Friday, October 1, 2010
Thursday, September 23, 2010
24 सितम्बर 199..........या 201.................?
कोई राम मन्दिर या कोई बाबरी मस्ज़िद ही क्यों, अल्लाह या राम के छोटे-छोटे, मासूम पैगम्बर क्यों नहीं?
.........एक पवित्र धार्मिक स्थल पर एक अनाथाश्रम क्यों नहीं?????
.........एक पवित्र धार्मिक स्थल पर एक अनाथाश्रम क्यों नहीं?????
Saturday, September 4, 2010
शरणार्थी
मैं जा रही थी
रास्ते में
मिली हवा
उसने पूछा - "शरणार्थी हो क्या?"
मैंने कहा - "नहीं, मेरा घर है यहाँ।"
मैं चल पड़ी।
रास्ते में
मिले खेत
सरसों ने पूछा - "शरणार्थी हो क्या?"
मैंने कहा - "नहीं, मेरा घर है यहाँ।"
मैं चल पड़ी।
रास्ते में
मिली गौरैया
उसने पूछा - "शरणार्थी हो क्या?"
मैं चीखी - "नहीं, मेरा घर है यहाँ।"
और मैं दौड़ी।
और फिर, कोई नहीं मिला।
घर पहुँची।
माँ थीं,
उन्होंने दरवाज़ा खोला।
"माँ, क्या मैं शरणार्थी हूँ?" - मैंने पूछा।
वे मुस्कुराईं,
मेरा सर सहलाया
और कहा - "हाँ"
"यह तेरा घर नहीं, एक छोटा-सा शरण-स्थल है।"
मैंने फिर यही कहा - "हाँ, मैं शरणार्थी हूँ।
सुना न तुमने ऐ हवा, सरसों के खेत, पंछी, नदिया!
तुमने सुना न!"
रास्ते में
मिली हवा
उसने पूछा - "शरणार्थी हो क्या?"
मैंने कहा - "नहीं, मेरा घर है यहाँ।"
मैं चल पड़ी।
रास्ते में
मिले खेत
सरसों ने पूछा - "शरणार्थी हो क्या?"
मैंने कहा - "नहीं, मेरा घर है यहाँ।"
मैं चल पड़ी।
रास्ते में
मिली गौरैया
उसने पूछा - "शरणार्थी हो क्या?"
मैं चीखी - "नहीं, मेरा घर है यहाँ।"
और मैं दौड़ी।
और फिर, कोई नहीं मिला।
घर पहुँची।
माँ थीं,
उन्होंने दरवाज़ा खोला।
"माँ, क्या मैं शरणार्थी हूँ?" - मैंने पूछा।
वे मुस्कुराईं,
मेरा सर सहलाया
और कहा - "हाँ"
"यह तेरा घर नहीं, एक छोटा-सा शरण-स्थल है।"
मैंने फिर यही कहा - "हाँ, मैं शरणार्थी हूँ।
सुना न तुमने ऐ हवा, सरसों के खेत, पंछी, नदिया!
तुमने सुना न!"
Tuesday, August 10, 2010
आलो आँधारी - एक भोली सी जीवन कथा
कहते हैं साहित्य सृजन के लिए शब्दों पर पकड़ से ज़्यादा महत्व रखता है संवेदनाओं पर पकड़। यदि संवेदनाएँ गहरी हों तो शब्द खुद-ब-खुद खिंचे चले आते हैं।
आलो-आँधारी
लेखिका – बेबी हालदार
प्रकाशक: रोशनाई प्रकाशन, काँचरापाड़ा, पश्चिम बंगाल।
मूल्य: 75 रुपये।
अब तक हमने ऐसे कई उपन्यास पढ़े हैं जिसमें बड़े-बड़े लेखकों ने अपनी सशक्त, धारदार लेखनी के माध्यम से अशक्त लोगों के जीवन के उजालों और अन्धेरों का चित्रण किया है। आलो-आँधारी एक ऐसी भोली आत्मकथा है जिसकी लेखिका इस बात को लेकर बेहद सशंकित रहती है कि क्या उसे इतने शब्द आते हैं कि वह कुछ लिख सके –
“सोच रही थी कि लिख सकूँगी या नहीं/चिट्ठी सुनकर मैं अवाक् रह गई। मैंने ऐसा क्या लिखा है जो उन लोगों को इतना अच्छा लगा! उसमें अच्छा लगने की तो कोई बात नहीं! फिर मेरी लिखावट भी खराब है और लिखने में भूलें इतनी कि उसका कोई ठिकाना नहीं!”
