुशहाली, हरियाली को
किसी गर्म, रुईदार कम्बल में सी पाता
ठंढ को सिरहाने रख, ज़िन्दगी के गर्म बिस्तर पर सोता वह
किसी तकिए की खुश्बू को जीता, अलाव की गरमी को पी पाता
काश..कि कुछ ऐसा हो पाता

2 comments:

  1. जो सड़क पर है वह अपनी आवारीगर्दी को जी पाता
    ....सड़क का तो पता नहीं...पर
    सड़्क सा जीवन जाने कितने लोग गुजार रहें है....ये एक चित्र ही कई बातें कह देता है.....

    क्यों प्रज्ञा????

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  2. माफ़ी चाहब ई कमेन्ट हम तानी लिक से हटि के देत बानी ! बड़ा निक लिखनी रउरा बाकिर ऐसन होखे तब न ..............गरीबी आ भुखमरी के मुद्दा छोडी अबहीं एह देश में ओकरा ले महत्वपूर्ण मुद्दा भी बाचल बा जेके
    राउर नेता लोग उठा रहल बा ..............मंदिर बनो , मराठी बोलल जाऊ , हिन्दू संघ के गठन होखो , मुस्लिम समाज के बैठक होखो आपन जेब भराई होखो
    फेर देखल जाई गरीब , बेघर आ मजबूर लोग के ! रउरा आश्चर्य होई की हम ई कमेन्ट भोजपुरी में काहें दे तानी .......? हम आम आदमी बानी गवार , अनपढ़ , बिहारी , आखिर एह दिल्ली के चकाचौंध में भोजपुरी के गवारअन के भाषा से ज्यादा महत्त्व नइखे , ता लें हम गर्व से कही सकेनी की हम गवांर बानी !
    कबो रउरो अपना के गवार बना के सोचब बड़ा गर्व महसूस होई .........................गोड़ लागिले

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