Saturday, September 4, 2010

शरणार्थी

मैं जा रही थी
रास्ते में
मिली हवा
उसने पूछा - "शरणार्थी हो क्या?"
मैंने कहा - "नहीं, मेरा घर है यहाँ।"
मैं चल पड़ी।
रास्ते में
मिले खेत
सरसों ने पूछा - "शरणार्थी हो क्या?"
मैंने कहा - "नहीं, मेरा घर है यहाँ।"
मैं चल पड़ी।
रास्ते में
मिली गौरैया
उसने पूछा - "शरणार्थी हो क्या?"
मैं चीखी - "नहीं, मेरा घर है यहाँ।"
और मैं दौड़ी।
और फिर, कोई नहीं मिला।
घर पहुँची।
माँ थीं,
उन्होंने दरवाज़ा खोला।
"माँ, क्या मैं शरणार्थी हूँ?" - मैंने पूछा।
वे मुस्कुराईं,
मेरा सर सहलाया
और कहा - "हाँ"
"यह तेरा घर नहीं, एक छोटा-सा शरण-स्थल है।"
मैंने फिर यही कहा - "हाँ, मैं शरणार्थी हूँ।
सुना न तुमने ऐ हवा, सरसों के खेत, पंछी, नदिया!
तुमने सुना न!"

9 comments:

  1. apne desh mai koi sharnarthi nhi hota hai!! na hi aap ho !!


    Jai HO Mangalmay HO

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  2. बहुत गहरे अर्थों को समेटे है आपकी यह कविता---लिखा भी बहुत सुन्दर शिल्प में है।--लेकिन लड़कियां तो घर की मालकिन होती हैं--शरणार्थी नहीं।

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  3. isee kavita ke baare me mai jikr kiya tha. .sahaj bhaw se bhartiy sanskriti ka ytharth darshit kiya gaya hai....umda srijan hai dhanyvad...

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  4. @शिवा, विवेक जी - अच्छा लगा ये सुन के आपको कविता पसन्द आई...अन्य रचनाओं से भी आपकी उम्मीदों पर खरा उतरने की कोशिश करूँगी..

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  5. @हेमंत जी...आपने एक बड़ी ही मुश्किल बात कही है...

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  6. prgya ji ek baat mai saalon pahale bhi kahaa tha aur aaj bhi kahunga. . .aapaki kuchh rachanaaon me mujhe surykant tripati niraala ki jhalak dikhati hai...shayad mai sahee hun. .kyonki abhi is laayak nahee huaa ki aalochanatmak samikshaa kar sakun...aap nirala se prabhawit hain kya ??

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  7. मेरा दुर्भाग्य है कि 'सरोज-स्मृति' व 'तोड़ती पत्थर' के अलावा उनकी कोई अन्य कृति मैं अभी तक पढ़ नहीं पाई हूँ...यदि पढ़ा भी है तो बहुत बचपने में...

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  8. शायद यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे निराला जी को पढ़ने का ज्यादा अवसर मिला है ! लेकिन मै उनका उतना बड़ा प्रशंसक नहीं हूँ जितना जयशंकर प्रसाद जी एवं हरिवंश बच्चन जी का ! काव्य जगत में रामचरित मानस के बाद आंसू ही मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित करती है ! हलाकि मधुशाला भी अनोखी कृति है ! वैसे शरणार्थी कविता अत्यंत स्पष्ट एवं भावपूर्ण है ! इस कविता को पाकर काव्य जगत लाभान्वित होगा ......धन्यवाद

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  9. "हकीकत में हम सब शरणार्थी ही तो हैं जो कि पृथ्वी पर शरण लिए हुए हैं.....सरल और गहनता लिए हुए कविता...."

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