चौका-बरतन, झाड़ू-पोंछा करके अपनी और अपने बच्चों की जीविका चलाने वाली बेबी को जब उसके ‘तातुश’ ने अपने जीवन के दुखों और संघर्षों की गाथा को कागज़ पर उतारने के लिए कहा तो उसकी सबसे बड़ी चिंता यही थी कि सातवीं कक्षा में पढ़ाई छोड़ देने के बाद अब क्या उससे कुछ लिखा-पढ़ा जाएगा?
लेकिन जब उसने लिखा तो अपने कष्टकारी जीवन के सभी संघर्षों को बेहद सहज व सरल शब्दों में इस प्रकार लिख डाला कि यह लक्ष्मण गायकवाड़, लक्ष्मण माने, सिद्दलिंग्या जैसे दलित लेखकों की आत्मकथा की श्रेणी में जा पहुँचा।
मुर्शिदाबाद में रहने वाली छोटी सी बेबी की माँ घर छोड़कर चली जाती है, सौतेली माँ आती है, फिर 11-12 की उम्र में बेबी का विवाह हो जाता है, जल्दी-जल्दी तीन बच्चे, उन बच्चों को पढा-लिखा कर आदमी बनाने की चाह और उसके बाद उसके दुखों का अनवरत संघर्ष में बदल जाना। संघर्ष की यह गाथा किसी भी प्रकार के पूर्वाग्रह से पूर्ण रूप से अछूती है। तभी तो बात-बात में उसपर हाथ उठाने वाला उसका स्वामी भी कभी-कभी उसे माया का पात्र दिखता है। इस संघर्ष में उसका अपना कोई नहीं तो पूरी तरह से पराया भी कोई नहीं। न कोई हीरो है न कोई विलेन। बकौल मदन कश्यप, ‘बेबी हालदार की कथा में न कोई नायक है, न ही खलनायक। जो बुरा दिखता है, उसके भीतर भी कुछ अच्छाईयाँ हैं और जो बहुत अच्छा-अच्छा बना रहता है उसकी धूर्तताएँ भी प्रकट हो जाती हैं। उसके साथ सब कुछ बुरा ही बुरा नहीं है। समय-समय पर मदद पहुँचाने वाले कुछ अच्छे लोग भी मिलते हैं।’
अंतर्राष्ट्रीय ख़्याति प्राप्त कर चुकी इस ईमानदार सी आत्मकथा में कुछ भी कल्पना नहीं है, न ही कोई बनाव-सिंगार है। भाषा-शैली के बनावटी तनाव से कोसों दूर ‘आलो-आँधारी’ बिना किसी साहित्यिक विश्लेषण की चिंता किए बस सीधे-सीधे अपनी राह चलती जाती है और इस राह में चलते-चलते कभी वह इतनी खो जाती है कि उसे खुद पता नहीं चलता कि कब वह ‘मैं’ से ‘वह’ में चली गई है। इस बारे में बेबी का कहना है कि ‘अपने जीवन की कुछ घटनाओं को भुलाते रहने की कोशिश में मुझे अब कभी-कभी ऐसा लगता है जैसे वे घटनाएँ मेरे नहीं बल्कि किसी और के साथ घटी थीं।’ पूरी आत्मकथा में प्रमुख पात्र को ‘मैं’ से संबोधित करते-करते कभी भी वह उस ‘मैं’ को ‘वह’ मान बैठती है – “बेबी के भाग्य में क्या था वह मैं खूब जानती हूँ”
“बेचारी बेबी! बेचारी नहीं तो क्या! और किसका होगा इतना छोटा बचपन कि दीवार से टिककर बैठ, पूरा का पूरा याद कर लिया जाए! फिर भी बेबी को उससे मोह है।”
“इतने दुख का दिन बेबी ने कितनी हँसी-खुशी से पार कर दिया! कुछ समझ ही नहीं पाई कि उसके साथ यह क्या हो गया”
विजय मोहन सिंह (सहारा समय) के शब्दों में ‘आत्मकथा का यह तर्जे-बयाँ उल्लेखनीय है क्योंकि यह किसी शिल्पकौशल के तहत नहीं अपनाया गया है, बल्कि अपने ‘मैं’ के ‘वह’ में तब्दील कर देने की प्रक्रिया में इतना स्वत: स्फूर्त और तटस्थ है कि अत्यंत प्रामाणिक और घनिष्ठ रूप से घटित लेखन की प्रक्रिया में स्वत: अपने से बाह्र होकर अपने को देखने लगता है’
मूल रूप से बांग्ला भाषा में लिखी गई ‘आलो-आँधारी’ का अनुवाद अब तक 15 भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय भाषाओं में हो चुका है। हिंदी में इसका अनुवाद श्री प्रबोध कुमार (मुंशी प्रेमचंद के नाती) ने किया है। अनुवाद में सातवीं कक्षा तक पढ़ी बेबी हालदार की भाषा को अधिक छेड़ा नहीं गया है। पुस्तक की रूह को ज़िंदा रखने की ख़ातिर कई शब्द और वाक्य-विन्यास बंग्ला के ही रहने दिए गए हैं।
