बारिश में भीगे
हल्के-हल्के हिलते पत्तों सी,
हवा में खुद को सुखाती
भूरी गौरैया के पंखों सी,
बड़ी-बड़ी खिड़कियों के
लम्बे-लम्बे परदों सी,
दादी की खुली
सफेद, रेशमी ज़ुल्फ़ों सी,
बूढ़े से काका की
खिलखिलाती, पोपली हँसी सी
दाँतों के बग़ैर
होठों में कहीं फँसी सी,
चश्मा हटाती
माई के हाथों सी
पतली सी अंगुलियों
और झुर्रीदार आँखों सी,
नानी के बनाए
गरम-नरम स्वेटर सी,
कमरे में लोगों से
घिरे हुए हीटर सी,
आटा-मिल के
नौ बजे के सायरन सी,
सरदी की हवा में
शॉल के अन्दर सिहरन सी,
राख़ के भीतर चूल्हे में
जलते अंगारों सी,
मेले में सजे हुए
हलचल बाज़ारों सी,
गरमी की छुट्टियों में
बन्द पड़े स्कूलों सी,
आधे खिले-आधे बन्द
पॉप्पी के फूलों सी,
ये दिल की दुनिया
होठों के सरगम,
जीवन के नदी-ताल
सपनों की धड़कन,
कित-कित के खेल सी
सुहानी सी खुशियाँ,
ईश्वर की इनायत या
कोई अपनी ही दुआ।
ईश्वर की इनायत ही है.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखा है आपने.
धन्यवाद विशाल...
ReplyDeleteबहुत सुंदर पंक्तियाँ ...इन छोटी छोटी खुशियों से ही जीवन सजता है.....
ReplyDeleteखूबसूरत बिम्बों से सजी सुन्दर रचना .
ReplyDeletewww.revealdtruth.blogspot.com
ReplyDelete@मोनिका जी, संगीता जी.....बहुत-बहुत शुक़्रिया..
ReplyDeleteबहुत खूब, शुभकामनायें आपको !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता..बधाई.
ReplyDelete________________________
'पाखी की दुनिया' में 'पाखी बनी क्लास-मानीटर' !!
@सतीश जी, अक्षिता जी...शुक़्रिया...आपकी शुभकामनाएँ तथा बधाईयाँ नेमत हैं कविता के लिए...
ReplyDeleteIt's a beautiful creation indeed.
ReplyDelete@Zeal>>>Thank u:)
ReplyDeleteखुशियों की चिर परिचित और कुछ नई परिभाषाओ पर आप के अंदाज़ में एक सुंदर प्रस्तुति
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