Thursday, July 28, 2011

अम्मा की कहानियाँ और मेरा बचपन - तोता और दाल की कहानी (आगे - दृश्य 5 और 6)

Scene 5



काका और चिंटू दोनों बाज़ार के बीचोबीच बने महाराज की मूर्ति पर बैठे हैं।
काका: “अब क्या होगा चिंटू? हमारी सहायता में तो कोई भी आगे नहीं आ रहा”
चिंटू (गाते हुए): “जाने क्या होगा रामा रे, जाने क्या होगा मौला रे”
दोनों कुछ देर चुप रहते हैं। कुछ देर बाद चिंटू बोलता है।
चिंटू: “छोड़ो बापू....जाने दो उस दाल को (लम्बी साँस छोड़ते हुए कहता है) दाने-दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम”
काका (जोश में): “नहीं चिंटू, अब तो मुझे भी उस दाने को लेने की ज़िद हो आई है”
चिंटू भौंचक्का होकर काका के इस रूप को देखता है। फिर अपना सर हिलाता है मानो यकीन न हो रहा हो।
फिर यकायक काका की पीठ थपथपाकर कहता है: “ये हुई न बहादुरों वाली बात!”
उसके पीठ थपथपाने पर काका उसे आँखें दिखाता है। चिंटू तुरंत उसकी पीठ पर से अपना हाथ हटाकर गहरी सोच की मुद्रा बना लेता है। दोनों कुछ देर सोचते हैं। अचानक चिंटू चुटकी बजाता है और कहता है।
चिंटू (चुटकी बजाते हुए): “आइडिया!”
काका उसे देखता है। चिंटू काका को देखकर उसे थोड़ी दूर पर सपेरे की डिबिया में बैठे साँप की ओर देखकर अपने पंखों से इशारा करता है और मुस्कुराता है।

Scene 6

डिबिया में मोटा, काला साँप बैठा है।
चिंटू (थोड़ी दूर बैठकर): “साँप साँप तुम रानी डसो, रानी न राजा छोड़े, राजा न बढ़ई डाँटे, बढ़ई न खूँटा चीरे, खूँटा न दाल निकाले, खूँटे में दाल है, क्या खाएँ क्या पीएँ, क्या लेकर परदेस जाएँ”
साँप: “मुझे देशद्रोही समझा है क्या? चला जा, जा किसी और के पास जा। एक दाल के दाने के लिए मैं....हुँह” साँप आँखें बन्द कर सो जाता है।
चिंटू: “अरे साँप भाई सुनो तो....”
आँखें बन्द किए बीच में ही साँप अपनी बड़ी सी लपलपाती जीभ उसतक तेज़ी से लाकर बड़े ज़ोर से ‘हिस्स’ की आवाज़ निकालता है।
चिंटू डर से चार-पाँच कदम पीछे हट जाता है और धीरे-से कहता है।
चिंटू (धीरे से): “तुझे तो मैं देख लूँगा”
साँप एक बार फिर धीरे-से ‘हिस्स’ की आवाज़ निकालता है।
चिंटू: “जा रहा हूँ भाई जा रहा हूँ”
उड़ने के लिए चिंटू पीछे मुड़ता है तभी उसकी नज़र अखाड़े पर पड़ती है। पहलवान कुश्ती लड़ रहे हैं, दण्ड-बैठक कर रहे हैं। वहीं पर कुर्सी पर बैठा एक पहलवान सभी को कुछ न कुछ सिखा रहा है। उसकी कुर्सी से टिकाकर एक लाठी रखी हुई है। चिंटू चुपचाप उस लाठी के पास जाता है। लाठी की मूँछे हैं। चिंटू लाठी को हसरत भरी निगाहों से देखते हुए उसे हौले से छूता है।
चिंटू (छूते हुए): “लाठी भाई क्या तगड़ी बॉडी पाई है तुमने!”
लाठी गर्व से कहता है: “मेरा मालिक रोज़ मेरी तेल मालिश करता है”
चिंटू: “वो तो देखकर ही लग जाता है। तुमने कई बड़े-बड़े वीरों के छक्के छुड़ाए हैं, सुना है!”
लाठी: “सही सुना है”
चिंटू: “अच्छा?”
लाठी (अपनी मूछों पर ताव देते हुए): “और नहीं तो क्या? बड़े से बड़ा पहलवान मेरे सामने आज तक नहीं टिक सका, कोई नहीं टिक सकता”
चिंटू: “कोई नहीं?”
लाठी: “ना, कोई भी नहीं”
चिंटू: “साँप भी नहीं?”
लाठी (हँसते हुए): “हा:-हा:, साँप भला मेरे सामने क्या चीज़ है?”
चिंटू: “तुम इतने मज़बूत हो लाठी भाई, मेरी एक सहायता करोगे?”
लाठी: “सहायता?”
चिंटू: “लाठी-लाठी तुम साँप मारो, साँप न रानी डसे, रानी न राजा छोड़े, राजा न बढ़ई डाँटे, बढ़ई न खूँटा चीरे, खूँटा न दाल निकाले, खूँटे में दाल है, क्या खाएँ क्या पीएँ, क्या लेकर परदेस जाएँ”
लाठी (हकलाते हुए): “स-स-साँप? त-त-तुम चाहते हो कि मैं साँप को मारूँ?”
चिंटू: “हाँ लाठी भाई, अभी तुमने ही तो कहा कि तुम्हारे आगे साँप........”
लाठी (बीच में ही): “हाँ, वो तो ठीक है। लेकिन तुमने देखा नहीं कि अभी-अभी मालिक ने मुझे तेल लगाया है? इस मारपीट के चक्कर में अगर मैं गन्दा हो गया तो?”
चिंटू कुछ कहने के लिए मुँह खोलता ही है कि लाठी फिर बोल उठता है।
लाठी: “तुम जाओ यहाँ से, मैं साँप-वाँप को मारने वाला नहीं”
चिंटू: “पर?”
लाठी: “जाते हो या?” कहकर उछल कर चिंटू के एक कदम नज़दीक आता है।
चिंटू डरकर एक कदम पीछे हो जाता है।


क्रमश:

3 comments:

  1. प्रज्ञा जी सुन्दर और रोचक धारा ...बचपन की कहानियां याद दिलाने के लिए आभार
    भ्रमर ५
    तुम इतने मज़बूत हो लाठी भाई, मेरी एक सहायता करोगे?”
    लाठी: “सहायता?”
    चिंटू: “लाठी-लाठी तुम साँप मारो, साँप न रानी डसे, रानी न राजा छोड़े, राजा न बढ़ई डाँटे, बढ़ई न खूँटा चीरे, खूँटा न दाल निकाले, खूँटे में दाल है, क्या खाएँ क्या पीएँ, क्या लेकर परदेस जाएँ”

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