Monday, September 26, 2011

अम्मा की कहानियाँ और मेरा बचपन - तोता और दाल की कहानी (आगे - दृश्य 25 और 26)

Scene 25


तुरही बजती है। किले का मुख्य दरवाज़ा खुलता है। महाराज का रथ बाहर निकलता है, उनके रथ के बगल में चिंटू और काका का एक रथ निकलता है।
राजा (बाहर खड़े पहरेदारों से): “तुम दोनों इनके रथ के अगल-बगल इनकी रक्षा करने हेतु चलो” ये दोनों वही पहरेदार हैं जिनसे शुरु में चिंटू और काका की मुलाकत हुई थी। महाराज के कहने के अनुसार पहला पहरेदार चिंटू और दूसरा पहरेदार काका की साइड में जाकर खड़ा हो जाता है। चिंटू पहले पहरेदार को देखकर मुस्कुराता है।
चिंटू (पहले पहरेदार से): “क्यों भाईसाहब, भाले को अच्छी तरह से पकड़ा है न?”
पहरेदार चिंटू को देखता है और चौंक जाता है। पहरेदार: “तुम????”
चिंटू: “पहचान लिया?” – कहकर सामने देखने लग जाता है।


Scene 26
बढ़ई का घर छावनी बन गया है। बहुत सारे सैनिक खड़े हैं। झोंपड़ी के सामने ज़मीन पर राजा खड़े हैं। चिंटू और काका महाराज के दाएँ-बाएँ खड़े पहरेदारों के कन्धों पर बैठे हैं। राजा के सामने बढ़ई झुककर खड़ा थर-थर काँप रहा है।
बढ़ई (राजा के चरणों में गिरकर): “नहीं नहीं महाराज, मैं अभी-अभी तुरंत जाकर खूँटे को चीरता हूँ, आप सभी के सामने हे चीर देता हूँ......चलिए”
बढ़ई औजारों वाला झोला उठाता है। राजा, चिंटू और काका रथ पर सवार होते हैं। बढ़ई राजा के रथ के आगे-आगे चल रहा है। पीछे पूरी सेना चल रही है”
वो जगह आती है जहाँ खूँटा है। थोड़ी दूर पर रथ रुक जाता है। राजा, चिंटू और काका बढ़ई के साथ रथ से उतरकर खूँटे तक पैदल आते हैं। बढ़ई खूँटे के पास बैठता है। झोले में से आरी निकालता है। बढ़ई अभी भी काँप रहा है। खूँटा आँखें खोले सब देख रहा है और डर भी रहा है। मगर बोलता कुछ भी नहीं।
बढ़ई आरी को जैसे ही खूँटे पर रखता है वैसे ही खूँटा बोल उठता है – “हमको चीरो-उरो नहीं कोई, हम दाल निकालते हैं अब हीं”
बढ़ई: “चो~~~~~~प...आज तेरी वज़ह से महाराज के सामने मेरी पेशी हुई है, आज तो मैं तुझे छोड़ूंगा नहीं....चीरकर रख दूँगा” – कहकर आरी चलाता है।
खूँटा (गिड़गिड़ाता है): “नहीं-नहीं महाराज, मुझे बचा लीजिए...बचा लीजिए महाराज”
राजा: “रहने दो इसे” बढ़ई आरी हटा लेता है और पीछे खिसककर खड़ा हो जाता है।
राजा (खूँटे से): “दाल निकालो”
खूँटा: “जी” खूँटा आँखें बन्द करता है। अजीब-अजीब सी आवाज़ें निकालता है। कुछ देर के बाद ही उसमें से अचानक एक दाल का दाना निकलता है और छिटककर दूर जा गिरता है। चिंटू जल्दी से जाकर उसे उठा लेता है और बढ़ई के कन्धे पर जाकर बैठ जाता है। पूरी सेना में, महाराज सहित, खुशी की लहर दौड़ जाती है। सभी एक बार ‘महाराज की जय’ के नारे लगाते हैं। फिर चिंटू जोर से बोलता है।
चिंटू (जोर से): “हिप-हिप” सभी एक साथ: “हुर्रे~~~~~~”
तीन बार बोलते हैं। फिर राजा आगे बढ़कर चिंटू के पास आते हैं, उसकी पीठ थपथपाते हैं। फिर अपने सिपाहियों से कहते हैं।
राजा (सिपाहियों से): “चिंटू और और~~~~” – उन्हें काका का नाम नहीं पता इसलिए वे काका की ओर जिज्ञासु आँखों से देखते हैं। काका समझ जाता है और झुककर अपना नाम बताता है।