जीवन से जूझती यह आत्मकथा हमें सिर्फ किसी एक बेबी हालदार की कहानी नहीं सुनाती बल्कि जाने ऐसी कितनी बेबी हालदार होंगी जो इस कथा में वर्णित संघर्षों को जी रही होंगी और जीवटता से उनका मुकाबला कर रही होंगी।
जैसा कि मेधा पाटकर कहती हैं, ‘मेहनतकश समाज का प्रतिनिधित्व करने वाली बेबी हालदार ने इस आत्म-चित्रण में ही शोषितों, भुक्तभोगियों का जीवन-चित्रण किया है, जिसका न केवल भावनिक या साहित्यिक बल्कि राजनीतिक-सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया में भी योगदान होगा। एक महिला अपनी संवेदना से अन्यायकारी दुनिया की पोल-खोल कितनी गहराई से, फिर भी सरलता से कर सकती है, इसकी प्रतीक है यह किताब।’
Friday, June 25, 2010
जैक्सन - एक अकेला, अनसुलझा सितारा
'In Our Darkest Hour
In My Deepest Despair
Will You Still Care?
Will You Be There?
In My Trials
And My Tribulations
Through Our Doubts
And Frustrations
In My Violence
In My Turbulence
Through My Fear
And My Confessions
In My Anguish And My Pain
Through My Joy And My Sorrow
In The Promise Of Another Tomorrow
I’ll Never Let You Part
For You’re Always In My Heart'
कभी ये पंक्तियाँ जैक्सन ने हमारे लिए गाई थीं पर आज हम इन्ही पंक्तियों को जैक्सन को समर्पित कर रहे हैं। एक ऐसा सितारा जिसने दुनिया भर में जाने कितने लोगों की आँखों में उसके जैसे बनने के कितने सपने भरे..कितने कदमों को एक नया अन्दाज़ दिया..नई थिरकन दी...आज एक साल हुए शांत पड़ा है, एनर्जी से भरपूर अपने स्टेज शो पर कभी न थकने वाला MJ आज कहीं छ:-साढ़े छ: फीट के अन्दर चुपचाप पड़ा है...
अपने करीबन हर गाने से हमें सांत्वना और आशा देने वाला माइकल आज एक अजीब सी चुप्पी साधे है, एक ऐसी चुप्पी जो कभी टूट नहीं सकती.....एक ऐसी खामोशी जिसे कभी आवाज़ नहीं दिया जा सकता...
मैं नहीं जानती MJ के ऊपर जिस भी तरह के आरोप लगाए गए वो सही थे या गलत (हालांकि एक दशक से भी अधिक समय तक चली इस लड़ाई में कोर्ट ने ज़्यादातर मामलों में उन्हें बरी कर दिया) लेकिन 17 साल तक FBI और मीडिया के एक वर्ग से एक अजीब सी लड़ाई लड़ता यह कलाकार सुकून के लिए हमेशा संगीत और नृत्य की ही गोद में आया ..संगीत ही उसकी दवा थी, संगीत ही उसकी दुआ थी...
और इस दुआ के लिए किंग ऑफ पॉप के नाम से मशहूर MJ के हाथ सिर्फ उसके लिए ही नहीं उठते थे बल्कि दुआओं के रूप में निकले उसके कई अधिकतर गाने सामाजिक सन्देशों से भरे पड़े थे....'हील द वर्ल्ड' 'ब्लैक ऑर व्हाइट' 'अर्थ सॉंग' जैसे जाने कितने गाने हैं जिसने हमें इस दुनिया को एक पॉज़िटिव टच देने को प्रेरित किया, जिसने हमें बताने की कोशिश की कि हम कहाँ गलत जा रहे हैं, क्या गलत कर रहे हैं और इसे कैसे हम 'हील' कर सकते हैं.....
हालांकि दुनिया भर को अपने गानों से आशा और सांत्वना देने वाले इस कलाकार को खुद कितनी शांति मिली इसका पता नहीं...उसके जीवन के खालीपन को हम सबने उसके कई गानों में महसूस किया....'विल यू बी देयर', 'स्ट्रेंजर इन मास्को', 'आइ विल बी देयर', 'लीव मी अलोन' ऐसे कई गाने हैं जिसमें जैक्सन के मुश्किल जीवन के दर्द को समझा जा सकता है...
