Wednesday, July 27, 2011

अम्मा की कहानियाँ और मेरा बचपन - तोता और दाल की कहानी (आगे - दृश्य 4)

Scene 4

महारानी मुकुट लगाए, सजी धजी ब्यूटी पार्लर में बैठी हैं। उनके अगल-बगल चार उन्हें सजाने वालियाँ हैं। एक उनकी हाथ की अंगुलियों में नेलपॉलिश लगा रही है, दूसरी पाँव की। तीसरी उनके बालों में कंघी कर रही है। महारानी के चेहरे पर मुल्तानी मिट्टी का लेप लगा है और आँखों पर खीरा रखा है। चिंटू रोशनदान से ब्यूटी पार्लर के अन्दर जाता है और सामने रखे क्रीम के डिब्बे पर बैठते-बैठते पूछता है।
चिंटू: “महारानी साहिबा हैं क्या?”
कंघी करने वाली सेविका: “तेरे सामने हैं”
चिंटू (आश्चर्य से): “तू?”
सेविका: “नहीं, ये” (कहकर महारानी की ओर इशारा करती है)
चिंटू: “ओहो” झुककर सलामी देता है।
चिंटू: “महारानी की जय हो”
महारानी (वैसे ही बैठे-बैठे): “बोलो”
चिंटू: “जी, वो बात ये है कि...........”
महारानी (बीच में ही): “जो कहना है जल्दी कहो, मैं ज़रा बिज़ी हूँ”
चिंटू (एक साँस में कह जाता है): “रानी-रानी तुम राजा छोड़ो, राजा न बढ़ई डाँटे, बढ़ई न खूँटा चीरे, खूँटा न दाल निकाले, खूँटे में दाल है, क्या खाएँ क्या पीएँ, क्या लेकर परदेस जाएँ”
रानी भड़क उठती है। आँखों पर से खीरा निकालकर फेंक देती है, सीधी बैठ जाती है और चिंटू को क्रोधित नज़रों से खोजती है। सभी सेविकाएँ डर जाती हैं।
रानी (इधर-उधर देखते हुए): “क्या कहा? कौन है ये?”
सभी डरी-सहमी सेविकाएँ चिंटू की ओर इशारा करती हैं जो महारानी के क्रीम के डिब्बे पर बैठा है।
महारानी (दाँत पीस कर): “एक दाल के दाने के लिए मैं महाराज का साथ छोड़ दूँ? जनम जनम का साथ छोड़ दूँ? तुम्हारी ज़ुर्रत कैसे हुई ऐसा कहने की? पकड़ो इस तोते को, आज मैं इसका नमकीन हलवा महाराज को खिलाऊँगी”

इतना कहना था कि पार्लर में अफरा-तफरी मच जाती है। चारों सेविकाएँ हर तरह से चिंटू को पकड़ने में लग जाती हैं। चिंटू यहाँ-वहाँ भागता फिर रहा है। कई सामान गिर जाते हैं, पूरा हड़कंप मच जाता है। इस धमाचौकड़ी में उसके ऊपर भी पाउडर, तेल वगैरह गिर जाते हैं। किसी-किसी तरह चिंटू वापस रोशनदान से बाहर की ओर भाग निकलता है। जब वह बाहर आता है तो डाल पर बैठा काका उसे ऐसे रूप में पहचान नहीं पाता और उसे अपनी ओर तेज़ी से आता देख डर कर भागने लगता है।
चिंटू (उसे भागता देख चिल्लाकर कहता है): “अरे, ये मैं हूँ”
लेकिन काका पेड़ के झुरमुट में छिप जाता है। तब चिंटू डाल पर बैठकर गाता है: “अरे मेरे पापा, मुझे पहचानो, कहाँ से आया, मैं हूँ कौन, मै हूँ कौन, मैं हूँ कौन, मैं हूँ, मैं हूँ, मैं हूँ........(थकी और दुखी आवाज़ में) चिंटू” (पुराने डॉन के टाइटल ट्रैक की धुन में) काका चौंकता है। ध्यान से चिंटू को वहीं से देखता है और फिर बाहर आता है। काका (आश्चर्य से): “चिंटू ये तू है!!”
चिंटू: “हाँ, महारानी ने ज़रा प्यार से मेकअप कर दिया था न सो...”
काका खूब ज़ोर-ज़ोर से हँसता है, हँसते-हँसते लोटपोट हो जाता है।
काका (हँसते हुए): “हा-हा-हा, जाकर सूरत देख अपनी, हो-हो-हो”
चिंटू नज़दीक के एक तालाब में खुद को देखता है और वो भी हँसने लगता है।

क्रमश:

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