Saturday, April 3, 2010

याद आते हो

सागर किनारे की लहरें जब छूती हैं मुझे ,
तुम याद आते हो
डूबते सूरज के पीछे से झाँकते हो
धीरे से मुस्कुराते हो,
तुम याद आते हो।
अमलतास के पीले फूल पूछते हैं मुझसे
पूरब की खिड़की मेरी बंद है कब से
पीपल के सूखे, झड़े हुए पत्ते
उड़ते-उखड़ते तुम्हें चाहते हों जैसे
पीलेपन में इनके जब तुम छा जाते हो
धीरे से आकर इन्हें थपथपाते हो,
तब याद आते हो।
परछाईयों तक पसरकर शाम की मरियल धूप
मांगती है मुझसे अपना सुनहरा रंग-रूप
शिकवा करती है तुम्हारी यह पागल हवा
पूछती है कहाँ गई वह सोंधी सबा
अनजान बनकर दामन जब छोड़ जाते हो
हसरतों को इनकी जब आज़माते हो,
तुम याद आते हो।

9 comments:

  1. परछाईयों तक पसरकर शाम की मरियल धूप
    मांगती है मुझसे अपना सुनहरा रंग-रूप
    शिकवा करती है तुम्हारी यह पागल हवा
    पूछती है कहाँ गई वह सोंधी सबा
    अनजान बनकर दामन जब छोड़ जाते हो
    हसरतों को इनकी जब आज़माते हो,
    तुम याद आते

    इंसान जिसको चाहता है वो अक्सर याद आता है ... हर शै में याद आता है ...

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  2. अमलतास के पीले फूल पूछते हैं मुझसे
    पूरब की खिड़की मेरी बंद है कब से
    पीपल के सूखे, झड़े हुए पत्ते
    उड़ते-उखड़ते तुम्हें चाहते हों जैसे
    पीलेपन में इनके जब तुम छा जाते हो
    धीरे से आकर इन्हें थपथपाते हो,
    तब याद आते हो। बहुत ही खूबसूरती के साथ आपने प्रकृति और संवेदनाओं का कोलाज बनाया है---बेहतरीन रचना।

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  3. सागर किनारे की लहरें जब छूती हैं मुझे ,
    तुम याद आते हो
    डूबते सूरज के पीछे से झाँकते हो
    धीरे से मुस्कुराते हो,
    तुम याद आते हो।
    kitna anootha,nazuk khayal hai!

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  4. Aaj phir ekbaar fursatse padhane chali aayi...kayi naye pahlu nazar aaye jo pichhali baar chhoot gaye the..

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  5. Kya baat hai..bahut dinon se nayi rachna nahi?

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  6. सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।

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  7. ब्लॉग को पढने और सराह कर उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया.

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  8. धन्यवाद संजय जी..

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