इन सबके अलावा 'हिस्ट्री' 'ब्लड इन द डांस फ्लोर' 'जैम' 'घोस्ट' जैसे भी कई गाने हैं जिसे सुनते ही पाँव जैक्सन के स्टेप्स पर थिरकने को मचलने लगते हैं....उसके मून वॉक्स, उसके नीचे से चार इंच छोटे पैंट, हैट, ग्लव्स और इन सबके बीच उसका अपना स्टाइल..कोई और हमें नहीं दे सकता....
जीवन के समाप्त होने के एक वर्ष बाद ऐसा लगता है कि मौत ने भी उसके साथ नाइंसाफी की...
जब अपनी सभी लड़ाईयाँ लड़ते हुए MJ ने अपना कमबैक फिक्स किया और दुनिया का सबसे बड़ा एंटरटेनर हमें एक बार फिर अपने साथ, अपने संगीत के साथ कहीं और उड़ा ले जाने की तैयारी करने लगा तो उस पल का बेकरारी से इंतज़ार करती पूरी दुनिया को उस शो से कुछ दिनों पहले 25 जून 2009 को एक सन्नाटेदार खबर सुनने को मिली......
MJ is no more.......................

But MJ..we know that you will be there for me for us for everyone..always...through your dance, through your songs we will always get in touch with you....Yes you are there in our heart....
We all love you...Thank u for spending 50 years of your life in our world...Thank u..
In My Deepest Despair
Will You Still Care?
Will You Be There?
In My Trials
And My Tribulations
Through Our Doubts
And Frustrations
In My Violence
In My Turbulence
Through My Fear
And My Confessions
In My Anguish And My Pain
Through My Joy And My Sorrow
In The Promise Of Another Tomorrow
I’ll Never Let You Part
For You’re Always In My Heart'
कभी ये पंक्तियाँ जैक्सन ने हमारे लिए गाई थीं पर आज हम इन्ही पंक्तियों को जैक्सन को समर्पित कर रहे हैं। एक ऐसा सितारा जिसने दुनिया भर में जाने कितने लोगों की आँखों में उसके जैसे बनने के कितने सपने भरे..कितने कदमों को एक नया अन्दाज़ दिया..नई थिरकन दी...आज एक साल हुए शांत पड़ा है, एनर्जी से भरपूर अपने स्टेज शो पर कभी न थकने वाला MJ आज कहीं छ:-साढ़े छ: फीट के अन्दर चुपचाप पड़ा है...
अपने करीबन हर गाने से हमें सांत्वना और आशा देने वाला माइकल आज एक अजीब सी चुप्पी साधे है, एक ऐसी चुप्पी जो कभी टूट नहीं सकती.....एक ऐसी खामोशी जिसे कभी आवाज़ नहीं दिया जा सकता...
मैं नहीं जानती MJ के ऊपर जिस भी तरह के आरोप लगाए गए वो सही थे या गलत (हालांकि एक दशक से भी अधिक समय तक चली इस लड़ाई में कोर्ट ने ज़्यादातर मामलों में उन्हें बरी कर दिया) लेकिन 17 साल तक FBI और मीडिया के एक वर्ग से एक अजीब सी लड़ाई लड़ता यह कलाकार सुकून के लिए हमेशा संगीत और नृत्य की ही गोद में आया ..संगीत ही उसकी दवा थी, संगीत ही उसकी दुआ थी...
और इस दुआ के लिए किंग ऑफ पॉप के नाम से मशहूर MJ के हाथ सिर्फ उसके लिए ही नहीं उठते थे बल्कि दुआओं के रूप में निकले उसके कई अधिकतर गाने सामाजिक सन्देशों से भरे पड़े थे....'हील द वर्ल्ड' 'ब्लैक ऑर व्हाइट' 'अर्थ सॉंग' जैसे जाने कितने गाने हैं जिसने हमें इस दुनिया को एक पॉज़िटिव टच देने को प्रेरित किया, जिसने हमें बताने की कोशिश की कि हम कहाँ गलत जा रहे हैं, क्या गलत कर रहे हैं और इसे कैसे हम 'हील' कर सकते हैं.....


जीवन के समाप्त होने के एक वर्ष बाद ऐसा लगता है कि मौत ने भी उसके साथ नाइंसाफी की...
