जब हम छोटे थे और अम्मा (दादी अम्मा)के क़रीब थे तब हर शाम या यूँ कहूँ शाम ढल जाने पर जब मम्मी रात का खाना बना रही होतीं, बिसनाथ भइया अपने घर जाने से पहले बाथरूम और किचेन में रात भर के लिए पानी भर रहा होता, सुनीता माई बरतन साफ कर रही होती और बबीता आँगन या गली के दरवाज़े में ताला लगा रही होती, हम अम्मा से कहानियाँ सुनते थे। हर शाम सुनाने को चार-पाँच कहानियाँ ही होतीं पर हम कभी उनसे बोर नहीं हुए। जानते थे, अब ये होगा, पर कान फिर भी सतर्क होकर सुनते थे क्या हो रहा है।
बचपना छूट गया और वो आँगन भी पर कहानियाँ न छूट पाईं। अम्मा की सुनाई उन कहानियों को स्क्रिप्ट में ढालने की कोशिश कर रही हूँ, उम्मीद है इसे पढ़कर आपको भी कोई न कोई अम्मा और उनकी कहानियाँ याद आ जाएँगी।
जिसकी स्क्रिप्ट यहाँ लिख रही हूँ उस कहानी का असली शीर्षक तो पता नहीं पर हम उसे तोते और दाल वाली कहानी कहा करते थे...स्क्रिप्ट को किस्तों-किस्तों में जमा कर रही हूँ क्योंकि मूलधन काफी बड़ा है..
तो 'तोते और दाल की कहानी' की स्क्रिप्ट की पहली किस्त पेश-ए-ख़िदमत है:-
Scene 1
महाराजाओं का वक्त। सुबह करीब 10 बजे का समय। बाज़ार का दृश्य। पुरुष परंपरागत कपड़ों धोती-कुरता, मुरेठा, मूँछ में इधर-उधर घूमते-टहलते हुए, किसी-किसी के साथ बैल या बकरियाँ। महिलाएँ साड़ी में अपने घर के बाहर झाड़ू देती हुईं या आपस में बातें करती हुईं। व्यापारी दुकान में बैठे हुए। कुल मिलाकर एक व्यस्त नगर का दृश्य। नगर के बीचोबीच एक बरगद का पेड़। उसपर कई पक्षियों के घोंसले। कुछ पक्षी आपस में बातचीत करते, कुछ शांत बैठे। उसी पेड़ में एक घोंसला जिसमें एक मैना अपने तीन बच्चों को लोरी सुना रही है –
“चन्दा मामा दूर के, पुए पकावें गुड़ के...”
एक तोता पंख फड़फड़ाते हुए वहाँ आता है और घोंसले के किनारे पर बैठ जाता है। तोते का नाम काका है।
काका (मैना से): “कैसी हो बहन?”
मैना: “धीरे बोलिए, बड़ी मुश्किल से नींद आई है इन्हें! बीमार हैं तो जितना ज़्यादा सोएँ उतना अच्छा है”
काका (धीरे से): “अच्छा-अच्छा, मैं ये पूछने आया था कि तुमने चिंटू को देखा क्या?”
मैना: “नहीं, क्यों क्या हुआ?”
काका: “आज सुबह से ढूंढ रहा हूँ.....पता नहीं कहाँ चला गया!”
मैना: “अरे भईया, आप परेशान क्यों हो रहे हैं? वो तो बहुत स्मार्ट बच्चा है! खेल रहा होगा कहीं इधर-उधर! आ जाएगा”
दूसरी डाल पर बैठे एक कौए ने पूछा: “क्या हुआ काका? परेशान क्यों दिख रहे हो?”
उसकी तेज़ आवाज़ से मैना के बच्चे जाग जाते हैं और चीं चीं करने लगते हैं।
मैना (कौए से): “अरे भईया, देखो तुम्हारी तेज़ आवाज़ से मेरे बच्चे जग गए....ज़रा धीरे नहीं बोल सकते थे?....(बच्चों को) ओले-ओले-ओले मेरे प्यारे बच्चे, सो जाओ”
काका उड़कर उस डाल पर जाता है जिसपर कौआ बैठा है।
काका (उस कौए से): “मैं चिंटू को ढूंढ रहा था, तुमने देखा है क्या उसे?”
तभी पेड़ के झुरमुट से एक छोटा सा तोता निकलकर आता है (जो चिटू है) और झुककर सलाम करने की स्थिति में कहता है –
चिटू: “चिंटू आपकी सेवा में हाज़िर है सरकार...कहिए गुलाम के लिए क्या आज्ञा है?”
काका: “ये लो, आ गया मेरा नौटंकी बेटा”
चिंटू: “नौटंकी नहीं पापा कलाकार बेटा कहिए कलाकार बेटा”
कौआ: “कहाँ थे बेटा? काका तुम्हें कब से ढूंढ रहे हैं”
चिंटू: “क्यों बॉस, क्या हो गया? किसी से कोई लफड़ा-वफड़ा तो नहीं हुआ? हुआ हो तो बताओ अभी ठिकाने लगाता हूँ उसको”
काका उसे प्यार से एक थप्पड़ लगाता है।
काका: “अरे भुलक्कड़...याद नहीं आज बुआ के यहाँ जाना है!”
चिंटू: “बुआ? कौन सी बुआ? ओह! हाँ-हाँ-हाँ....तो चलो न फिर देर किस बात की?”
चिंटू दूर आकाश की ओर देखते हुए पंख फैलाकर कहता है – “हम यहाँ से पंख पसारेंगे, और वहाँ दूर तक जाएँगे, जाकर मिलकर बुआ से फिर, लौट यहीं पर आएँगे”
फिर पेड़ पर बैठे सभी पंछियों को वाहवाही की आशा में देखता है। सभी चुपचाप उसे देख रहे हैं। अचानक पेड़ पर बैठी गिलहरी ‘वाह-वाह’ कहकर ताली बजाती है। उसे देखकर फिर सभी ‘वाह-वाह’ कहते हैं और तालियाँ बजाते हैं।
क्रमश:
वाह! वाह!
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति.
अगली कड़ी का इंतजार है.
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है.
Bachpankaa chhota-sa bayaan aur ye scrpt dono bahut achhe lage!
ReplyDeletebahut badhiya
ReplyDelete@राकेश जी, क्षमा जी, रश्मि जी>>>स्क्रिप्ट पसन्द करने के लिए बहुत शुक़्रिया...उम्मीद करती हूँ अगली कड़ियाँ भी पसन्द आएँगीं..
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति....
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