Scene 7
चारों ओर आग की भयंकर लपटें उठ रही हैं। लाल और पीले रंग के अलावा और कुछ नहीं दिख रहा। आग की लपकती ज्वालाएँ मानो सामने पड़ने वाले किसी को भी लील जाएँ। लपटों में दो बड़ी-बड़ी आँखें हैं जो आग की हैं। बैकग्राउंड से ये पंक्तियाँ चल रही हैं चिंटू की आवाज़ में: ”आग-आग तुम लाठी जलाओ, लाठी न साँप मारे, साँप न रानी डसे, रानी न राजा छोड़े, राजा न बढ़ई डाँटे, बढ़ई न खूँटा चीरे, खूँटा न दाल निकाले, खूँटे में दाल है, क्या खाएँ क्या पीएँ, क्या लेकर परदेस जाएँ”
भयंकर अट्टहास: “ही-ही-हा-हा-हा-हा-हा-हा..........”
आग (वही आवाज़): “तो तुम चाहते हो कि हम, हम जिसे दुनिया अग्नि देव के नाम से जानती है, हम - जिसकी हाथ जोड़कर दुनिया पूजा किया करती है, हम – जो एकबार किसी को घूरकर देख लें तो वो खड़ा-खड़ा राख हो जाए, हम – जिसकी.........”
चिंटू आग के इस स्व-बखान से परेशान हो उठता है और बीच में बोल उठता है – “ओफ्फोह, हाँ अग्नि देव आप ही-आप ही”
आग चिंटू की ओर देखता है और लगातार गर्व भरी गंभीर आँखों से उसे देखता रहता है।
आग: “तो तुम चाहते हो कि हम उस..उस...उस तुच्छ लाठी को जलाने उसके पास जाएँ??”
चिंटू और काका एक-दूसरे को देखते हैं।
आग: “ह: ह:, उस लाठी को कहो हम तक चल कर आए। हम उसे जलाएँगे, अवश्य जलाएँगे”
चिंटू: “पर वह चलकर आप तक नहीं आ सकता”
आग: “कारण?”
चिंटू: “वो-वो दरअसल महाराज...” कहकर चिंटू सोचने लगता है।
आग प्रश्नवाचक दृष्टि से उसकी ओर देखता है।
आग: “देर मत करो बच्चे, जल्दी बताओ। हमारे पास टाइमपास करने के लिए वक़्त नहीं है”
चिंटू (जल्दी से, बिना कुछ सोचे): “उसकी टांग में फ्रैक्चर है”
आग: “तो ठीक है, फ्रैक्चर ठीक होने के बाद आ जाए”
चिंटू कुछ कहना चाहता है पर आग अपने दोनों हाथों से उसे चुप रहने का आदेश दे देता है। चिंटू काका को देखता है। काका: “मैं चला अपनी बहन के पास” – कहकर पीछे मुड़कर उड़ चलता है और जाकर किसी पेड़ की डाल पर बैठ जाता है।
चिंटू: “अरे पापा, सुनो तो...” उड़ता है और पीछे-पीछे जाकर उस डाल पर बैठ जाता है जहाँ काका उड़कर बैठा है।
चिंटू: “अरे आप सुनो तो......हम समुन्दर को बुलाएँगे”
काका: “क्या??????” और बेहोश होकर पेड़ से नीचे गिर जाता है।
चिंटू: “अरे पापा!” नीचे जाता है और अपने पंख से काका को हवा करता है।
क्रमश:
में: ”आग-आग तुम लाठी जलाओ, लाठी न साँप मारे, साँप न रानी डसे, रानी न राजा छोड़े, राजा न बढ़ई डाँटे, बढ़ई न खूँटा चीरे, खूँटा न दाल निकाले, खूँटे में दाल है, क्या खाएँ क्या पीएँ, क्या लेकर परदेस जाएँ” kitna kuch yaad aa gaya
ReplyDeleteKahanee ke maze le rahee hun! Bahut badhiya!
ReplyDeletebade maze se hum sabhi padh rahe hai. bhut anand aa raha hai.aisa chav ubhar pana aasan nahi hota hai .aapko bhut sare shubkamnaye.
ReplyDeletewow.. that was an interesting read !!!
ReplyDeleteआपका बयान हमेशा की तरह प्यारा!!
ReplyDelete@रश्मि जी, क्षमा जी, दीप्ति जी, ज्योति जी, संजय जी>>>कहानी पसंद करने का बहुत-बहुत शुक्रिया...
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