जब अपनी सभी लड़ाईयाँ लड़ते हुए MJ ने अपना कमबैक फिक्स किया और दुनिया का सबसे बड़ा एंटरटेनर हमें एक बार फिर अपने साथ, अपने संगीत के साथ कहीं और उड़ा ले जाने की तैयारी करने लगा तो उस पल का बेकरारी से इंतज़ार करती पूरी दुनिया को उस शो से कुछ दिनों पहले 25 जून 2009 को एक सन्नाटेदार खबर सुनने को मिली......
MJ is no more.......................

But MJ..we know that you will be there for me for us for everyone..always...through your dance, through your songs we will always get in touch with you....Yes you are there in our heart....

Friday, June 4, 2010
काली आज़ादी
एक अजीब तनहाई है
चारों तरफ एक शोर से घिरी,
शोर
अविश्वास का, अनमनेपन का, गहरे विषाद का,
गुस्से का, अनास्था का, अनजानेपन का।
एक अजीब सन्नाटे को ख़ुद से लपेटे
यह ज़िंदगी
जितनी गुज़रती है, उतनी ही खुदगर्ज़ होती जाती है
बेईमान होती जाती है, ख़तरनाक होती जाती है।
एक काली आज़ादी है जैसे
अंधकार की आज़ादी,
धोखेबाज़ी की आज़ादी,
दूर होते रहने की आज़ादी।
वह घास जो दूर से हरी दिखती है
उसके जितने पास जाओ, वह रेत की तरह पीली होती जाती है
उसे आज़ादी मिली है पीले होने की।
उस घास में दर्प है, अहंकार है
पीले होने का,
काली आज़ादी का
जो उसे अंधेरी ही सही
पर
आज़ादी तो देती है।
चारों तरफ एक शोर से घिरी,
शोर
अविश्वास का, अनमनेपन का, गहरे विषाद का,
गुस्से का, अनास्था का, अनजानेपन का।
एक अजीब सन्नाटे को ख़ुद से लपेटे
यह ज़िंदगी
जितनी गुज़रती है, उतनी ही खुदगर्ज़ होती जाती है
बेईमान होती जाती है, ख़तरनाक होती जाती है।
एक काली आज़ादी है जैसे
अंधकार की आज़ादी,
धोखेबाज़ी की आज़ादी,
दूर होते रहने की आज़ादी।
वह घास जो दूर से हरी दिखती है
उसके जितने पास जाओ, वह रेत की तरह पीली होती जाती है
उसे आज़ादी मिली है पीले होने की।
उस घास में दर्प है, अहंकार है
पीले होने का,
काली आज़ादी का
जो उसे अंधेरी ही सही
पर
आज़ादी तो देती है।
Saturday, April 3, 2010
याद आते हो
सागर किनारे की लहरें जब छूती हैं मुझे ,
तुम याद आते हो
डूबते सूरज के पीछे से झाँकते हो
धीरे से मुस्कुराते हो,
तुम याद आते हो।
अमलतास के पीले फूल पूछते हैं मुझसे
पूरब की खिड़की मेरी बंद है कब से
पीपल के सूखे, झड़े हुए पत्ते
उड़ते-उखड़ते तुम्हें चाहते हों जैसे
पीलेपन में इनके जब तुम छा जाते हो
धीरे से आकर इन्हें थपथपाते हो,
तब याद आते हो।
परछाईयों तक पसरकर शाम की मरियल धूप
मांगती है मुझसे अपना सुनहरा रंग-रूप
शिकवा करती है तुम्हारी यह पागल हवा
पूछती है कहाँ गई वह सोंधी सबा
अनजान बनकर दामन जब छोड़ जाते हो
हसरतों को इनकी जब आज़माते हो,
तुम याद आते हो।
तुम याद आते हो
डूबते सूरज के पीछे से झाँकते हो
धीरे से मुस्कुराते हो,
तुम याद आते हो।
अमलतास के पीले फूल पूछते हैं मुझसे
पूरब की खिड़की मेरी बंद है कब से
पीपल के सूखे, झड़े हुए पत्ते
उड़ते-उखड़ते तुम्हें चाहते हों जैसे
पीलेपन में इनके जब तुम छा जाते हो
धीरे से आकर इन्हें थपथपाते हो,
तब याद आते हो।
परछाईयों तक पसरकर शाम की मरियल धूप
मांगती है मुझसे अपना सुनहरा रंग-रूप
शिकवा करती है तुम्हारी यह पागल हवा
पूछती है कहाँ गई वह सोंधी सबा
अनजान बनकर दामन जब छोड़ जाते हो
हसरतों को इनकी जब आज़माते हो,
तुम याद आते हो।
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