काका: “काका”
राजा: “हाँ, चिंटू और काका को परदेस ले जाने के लिए रथ का प्रबन्ध किया जाए और रथ को उपहारों से भर दिया जाए” चिंटू खुश हो जाता है पर काका बोल उठता है।
काका: “नहीं महाराज, रथ और उपहार हमें नहीं चाहिए”
चिंटू चौंक जाता है। राजा समेत उनकी पूरी सेना भी हैरान हो जाती है।
राजा (हैरानी से): “मगर क्यों?”
चिंटू (काका से): “हाँ क्यों? महाराज इतने शौक से दे रहे हैं तो हमें उनके उपहारों का सम्मान करना चाहिए। हम महाराज के सामने ऐसी हेकड़ी कैसे दिखा सकते हैं कि इतने प्यार से दिए गए उनके रथ व उपहारों को ठुकरा दें!” काका (राजा को देखकर, हाथ जोड़कर): “नहीं महाराज, इसमें हेठी दिखाने या ठुकराने जैसी कोई बात नहीं, हम तो आपके आभारी हैं कि आपने हमपर इतनी दया दिखाई”
राजा: “फिर क्या परेशानी है काका?”
काका: “दरअसल महाराज, मैं अपनी बहन के यहाँ किसी भी तरह के ताम-झाम के साथ नहीं जाना चाहता। मैं किसी की भी नज़रों में अपने और अपनी बहन के लिए ईर्ष्या का भाव पनपते नहीं देखना चाहता।”
राजा (थोड़ा मायूस होकर): “ठीक है काका, जैसा तुम चाहो”
चिंटू (काका से): “पापा, आर यू श्योर?”
काका ‘हाँ’ की मुद्रा में सर हिलाता है।
चिंटू: “पर डैडी, एक दो अशर्फी उठाने में क्या हर्ज़ है?”
काका: “नहीं चिंटू”
चिंटू (कन्धे उचकाते हुए): “ओ.के. ऐज़ यू विश”
काका: “तो महाराज, हमें विदा दें”
चिंटू: “जी महाराज, और महारानी को मेरा नमस्कार और धन्यवाद दोनों दे दीजिएगा! कहिएगा साँप से डरने की अब कोई ज़रूरत नहीं”
राजा: “ठीक है”
चिंटू और काका उड़ जाते हैं। सभी यहाँ से हाथ हिलाकर उन्हें ‘टाटा’ कहते हैं। बाय कहते हुए राजा कहता है।
राजा (हाथ हिलाते हुए): “कितना प्यारा तोता था! रानी को भी धन्यवाद कह गया (फिर अचानक उनका चिंटू के कहे हुए शब्दों पर ध्यान जाता है) पर ये साँप से डरने को क्यों मना कर गया?”
तब तक काका और चिंटू थोड़ी दूर चले जा चुके हैं। राजा यहीं से जोर से पूछ कर कहता है।
राजा (जोर से): “अरे चिंटू रुको! तुम्हारा धन्यवाद तो मैं दे दूँगा पर ये साँप बीच में कहाँ से आ गया”
चिंटू कुछ नहीं कहता सिर्फ कनखियों से पीछे मुडकर राजा को देखता है, फिर काका को देखता है और फिर स्क्रीन (कैमरे में) की ओर देखकर धीरे से मुस्कुरा देता है। बैकग्राउंड से चिंटू की आवाज़ आती है – “क्या लेकर परदेस जाएँ” – दोनों परदेस को उड़ जाते हैं।



समाप्त

2 comments:

  1. अपनी लेखनी के द्वारा आपने बहुत सुंदर समां बांधा। बधाई।

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    लगने जा रहा है बाल साहित्‍य का महाकुंभ..
    ...मानव के लिए खतरा।

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  2. आदरणीया प्रज्ञा जी,
    बहुत सुन्दर स्क्रीन प्ले लिखा आपने.
    यह कहानी मैंने भी किसी न किसी रूप में अपनी दादी से सुनी थी.
    बहुत ही मनो वैज्ञानिक होती हैं ये कथाएँ.
    मनोरंजन के साथ साथ बच्चों के मानसिक विकास और शब्दों के साथ परिचय में बहुत सहायता करती हैं.
    बधाई आपको.

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